आप अपने आपको पहचान लीजिये ....

आप अपने आपको पहचान लीजिये ....

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कि आप सामान्य आदमी नहीं हैं, असामान्य हैं |

भाइयों कई बार बड़े- बड़ों से गलती हो जाती है। लोग नफे को नुकसान समझ लेते हैं नुकसान को नफा समझ लेते हैं। लाटरी का नंबर यदि मैं आपसे बता दूँ कि फलाना नंबर खुलेगा और आपसे दो रुपये माँगूँ कि आप दो रुपये जमा कीजिये लाटरी का टिकट खरीदने के लिये तो आपको क्या लगेगा नुकसान लगेगा। जाने मिलेगा कि नहीं मिलेगा और मिल जाये तो तो तो फिर आपको नफा मालूम पड़ेगा इसी तरीके से बहुत सी बातें ढेरों की ढेरों जिंदगी में ऐसी है जिसे कि आदमी नुकसान समझता है पर उसमें नफा होता है। नफा होता है और वह नुकसान समझता है।

शेर का छोटा सा बच्चा भेड़ों के साथ में था शेर एक आ गया और उसने कहा तू तो मेरे साथ चल तू कहाँ भेड़ों में पड़ा है तो उसको बुरा लगा कि न जाने यह कौन है और मुझे कहाँ ले जा रहा है और जिनके साथ में हमेशा से रहा था उनसे मुझे छुड़ा रहा है यह मुझे बहुत गलत सलाह दे रहा है। लेकिन जब पानी में उसकी शकल दिखाई और उसको समझ में गया कि मैं शेर हूँ तो वह नफे में रहा नहीं तो सारी जिंदगी उसे भेड़ों की तरीके से रहना पड़ता। और गंदी जिंदगी जिया होता। लेकिन उस समय तो उसे नुकसान लगा होगा। बाद में फायदा लगा होगा।

बीज बोया जाता है जमीन में तो यह मालूम पड़ता है कि नुकसान हो गया। बीज चला गया। बीज कितने दाम का आता है महँगा आता है आजकल लेकिन बीज नुकसान हो गया लेकिन जब उसकी फसल तैयार होकर आती है कोठे और कुठीले भर जाते हैं तब मालूम पड़ता है कि नहीं गलती नहीं हुई थी यह ठीक सलाह दी गई थी हमको। हमको बीज बोने की सलाह देकर हमारा बीज छीना नहीं गया था नुकसान की तरफ ढकेल नहीं दिया गया था।

इसी प्रकार से ढेरों की ढेरों बातें ऐसी होती है जिसमें गलती होती है विश्वामित्र आये और कहने लगे अपने दोनों बच्चों को हमारे सुपुर्द कर दीजिये हमको यज्ञ की रक्षा के लिये इनकी जरूरत है सारे घर में कुहराम मच गया मंत्रियों ने विरोध किया नौकरों ने विरोध किया हर एक ने विरोध किया अरे जरा- जरा से बच्चे हो इनको कहाँ ले जाते हो राक्षसों से लड़ाने ले जा रहे हो अरे यह राक्षसों से लड़ेंगे क्या। अरे यह तो मारे जायेंगे बेचारे अरे यह कैसा विश्वामित्र आ गया और कैसे इनके गुरु हैं सब लोगों ने एकदम शुरू से आखिरी तक निंदा की। लेकिन वास्तव में वह नफे की बात थी। विश्वामित्र आये थे उस समय तो नहीं बताया था उन्होंने लेकिन पीछे बताया कि हमने तुम्हें बला विद्या और अतिबला विद्या दोनों को सिखाने के लिये हम लाये हैं गायत्री और सावित्री का रहस्य सिखाने के लिए लाये हैं इससे आपको दोनों फायदे होंगे। रामचंद्र जी को ढेरों के ढेरों फायदे हुए शंकर जी का धनुष बहुत भारी था उसको कोई उठा तक नहीं सकता था कितने राजा लगे थे लेकिन उठाने में समर्थ नहीं हो सके लेकिन रामचंद्र जी ने उठाया और उठाया ही नहीं तोड़कर फेंक दिया। और सीता जी से ब्याह हो गया। सीता जी से ब्याह करने के लिए रावण से लेकर कितने राजा महाराजा बैठे हुए थे सबके पल्ले नहीं पड़ी लेकिन रामचंद्र जी के पल्ले पड़ गई। रावण जो न जाने कितने को तंग कर रहा था जिसकी सोने की लंका थी उस सारी की सारी को रामचंद्र जी ने तोड़ मरोड़कर फेंक दिया। और रामराज्य की स्थापना करने में समर्थ हो गये, कितने फायदे हुए ।। फायदा करना आये थे कि नुकसान करने आये थे। बताइये आप ।। मेरे ख्याल से अगर आपको दूर को देखना नहीं आता है तुरन्त का देखना आता है तो आप भी उन्हीं नौकरों की तरह से कहेंगे जो दशरथ जी के यहाँ नौकरी करते थे और उन सबने कहा था भेजना ठीक नहीं है रानियों ने मना किया था बच्चों को भेजना ठीक नहीं है। लेकिन वो तो नहीं माने और ले गये और ले गये तो नफा हुआ नुकसान नहीं हुआ। रामचंद्र जी की बात मालूम है न आपको मालूम है।

