आपत्तियों में धैर्य

प्रत्येक परिस्थिति में आगे बढ़ें

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मनुष्य जीवन उन्नति करने के लिए है । कहने के लिए संसार में शेर हाथी, सर्प आदि मनुष्य से कहीं अधिक शक्तिशाली प्राणी मौजूद हैं, पर अन्य किसी प्राणी में वह विवेक शक्ति नहीं पाई जाती जिससे लाभ-हानि का निर्णय करके उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हुआ जा सके । संसार के अन्ये समस्त प्राणी प्रकृति द्वारा निर्मित एक छोटे से दायरे में ही जीवन-यापन करते हैं । यह विशेषता केवल मनुष्य को ही प्राप्त है कि वह इच्छानुसार नये-नये मार्ग खोजकर अगम्य स्थलों पर जा पहुँचता है और महत्त्वपूर्ण कार्यों को संपादित करता है । जो लोग ऐसी श्रेष्ठ मनुष्य-योनी को पाकर भी उन्नति के मार्ग पर आगे नहीं बढ़ते वे वास्तव में बड़े अभागे हैं । ''अगर मुझे अमुक सुविधाएँ मिलती तो मैं ऐसा करता'' इस प्रकार की बातें करने वाले एक झूठी आत्मप्रवंचना किया करते हैं । अपनी नालायकी को भाग्य के ऊपर, ईश्वर के ऊपर थोपकर खुद निर्दोष बनना चाहते हैं । यह एक असंभव मांग है कि यदि मुझे अमुक परिस्थिति मिलती तो ऐसा करता । जैसी परिस्थिति की कल्पना की जा रही है यदि वैसी मिल जाए तो वे भी अपूर्ण मालूम पड़ेगी और उससे अच्छी स्थिति का अभाव प्रतीत होगा । जिन लोगों को धन, विद्या, मित्र, पद आदि पर्याप्त मात्रा में मिले हुए हैं, देखते हैं कि उनमें से भी अनेकों का जीवन बहुत अस्तव्यस्त और असंतोषजनक स्थिति में पड़ा हुआ है । धन आदि का होना उनके आनंद की वृद्धि न कर सका वरन जी का जंजाल बन गया । जो सर्पविद्या नहीं जानता उसके पास बहुत साँप होना भी खतरनाक है । जिसे जीवन-कला का ज्ञान नहीं, उसे गरीबी में अभावग्रस्त अवस्था में थोड़ा-बहुत आनंद तब भी है, यदि वह संपन्न होता तो उन संपत्तियों का दुरुपयोग करके अपने को और भी अधिक विपत्तिग्रस्त बना लेता ।

यदि आपके पास आज मनचाही वस्तुएँ नहीं हैं तो निराश होने की कुछ आवश्यकता नहीं है । टूटी-फूटी चीजें हैं उन्हीं की सहायता से अपनी कला को प्रदर्शित करना प्रारंभ कर दीजिए । जब चारों ओर घोर घना अंधकार छाया हुआ होता है तो वह दीपक जिसमें छदाम का दिया, आधे पैसे का तेल और दमड़ी की बत्ती है-कुल मिलाकर एक पैसे की भी पूँजी नहीं है- चमकता है और अपने प्रकाश से लोगों के रुके हुए कामों को चालू कर देता है । जबकि हजारों के मूल्य वाली वस्तुएँ चुपचाप पड़ी होती हैं यह एक पैसे की पूँजी वाला दीपक प्रकाशवान होता है ''अपनी महत्ता प्रकट करता है लोगों का प्यारा बनता है प्रशंसित होता है और अपने अस्तित्व को धन्य बनाता है । क्या दीपक ने कभी ऐसा रोना रोया कि मेरे आकार होता तो ऐसा बड़ा प्रकाश करता ? दीपक को कर्महीन नालायकों की भाँति बेकार- शेखचिल्लियों के से मनसूबे बाँधने की फुरसत नहीं है वह अपनी आज की परिस्थिति, हैसियत, औकात को देखता है उसका आदर करता है और अपनी केवल मात्र एक पैसे की पूँजी से कार्य आरंभ कर देता है । उसका कार्य छोटा है बेशक पर उस छोटेपन में भी सफलता का उतना ही अंश है जितना कि सूर्य और चंद्र के चमकने की सफलता में है । यदि आंतरिक संतोष, धर्म, मर्यादा और परोपकार की दृष्टि से तुलना की जाए तो अपनी- अपनी मर्यादा के अनुसार दोनों का ही कार्य एकसा है । दोनों का ही महत्त्व समान है दोनों की सफलता एक सी है ।

सच बात तो यह है कि अभावग्रस्त और कठिनाइयों में पले हुए, साधनहीन व्यक्ति ही संसार के नेता, महात्मा, महापुरुष, सफल जीवन, मुक्तिपथगामी हुए हैं । कारण यह है कि विपरीत परिस्थितियों से टकराने पर मनुष्य की अंतःप्रतिभा जाग्रत होती है, सुप्त शक्तियों का विकास होता है । पत्थर पर रगड़ खाने वाला चाकू तेज होता है और वह अपने काम में अधिक कारगर साबित होता है, उसका स्वभाव, अनुभव और दिमाग मँजकर साफ हो जाता है जिससे आगे बढ़ने में उसे बहुत सफलता मिलती है । इसके विपरीत जो लोग अमीर और साधन संपन्न घरों में पैदा होते हैं उन्हें जीवन की आवश्यक सामग्रियों प्राप्त करने के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ता । लाड़, दुलार, ऐश, आराम के कारण उनकी प्रतिभा निखरती नहीं, वरन बंद पानी की तरह सड़ जाती है, यह निष्क्रिय चाकू की तरह जंग लगकर निकम्मी हो जाती है । आमतौर पर आजकल ऐसा देखा जाता है कि अमीरों के लड़के अपने जीवन में असफल रहते हैं और गरीबों के लड़के आगे चलकर चमक जाते हैं । पुराने जमाने में राजा-रईस अपने लड़कों को ऋषियों के आश्रम में इसलिए भेज देते थे कि वहाँ रहकर अभावग्रस्त जीवन व्यतीत करें और अपनी प्रतिभा को तीव्र बनावें ।

