अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य -3

चौथे ऑपरेशन में सूक्ष्म सत्ता का संरक्षण

<<   |   <   | |   >   |   >>
        मैं गुजरात प्रान्त के बलसाड़ जिले के डुंगरी ग्राम में रहता हूँ। सन् १९६२ से १९६५ तक स्थानीय हाई स्कूल में नॉन टीचिंग स्टाफ के रूप में कार्यरत रहा। इसी दौरान मेरा संपर्क पास के गाँव के गायत्री परिजनों से हुआ। उनकी युग निर्माण योजना की बातें मेरे मन- मस्तिष्क को प्रभावित कर गईं।
        मैं मिशन के काम में रुचि लेने लगा। कुछ ही दिनों बाद मुझे पूज्य गुरुदेव से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उनसे मुलाकात क्या हुई कि मैं उन्हीं का होकर रह गया। तब से लेकर आज तक मुझे गुरुवर के अनेक अनुदान- वरदान मिले हैं।

        यह संस्मरण मेरे जीवन के ७१वें वर्ष का है। सन् २००६ में मैं हर समय सिर दर्द से परेशान रहा करता था। यह परेशानी जब बहुत अधिक बढ़ गई, तो मैं डॉक्टर से मिला।

डॉक्टर ने कई तरह की मशीनों से मेरे सिर की जाँच की। जाँच के बाद वह इस नतीजे पर पहुँचे कि हृदय की कुछ नाड़ियों के ब्लाक हो जाने के कारण ही हमेशा सिर दर्द बना रहता है। उन्होंने कहा कि बाईपास सर्जरी से ही इस रोग का निदान हो सकता है।

        बाईपास सर्जरी की तैयारियाँ शुरू हुईं और २ अगस्त २००६ को नाडियाद, महागुजरात हास्पिटल में ऑपरेशन हुआ। पहले पसलियों को बीचो- बीच काटकर दो हिस्से में बॉँट दिया गया, फिर दिल को पसलियों से बाहर निकालकर उसका ऑपरेशन किया गया।

        ऑपरेशन के बाद कटी हुई पसलियों को तार से जोड़कर पहले जैसा बनाया गया- इसे डॉक्टरों की भाषा में ‘कॉटन बाडी’ बोलते हैं। लेकिन मेरे शरीर ने इस कॉटन बाडी को स्वीकार नहीं किया। फलतः शरीर के अन्दर से रिस- रिसकर मवाद बाहर आने लगा।

डॉक्टर को दिखाने पर उन्होंने कहा कि कॉटन बाडी के कारण प्रायः ऐसा होता है। चिन्ता की कोई बात नहीं है। कुछ दिनों में अपने- आप ठीक हो जाएगा।

        लेकिन छः महीने बीत जाने के बाद भी मवाद निकलना बन्द नहीं हुआ, तो डॉक्टर ने कहा कि पसली की हड्डियों को तार से बाँधने के कारण इन्फेक्शन हो गया है। अब दुबारा ऑपरेशन करके तार बाहर निकालना पड़ेगा।

        २ अप्रैल २००७ को दूसरी बार ऑपरेशन हुआ। फिर से छाती खोलकर तार निकाला गया। लेकिन इतने दिनों में इन्फेक्शन हड्डियों को प्रभावित कर चुका था, इसलिए मवाद का निकलना बंद नहीं हुआ। थक हार कर अहमदाबाद के बड़े अस्पताल में पहुँचा। वहाँ के डॉक्टरों ने २० जून को तीसरा ऑपरेशन किया। वह भी असफल रहा।

        सीनियर डॉक्टर ने मेरे बेटे को बताया कि मेरी मौत अब किसी भी क्षण हो सकती है, फिर भी अन्तिम प्रयास के रूप में एक और ऑपरेशन किया जाना चाहिए।