अच्छा हनुमान् जी की बात मालूम है आपको कि नहीं मालूम हनुमान् जी को रामचंद्र जी ने कहा कि हमारे साथ- साथ चलो हमारा कुछ काम करो हनुमान् जी को फायदा हुआ कि नुकसान हुआ। क्या हुआ रामचंद्र जी की सीता जी से क्या रिश्ता रामचंद्र जी से क्या रिश्ता और उनके साथ जाने में जहाँ नौकरी का सवाल नहीं और सारी जिंदगी भर जब वह सयाने हो गये थे बड़े हो गये थे ब्याह होने दिया न शादी होने दी न अच्छे कपड़े पहनने दिये और रामचंद्र जी उनको ले गये। नुकसान किया कि नफा किया। नुकसान किया। किसी से पूछा रीछ बंदरों से क्यों भाई कहाँ जा रहे हो वहाँ जा रहे हैं रामचंद्र जी के यहाँ जा रहे हैं क्यों। क्या बात है रामचंद्र जी के यहाँ रामचंद्र जी स्त्री धर्मपत्नी को चोरी हो गई है और उनको हम तलाश करेंगे रावण से लड़ेंगे। अरे मरेगा क्या बेवकूफ किसने पट्टी पढ़ा दी है मालूम यह पड़ता है कि नुकसान की बात बताई जा रही है लेकिन क्या वास्तव में नुकसान की बात थी नहीं नुकसान की बात नहीं थी अगर नुकसान की बात रही होती तो हनुमान् जी ने समुद्र को छलांग कैसे लिया और पहाड़ उखाड़कर के कैसे ले आये और रामचंद्र जी को और लक्ष्मण जी को कंधे पर रखकर कैसे फिरे। लंका जलाने में समर्थ कैसे हुए। नुकसान था नुकसान नहीं था हनुमान् जी बहुत बड़े हो गये नहीं तो बंदर होते बंदर देखे हैं न आपने मदारियों के यहाँ नाचते रहते हैं बंदर आ जाते हैं तो कहते हैं मारो बंदर को भगाओ बंदर को। बंदर रह जाते लेकिन दूर की बात उनको दिखाई पड़ी कि नई इसमें मेरा लाभ है रामचंद्र जी के कहने में। उन्होंने देखा रामचंद्र जी वजनदार आदमी हैं। समझदार आदमी है। विश्वामित्र जी के बारे मे यही सोचा गया कि विश्वामित्र समझदार आदमी हैं बेअकल नहीं है बेवकूफ नहीं है हमारे बच्चों को ले जा रहे हैं तो मारने के लिए नहीं ले जा रहे हैं किसी बड़े काम के लिए ले जा रहे हैं। इस तरीके से ले गये लेकिन उस समय उनको नुकसान मालूम पड़ा था। बहुतों को मालूम पड़ा होगा।

जब लक्ष्मण जी को रामचंद्र जी के साथ भेजने के लिए सुमित्रा ने कहा जाओ बेटा रामचंद्र के साथ साथ जाओ और उनकी धर्मपत्नी ने कहा कि तुम जाओ रामचंद्र जी के साथ साथ जाओ। रामचंद्र जी को वनवास हुआ था लक्ष्मण जी को कहाँ हुआ था लेकिन लक्ष्मण जी भी चले गये कैसे चले गये। सुमित्रा ने कह दिया था और उनकी पत्नी उर्मिला ने कह दिया था। अरे बड़ी खराब थी उनकी धर्मपत्नी और बड़ी खराब थी उनकी माँ अपने बेटे को भेज दिया और राक्षसों की लड़ाई में मारे जाते तो रामचंद्र जी मारे जाते सीता जी को जाना है वनवास तो पिताजी की आज्ञा उनके लिए हुई है लक्ष्मण जी के लिए थोड़े हुई है। लेकिन नहीं लक्ष्मण जी गये। नफा हुआ कि नुकसान हुआ। बताइये। उस समय तो नुकसान हुआ अरे भाई तुमको भेजा नहीं गया तुम बेकार राक्षसों के बीच जा रहे हो जंगल में जा रहे हो भूखे मरने के लिये जा रहे हो नुकसान की बात बताई थी उन्हें हाँ नुकसान की बात थी। पर वास्तव में नुकसान हुआ नहीं वास्तव में नुकसान नहीं हुआ।