हमारा उद्देश्य यह कहने का नहीं है कि अमीरी कोई बुरी चीज है और अमीरों के घर में पैदा होने वाले उन्नत जीवन नहीं बिता सकते । जहाँ साधन है वहाँ तो और भी जल्दी उन्नति होनी चाहिए । बढ़ई के पास बढ़िया लकड़ी और अच्छे औजार हो तब तो वह बहुत ही सुंदर फर्नीचर तैयार करेगा, यह तो निश्चित है । हमारा तात्पर्य केवल यह कहने का है कि यदि जिंदगी जीने की कला आती हो तो अभाव कठिनाई या विपरीत परिस्थिति भी कुछ बाधा नहीं डाल सकती । गरीबी या कठिनाई में साधनों की कमी का दोष है तो प्रतिभा को चमकाने का गुण भी है । अमीरी में साधनों की बाहुल्यता है तो लाड़-दुलार और ऐश आराम के कारण प्रतिभा के कुंद हो जाने का दोष भी है । दोनों ही गुण- दोषयुक्त हैं । किंतु जो जीवन जीना जानता है ? वह चाहे अमीर हो या गरीब, अच्छी परिस्थितियों में हो या कठिनाइयों में पड़ा हो कुछ भी क्यों न हो हर एक स्थिति में अनुकूलता पैदा कर सकता है और हर अवस्था में उन्नति सफलता तथा आनंद प्राप्त कर सकता है ।

आनंदमय जीवन बिताने के लिए धन, विद्या, अच्छा सहयोग, स्वास्थ्य आदि की आवश्यकता है । परंतु ऐसा न समझना चाहिए कि इन वस्तुओं के होने से ही जीवन आनंदमय बन सकता है । एक अच्छी पुस्तक लिखने के लिए कागज, दवात, कलम की आवश्यकता है, परंतु इन तीनों के इकट्ठे हो जाने से ही पुस्तक तैयार नहीं हो सकती बुद्धिमान लेखक ही उत्तम पुस्तक के निर्माण में प्रमुख है, दवात, कलम, कागज तो एक गौण और छोटी वस्तु है । जिसे पुस्तक लिखने की योग्यता है उसका काम रुका न रहेगा, इन वस्तुओं को वह बहुत ही आसानी से इकट्ठी कर लेगा । आज तक एक भी घटना किसी ने ऐसी न सुनी होगी कि अमुक लेखक इसलिए रचनाएँ न कर सका कि उसकी दवात में स्याही न थी । अगर कोई लेखक यों कहें- ''क्या करूँ साहब मेरे पास कलम ही न थी, यदि कलम होती तो बहुत बढ़िया ग्रंथ लिख देता ।'' तो उसकी इस बात पर कोई विश्वास न करेगा । भला कलम भी कोई ऐसी दुष्प्राप्य वस्तु है जिसे लेखक प्राप्त न कर सके । एक कहावत है ''नाच न जानें आँगन टेढ़ा ।'' जिसे नाचना नहीं आता वह अपनी अयोग्यता को यह कहकर छिपाता है कि क्या करूँ आँगन टेढ़ा है । टेढ़ा ही सही, जिसे नाचना आता है उसके लिए टेढे़पन के कारण कुछ विशेष अड़चन पड़ने की कोई बात नहीं है । इसी प्रकार जो जीवन की विद्या जानता है उसे साधनों का अभाव और विपरीत परिस्थितियों की शिकायत करने की कोई बात नहीं है । साधनों की आवश्यकता है बेशक परंतु इतनी नहीं कि उनके बिना प्रगति ही न हो सके ।

चतुर पुरुष विपरीतता में अनुकूलता पैदा कर लेते हैं, विष को अमृत बना लेते हैं । संखिया, कुचला, धतूरा, पारा, गुग्गुल, हरताल आदि प्राणघातक विषों से लोग रोगनाशक आयुवर्द्धक रसायनें बनाते हैं । बाल में से चाँदी, कोयले में से हीरा निकालते हैं । सर्पों की विषथैली में से मणि प्राप्त करते हैं, धरती की शुष्क और कठोर तह को खोदकर शीतल जल निकालते हैं, गरजते समुद्र के पेट में घुसकर मोती लाते हैं । दृष्टि पसारकर देखिए आपको चारों ओर ऐसे कलाकार बिखरे हुए दिखाई पड़ेंगे, जो तुच्छ चीजों की सहायता से बड़े महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं, ऐसे वीर पुरुषों की कमी नहीं है जो वज्र जैसी निष्ठुर परिस्थिति में प्रवेश करके विजयलक्ष्मी का वरण करते हैं ।यदि आपकी इच्छाशक्ति जरा वजनदार हो तो आप भी इन्हीं कलाकारों और वीर पुरुषों की श्रेणी में सम्मिलित होकर अपनी आज की सारी शिकायतें, चिंताएँ विवशताऐं आसानी के साथ संतोष, आशा और समर्थता में बदल सकते हैं ।
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