निराश होकर मैंने सीनियर डॉक्टर से कहा कि आप लोग अपना काम कीजिए, मैं अपना काम करूँगा। एक जूनियर डॉक्टर ने जिज्ञासावश पूछा कि आप क्या करेंगे। मैंने कहा- मैं गुरुदेव का स्मरण करूँगा और उन्होंने जो मंत्र दिया है, उसके जप की संख्या बढ़ा दूँगा। अब मैं अध्यात्म की ताकत को आजमाऊँगा।

        ......और मैंने वैसा ही किया। सुबह से शाम तक गायत्री मंत्र का जप और रात में सोते समय गुरुदेव का ध्यान।

        इसी प्रकार तीन सप्ताह और बीत गए। चौथे सप्ताह में चौथे ऑपरेशन की तारीख तय हुई- १८ जुलाई। सारी तैयारियाँ हो चुकी थीं। मुझे ऑपरेशन थियेटर ले जाया गया।

        ऑपरेशन शुरू होने से पहले मैंने डॉक्टरों से अनुरोध किया कि वे मुझे पाँच मिनट प्रार्थना करने दें। मैंने गुरुदेव का फोटो अपने साथ रखा था। फोटो सामने रखकर उन्हें प्रणाम किया और आँखें बन्द कर मन ही मन उनसे प्रार्थना करने लगा- परम पूज्य गुरुदेव! ये डॉक्टर पता नहीं क्या- कैसे करेंगे। आप सूक्ष्म रूप से आकर इनका मार्गदर्शन कीजिए, जिससे ये सही तरीके से ऑपरेशन कर सकें और इनके सत्प्रयास से मेरी जीवन- रक्षा हो सके फिर मैं जल्दी से स्वस्थ होकर वापस घर पहुँच सकूँ।

        तीन- चार दिन पहले श्रद्धेय डॉक्टर साहब (डॉ. प्रणव पण्ड्या)और आदरणीया जीजी (शैलबाला पण्ड्या) को चार पेज का पत्र लिखा था। उनका जवाब आया- ‘‘आपके उत्तम स्वास्थ्य के लिए हम सब प्रार्थना कर रहे हैं। आप चिन्ता मत करिए। पूज्य गुरुदेव के आशीर्वाद से सब कुछ ठीक हो जाएगा।’’

        ऑपरेशन ५ घंटे तक चला। चौथी बार हर्ट का ऑपरेशन हो रहा था, इसलिए डॉक्टर्स ने प्लास्टिक सर्जरी की भी पूरी तैयारी कर रखी थी। टीम में प्लास्टिक सर्जरी के दो विशेषज्ञ डॉक्टर भी तैयार खड़े थे। लेकिन गुरुदेव की कृपा से प्लास्टिक सर्जरी करने की नौबत ही नहीं आई।

        अगली सुबह जब बड़े डॉक्टर्स मुझे देखने आए, तो उन्होंने कहा- आपका ऑपरेशन बहुत अच्छा हुआ। सच तो यह है कि केस हिस्ट्री और आपकी हालत देखकर मैं अन्दर से घबराया हुआ था, लेकिन लगता है कि ऑपरेशन से पूर्व आपके द्वारा की गई प्रार्थना आपके इष्टदेव ने सुन ली। ऑपरेशन के दौरान मुझे लगा कि कोई बाहरी शक्ति कदम- कदम पर मेरा मार्ग- दर्शन कर रही है, हिम्मत बढ़ा रही है।

        इतने बड़े ऑपरेशन के बाद इतनी तेजी से रिकवरी हुई कि १५ दिनों के बाद ही मुझे हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई और मैं पूरी तरह से स्वस्थ होकर खुशी- खुशी घर लौट आया। तब से लेकर आज तक गुरुकृपा से मेरा स्वास्थ्य पास- पड़ोस के लोगों के लिए एक उदाहरण बना हुआ है।

प्रस्तुतिः दौलत भाई जीवन जी देसाई,
        बलसाड़ (गुजरात
)

<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118