हमारे बारे में भी यही हुआ। हमारे बारे में जब हमारे गुरुजी का साक्षात्कार हुआ। उन्होंने यह कहा कि तुमको हमारे कहने पर चलना चाहिये। सब जितने भी हमारे मिलने वाले थे घर वाले थे जितने भी कुटुम्बी थे सब नाराज हो गये सबने कहा बड़ा बेअकल आदमी है बेवकूफ आदमी है किसने कहा है हमने कहा हमारे पूर्व जन्मों के गुरु आये हैं उन्होंने कहा है। अरे कोई सपना देखा है, पागल हो गया है, इसका दिमाग खराब हो गया है ताले में बंद कर दिया पर जिस आदमी ने हमसे कहा था हमारे फायदे के लिये कहा था कि नुकसान के लिए कहा था। फायदे के लिए कहा था। जब आये थे वह साठ वर्ष पहले की घटना को जब मैं याद करता हूँ और इस समय जब अंदाज लगाता हूँ तो मालूम पड़ता है कि नुकसान की बात नहीं कही थी उन्होंने फायदे की बात कही थी। जहाँ इस समय हम आज है उसका और जब १५ वर्ष की उमर क्रम थे उस बच्चे का और इस समय का हमारा स्तर को आप मिलाकर देख लीजिये हमको सलाह मुनासिब दी गई थी कि गलत दी गई थी। नहीं गलत नहीं दी गई थी सलाह बहुत मुनासिब दी गई थी उस सलाह से हमारा फायदा हुआ उस समय मालूम पड़ता था कि नुकसान हो रहा है। २४ वर्ष तक खाना नहीं खाना पड़ेगा जौ की रोटी पर रहना पड़ेगा। यह करना पड़ेगा पढ़ाई लिखाई बंद करनी पड़ेगी यह करना पड़ेगा यह करना पड़ेगा। कितनी बातें बता दी लेकिन उस समय लोगों को मालूम पड़ता था कि नुकसान की बात बताई जा रही है लेकिन वास्तव में वह नुकसान की बात नहीं थी नफे की बात थी।

आज हम आपको इसी तरह की बात बताने को हैं जो आपको शायद यह मालूम पड़ेगी कि हमको नुकसान की बात बताई जा रही है। लेकिन आप यकीन रखिये कि हम नुकसान की बात नहीं बताई जा रही है। आपको नफे की बात बता रहे हैं आपको नफा ही नफा है नुकसान हो जाये तो हमारी जिम्मेदारी है आप हमारे ऊपर यकीन करते हों तो कर लीजिये कि हमारे फायदे के लिए कहा जा रहा है नुकसान के लिए नहीं कहा जा रहा है। क्या कह रहे हैं हम यूँ कह रहे है कि आपकी लम्बी वाली जिंदगी है ४० की होगी, ५० की होगी १०० की होगी जो भी हो यदि उसमें यदि एक साल आप हमारे लिये निकाल दें तो इसमें नुकसान हुआ न हाँ साहब नुकसान हुआ यदि हम १०० रुपया महीना कमाते तो १२०० रुपये का हमारा नुकसान हो गया।

और समय चला गया हमारी खेती में नुकसान हो गया हमारी दुकान में नुकसान हो गया हमारा फलाना नुकसान हो गया और आप सलाह लीजिये किसी से अपनी माँ से पूछिए, धर्मपत्नी से पूछिए, भाई से पूछिए, भतीजे से पूछिए, साले से पूछिए, बहनोई से पूछिए सब यह कहेंगे कि यह बेअकली का बात है और बेवकूफी की बात है। इसमें सिवाय नुकसान के क्या फायदा है तुम्हारा। तुम पागल हो गये हो क्या। ऐसे तो सैकड़ों बाबाजी फिरते हैं, सैकड़ों पंडित फिरते हैं। किसी ने लिख दिया, छाप दिया और उन्होंने कहा तुम चल दिये। नुकसान तुम्हारी समझ में नहीं आता। नुकसान की बात है कि फायदे की बताइये मैं आपको फायदे की बता रहा हूँ। क्या फायदे की बात बता रहे हैं। हम यह फायदे की बात बता रहे हैं कि आप सो रहे हैं और आपको नींद आ गई है आप खुमारी में है। यदि आप अपनी सही स्थिति को जान लें तो आपको बड़ा मजा आ जायेगा। आप कौन है जानते हैं। हमारा नाम राम गोपाल है, मोहन लाल है गुलाब चंद है, नहीं आप न राम गोपाल हैं न गुलाब चंद हैं। आप वो है कि हमने बड़ी मेहनत से और बड़ी मसक्कत से आपको ढूँढ़कर इकट्ठा किया है जिन लोगों के पास पूर्व जन्मों के संस्कार जमा थे और जो इस योग्य थे उनको हमने बड़ी मुश्किल से ढूँढ़ा और बड़ी मुश्किल से जमा किया है। सारी जिंदगी में हमारी एक ही सफलता है कि हमने संस्कारवान व्यक्तियों को इकट्ठा कर लिया है दूसरे लोग संस्कार वान व्यक्ति इकट्ठे नहीं कर पाये। बहुत सी कमेटियाँ हैं, संस्थायें हैं, अमुक हैं, तमुक हैं व्यक्ति तो किसी और के पास भी होंगे ये तो मैं नहीं कहता कि औरों के पास कोई व्यक्ति नहीं हैं हमारे पास हैं और हमारे पास बहुत सही आदमी हैं और हमने ढूँढ़कर निकाले हैं। मेहनत की है पानी में डुबकी लगाई है और डुबकी लगाकर के मोतियों के तरीके से आपको हमने ढूँढ़कर निकाला है और आप समझते ही नहीं। आप तो अपने को किसान समझते हैं, दुकानदार समझते हैं शिक्षक समझते हैं, विद्यार्थी समझते हैं। नौकर समझते हैं न जाने क्या समझते हैं। हम आपको समझते हैं कि आप बड़े कीमती आदमी हैं।

और बड़े महत्त्वपूर्ण आदमी है और ऐसे महत्त्वपूर्ण और कीमती आदमी हैं कि आप अपने महत्त्व का और आप अपने कीमत का ठीक इस्तेमाल करने में समर्थ हो सकें तो आपके लिये भी मजा जाये और हमारे लिये भी मजा आ जाये। दोनों के दोनों ही धन्य हो जायें और दोनों के दोनों ही आज का हमारा यह प्रवचन है इसको सुनकर यह कहे कि इस आदमी ने बहुत ही नेक सलाह दी थी। और अगर हमने इस सलाह को न माना होता तो हम बहुत घाटे में रहे होते। आप हमारा कहना मानिए और हमारी सलाह पर चलिये। हम भी किसी की सलाह पर चले हैं घाटा हमने भी उठाया है। जोखिम हमने भी उठाया है। जोखिम उठाना कोई बहुत बुरी बात नहीं है।

हनुमान् जी ने भी जोखिम उठाया था कुन्ती ने भी जोखिम उठाया था। कुन्ती ने कहाँ से ढूँढ़े थे पाँच बच्चे सामान्य नहीं थे उनके पति के नहीं थे पाण्डु के नहीं थे। वह किसके थे एक सूर्य का बेटा था, एक इन्द्र का बेटा था, एक वरुण का बेटा था, एक वायु का बेटा था और छः देवताओं के ही सब बेटे थे। और उन्होंने सबको भगवान् के सुपुर्द कर दिया। ले जाओ अरे बड़ी पागल थी कुन्ती अपने घर रखती अपने बच्चों की कमाई खाती और अपने घर में मकान बनाती अपनी दुकान चलाती और अपनी खेती करती और सब बच्चों को नौकरी से लगा देती तो सब लड़के बहुत सारा कमाते और मजा आता जेवर पहनते लेकिन कुन्ती कुन्ती ने मुनासिब सलाह दी कि गैरमुनासिब सलाह दी बड़ी मुनासिब सलाह दी और मुनासिब सलाह का परिणाम यह हुआ कि अर्जुन धन्य हो गया युधिष्ठिर धर्मराज हो गया। और अगर श्रीकृष्ण जी के फेर में न आये होते महाभारत में न गये होते तो न बो युधिष्ठिर रहे होते और न धर्मराज रहे होते न पार्थ हुये होते और न वह भीम हुये होते साधारण से व्यक्त रह जाते और सामान्य स्थिति में उनको जीवन यापन करना पड़ता। लेकिन उन्होंने उनका कहना मान लिया तो बहुत ही अच्छा हुआ। क्या कह रहे हम यो कह रहे कि इस समय आपकी बहुत आवश्यकता है।

आप अपने आपको पहचान लीजिये कि सामान्य आदमी नहीं है और असामान्य हैं और आप सामान्य काम के लिये पैदा नहीं हुये हैं असामान्य काम के लिये पैदा हुये हैं। आप नौकरी करने के लिए पैदा नहीं हुये है, आप पढ़ने के लिये पैदा नहीं हुये हैं हमने भी पढ़ा नहीं है हम स्कूल नहीं गये हैं। स्कूल के अलावा हम पढ़े हैं। और नौकरी की है नौकरी भी नहीं की है लेकिन हम नफे में रहे हैं नौकरी करते तो क्या मिल जाता और हम पड़कर के बी.ए हो जाते तो क्या मिल जाता। लेकिन हमने जो किया है जो हमको मिला है वह बहुत फायदे का मिला है। तुम भी जिस लायक हो जो तुम्हारी वास्तविक योग्यता है जन्म- जन्मान्तरों की संग्रह की हुई वह बड़ी योग्यता है। हमारे पास भी जन्म जन्मान्तरों की संग्रह की हुई योग्यता थी इसीलिये हमारे गुरु ने स्वयं हमारे घर आकर के कहा था कि भाई जिस काम में तेरे घर वाले लगाना चाहते हैं उस काम में लगना तेरे लिये ठीक नहीं है। हम जो कहते है वही काम कर। हमने वही काम किया हमने उनका कहना न माना होता घरवालों का कहना माना होता तो तो फिर अपने आपका ज्ञान ही नहीं होता। यह नहीं मालूम होता कि पूर्व जन्मों की कोई संचित संपदा कोई है क्या हमारे पास। उन्होंने दिखाया तो मालूम पड़ा कि हमारा पूर्व जन्मों का संकलन है और पूर्व जन्मों की कोई संपदा है हमारे पास। हम कोई सामर्थ्यवान व्यक्ति हैं और सामर्थ्यवान व्यक्ति हैं तो कोई बड़े काम कर सकते हैं और बड़े काम करने चाहिये।

आपसे भी मैं ठीक वही बात कह रहा हूँ। जो पुरानी घटना मेरे साथ बीती है उन्हीं बातों को मैं कह रहा हूँ और कोई नई बात नहीं कह रहा हूँ। मैं आपसे यह कह रहा हूँ कि यदि आप हमारा कहना माने तो आप नफे में रहेंगे जैसे कि हम नफे में रहे। जिस तरीके से पहले जन्मों के संस्कार हमारे पास जमा थे और उन संस्कारों की वजह से इस जन्म में सफलताओं पर सफलतायें मिलती चली गयी। आप भी यदि कदम उठायेंगे इसी राह पर तो आपको भी सफलता पर सफलता मिलती जायेगी इसी राह पर आपको यह नहीं कहना पड़ेगा कि हम घाटे में रहे और नुकसान में रहे आप बड़े सामर्थ्यवान है लेकिन सामर्थ्यवान होते हुए भी यह बड़े अचम्भे की बात है कि आप अपने आपको पहचान नहीं पा रहे हैं।

सोया हुआ आदमी होता है तो उसको नींद आ जाती है। नींद में पड़ा हुआ आदमी मरे हुए के समान हो जाता है चाहे गाली दो उसको, न उसको अपने शरीर का पता है, न कपड़ों का पता है, नंगा पड़ा है कि उघारा पड़ा है। घर में चोरी हो रही है क्या हो रहा है सोया हुआ है तो मालूम ही नहीं है आप सो गये मालूम पड़ते हैं इसलिये मुझे आपको जगाना है। जगाने के लिये मैं प्रार्थना करता हूँ आपसे कि आप अपने आपको जगा लीजिये सोयी हुई स्थिति में पड़े रहेंगे तो बड़ी खराब बात हो जायेगी आप खुमारी में पड़े रहेंगे तो सड़क में पड़े रहेंगे नाली में पड़े रहेंगे, नाक रगड़ते रहेंगे और आप शराबी कहलायेंगे और बस थोड़ी देर के लिये मजा तो आ जायेगा लेकिन फिर आप नुकसान में जायेंगे। अगर आप इस खुमारी में जिस स्थिति में अभी है आप उसी स्थिति में बने रहेंगे हमेशा तो आप विश्वास रखिये आप एक ऐसा मौका गवा देंगे जैसा कि मौका फिर कभी नहीं आने वाला। फिर कभी नहीं आयेगा यह मौका। यह मौका आप मानकर चलिये एक अभूतपूर्व मौका है ऐसा मौका है जिसमें ५०० करोड़ आदमी का भाग्य बिगड़ सकता है या बन सकता है दो का दोराहा है। यदि हम सब मिलकर काम करे तो हम ५०० करोड़ आदमी का भाग्य बना भी सकते हैं। और हम लोग सब मिलकर लापरवाही करें और अपने अपने स्वार्थों में लगे रहें और अपने- अपने मतलब की बात सोचे तो ५०० करोड़ आदमी के साथ विश्वासघात भी कर सकते हैं। बड़ा एक इस तरह का मौका है जिसमें चौराहे पर खड़े है एक जीवन का चौराहा है एक मरण का चौराहा है। मरण का चौराहा कौन सा है आपको कितनी बार बता चुके हैं कितनी भविष्यवाणियाँ बता चुके हैं हमने आपको इस्लाम धर्म की भविष्यवाणियाँ बताई, चौदहवीं सदी वाली बात बताई, सेवन टाइम की ईसाइयों वाली बात बताई। भविष्य पुराण की बात बताई और वैज्ञानिकों की बात बताई ज्योतिषों की बात बताई सबकी बात बता चुके हैं। कि यह बड़ा खराब समय है और वैसे भी दिखाई पड़ता है आपको ।। आपको दिखाई नहीं पड़ता जो अगर स्टार वार शुरू हो गया तो तो फिर आप समझिये मंगल और बृहस्पति के बीच में पृथ्वी से बड़ा एक गृह था वहाँ भी बड़ी विज्ञान की उन्नति हो गई थी और वहाँ विज्ञान की उन्नति को गलत इस्तेमाल किया और वह चूरा चूरा हो गये चूरा चूरा होकर वह गृह कही एक टुकड़ा कहीं जा पड़ा, एक टुकड़ा कहीं जा पड़ा एक कही चला गया एक कही चला उसका नामोनिशान खतम हो गया यह भी ऐसा मौका है कि यदि स्टार वार शुरू हो और परमाणु युद्ध शुरू हो तो हमारी और आपकी जिंदगी की बात तो अलग, हमारे आपके जमीन जायदाद खेत, मकान, दुकान, नौकरी की बात तो अलग हम जिस जमीन पर बैठे हुये हैं इसका नाम निशान का भी पता नहीं चलेगा यह ऐसा समय है। क्यों साहब ऐसा समय नहीं ऐसा भी नहीं ऐसा भी समय है कि अगर लंका के रावण का राज्य बना रहे तो न कोई ऋषि बचेगा, न कोई मुनि बचेगा, न कोई जनता बचेगी सबको राक्षसों का वंश जो एक लख पूत सवा लख नाती यह सब मिलकर के सबको खा जायेंगे और सबका खेत छीन लेंगे सबका पैसा छीन लेंगे सबकी औरतें छीन लेंगे और हा−हाकार मचा देंगे। ऐसा भी समय है कि अगर आप थोड़ी सी हिम्मत दिखायें कम से कम इतनी दिखा दें जितनी की रीछ बंदरों ने दिखा दी थी। रीछ बंदर आपसे बेअकल थे कि आपसे बुद्धिमान थे। रीछ बंदरों ने देखा कि फिर ऐसा मौका फिर कभी नहीं आयेगा इसलिये इस मौके पर हमको अपने छोटे लाभों के बारे में विचार नहीं करना चाहिये बल्कि बड़े लाभों के बारे मे विचार करना चाहिये।

रीछ बंदरों का जीवन धन्य हो गया। लंका की पराजय हो गई और रामराज्य स्थापित हो गया। यदि रामराज्य स्थापित न हुआ होता तब रावण की पराजय न हुई होती तब और सीता को वापस नहीं लाया गया होता तब तो जो हम और आप राम नाम लेते हैं कहाँ लेते राम नाम। यो कहते कि उसकी बीबी को तो रावण चुरा ले गया इतनी हिम्मत तो थी नहीं कि बीबी को छुड़ा लाता राम काहे का भगवान् काहे बात का। उन्होंने रीछ बंदरों ने भगवान् बना दिया राम को। रीछ बंदरों ने रामराज्य की स्थापना कर दी। किसने स्थापना की मनुष्यों ने स्थापना की। चेतन में सामर्थ्य होती है जड़ में सामर्थ्य नहीं होती। बन्दूकों में सामर्थ्य नहीं होती तोपों में सामर्थ्य नहीं होती परमाणु बमों में सामर्थ्य नहीं होती मनुष्यों की जीवात्माओं में और मनुष्यों के भीतर जो चेतना समाई हुई है उसमें शक्ति होती है। आपके भीतर बहुत शक्ति है और उस शक्ति का ठीक इस्तेमाल इस समय करें और आप सोये नहीं। यह न तो इस बात का समय है कि आप अपने आपको भूल जाये कि आप कौन हैं और न यह इस बात का समय है कि आप यह देखें कि सारी दुनिया का भाग्य लिखा जा रहा है यह ऐसा वक्त है जैसा कि संविधान किसी जमाने में लिखा गया था हिन्दुस्तान का संविधान यह है इसी तरीके से मानव जाति का भविष्य और भाग्य अभी लिखा जा रहा है और उस लिखे हुये भाग्य और भविष्य में आपका कोई योगदान होना चाहिये कि नहीं। होना चाहिये। मेरा ख्याल है कि आपका योगदान जरूर होना चाहिये। और आप योगदान करेंगे तो कोई अच्छी बात है। नहीं साहब तो हम आपका कहना क्यों माने। तो आप हमारा कहना इसलिये मानिए कि हम जिम्मेदार आदमी हैं। और हम अपने जीवन में सफल आदमी हैं। जो बात हम कहते हैं जानबूझकर कहते हैं समझ बूझकर कहते हैं अपनी जबान का ख्याल रखते हुए कहते हैं आपकी भलाई का ध्यान रखते हुए कहते हैं और ५०० करोड़ मनुष्य हमारे दिमाग के आसपास घूमते हैं उनके जीवन मरण का प्रश्न देखकर आपसे कहते हैं। कि आप थोड़ा सा समय निकाल दीजिये हमारे लिए हमें बहुत सख्त जरूरत है। काहे की हमें भी साहब बहुत जरूरत है। आपको भी होगी मैं यह थोड़े कहता हूँ कि आपको खेती नहीं करनी मैं यह थोड़े कहता हूँ कि आपके पास दुकान नहीं है। मैं यह थोड़े कहता हूँ कि आप एक साल फैल हो जायेंगे इम्तहान में तो कोई बहुत बड़ी मुसीबत आ जायेगी। नहीं मैं कहा कह रहा हूँ आपसे थोड़ा यह कह रहा हूँ कि आप इस समय के लिए निकाल लीजिये।

विश्वामित्र को जरूरत पड़ी थी तो उन्होंने दशरथ जी के बच्चे थोड़े समय के लिए माँगे थे कि भाई थोड़े समय के लिए दे दो हमें क्यों? क्योंकि हमें यज्ञ की रक्षा करनी है। कितने दिन में कर दोगे वापिस अरे यही कोई साल छ: महीने में आ जायेंगे। लेकिन साल छ: महीने में कहाँ आये वह तो भगवान् हो गये। घर- घर में पहुँच गये। जन- जन की जिव्हा पर पहुँच गये। तुलसीदास के राम बन गये। बाल्मीकि के राम बन गये और सारे संसार के राम बन गये। कहाँ आये। खैर ठीक है अभी तो हम आपसे कोई बात नहीं कहते थोड़े समय की बात कहते हैं कि आप एक साल का समय निकाल सके तो अच्छी बात है। किसके लिए हमने भी विश्वामित्र की तरीके से यज्ञ किये हैं और हमारे यज्ञ सामान्य नहीं होते हमने असामान्य काम किये हैं हमें आप सामान्य आदमियों में गिनना और सामान्य आदमी एक दूसरे से जैसे माँगते जाँचते रहते हैं और सलाह देते रहते हैं आप सामान्य मत मानना हमारी सलाह को भी असामान्य मानना और हमारा जो कहना है उसको भी असामान्य मानना। असामान्य बात कह रहे हैं। असामान्य बात कैसे कह रहे हैं हमारी पिछली जिंदगी पर निगाह डाल लीजिये यह सारी की सारी बातें असामान्य हैं। और इससे आगे जिस काम के लिए हमको आपकी जरूरत पड़ी है वह काम भी बहुत असामान्य है। उससे भी बड़ा असामान्य है। पहले की बातें मालूम हैं आपको अरे दो पाँच बातें तो मालूम हुई है आपको सारे के सारे ग्रंथ जो ऋषियों के थे वह कहीं दिखाई भी नहीं पड़ते थे। किसी को मालूम भी नहीं था। हमने काश्मीर लाइब्रेरी में से ढूँढ़ कर मंगाये कहीं कोई से मंगाया पता भी नहीं था गायब हो गये थे। लायब्रेरियों में जला दिये गये अरे वेद तो है ही नहीं वेद तो वह उठा ले गया रावण यहाँ है नहीं वह ।। सारी की सारी बातें सामान्य बात थी कि असामान्य बात थी।

अच्छा हमारे हजार कुण्ड वाले यज्ञ की बात आपको याद है आपने हमारे अनुष्ठान तो तो देखे नहीं है आप हमारे संग रहे नहीं है आप हमारे संग बैठे नहीं हैं। उसकी तो हम नहीं कह सकते लेकिन अभी भी लाखों आदमी जिंदा हैं जिन्होंने हमारा सन् ५८ का यज्ञ देखा है हजार कुण्डीय और जिसको देखकर लोग अचम्भे में पड़ गये थे कि जिस आदमी की जेब खाली हों दोनों जेब खाली हों जिस आदमी ने यह कसम खायी हो हमको किसी आदमी के सामने हाथ नहीं पसारना है और हमको किसी आदमी से यह नहीं कहना है कि हमें एक पैसे की जरूरत है लेकिन तो भी हमने इतना बड़ा आयोजन किया था आयोजन पूरा हुआ कि नहीं हुआ था न एक आदमी का एक्सीडेंट हुआ न एक आदमी की चोरी हुई न कोई बीमार पड़ा और न कोई घटना हुई सारी की सारी चीजों का उसमें पचासों लाख खर्चा हुआ था तो पूरा हो गया आपको नहीं याद है। मैं आपको इसलिए कहता हूँ हमारी बातें हमारे जीवन का अनुभव इस लायक है कि आप हमको प्रामाणिक आदमी मान ले और यह मानकर चले कि कोई कहने वाला सामान्य आदमी नहीं है कोई बाजारू आदमी नहीं है कोई यार बाज़ आदमी नहीं है। निरर्थक आदमी नहीं है आवारागर्दी में घूमने वाला आदमी नहीं है। कोई वजनदार और भारी भरकम आदमी है और भारी भरकम आदमी ने भारी भरकम काम किया है उसके लिए जरूरत पड़ी है जरूरत नहीं भी पड़ती तो आपको नहीं भी कहता चलिये। लेकिन जरूरत पड़ी है। हजार कुण्ड का यज्ञ किया था तो हमको जरूरत पड़ी थी क्योंकि हजार कुण्डीय यज्ञ में एक एक कुण्ड में पाँच पाँच आदमी बिठाये गये और एक बार में ५ हजार आदमी बैठे और दस बार बैठाया तो पचास हजार आदमी बैठे ऐसे पाँच दिन तक यज्ञ चला उसमें कितने लाखों आदमी की जरूरत पड़ गयी। जरूरत पड़ी इसलिये बुलाया जरूरत नहीं पड़ी होती तो हम नहीं भी बुलाते। अब हमने नये कदम उठाये हैं और उनको सुनकर के कोई आदमी भरोसा नहीं करेगा पर मैं आपसे कहता हूँ कि आप भरोसा कर लीजिये हमारा। कोई आदमी से हम कहेंगे कि हम एक लाख कुण्ड का यज्ञ करने वाले हैं यह बात आपकी समझ में आयेगी नहीं आपकी समझ में नहीं आयेगी। बड़े से बड़े यज्ञ कहीं हुये हैं अभी भोपाल में एक आदमी ने यज्ञ किया था इससे पहले एक सज्जन ने दिल्ली में किया था १००-१०० कुण्ड के थे बस और कोई बड़े यज्ञ थे बड़े यज्ञ नहीं थे हजार कुण्डीय यज्ञ किये थे उन्होंने हजार कुण्डीय तो हमने किये हैं बस और हमने अकेले एक मथुरा में नहीं किये थे फिर हमने हमारा कार्यक्षेत्र सात प्रान्तों में है जिनको हम हिन्दी भाषी प्रान्त कहते हैं उनमें कार्यक्षेत्र था तो सातों के सातों में उसी प्रकार के एक- एक हजार कुण्डीय यज्ञ किये थे।

अबकी बार वातावरण के संशोधन के लिए हमको फिर उतने ही बड़े यज्ञ की जरूरत पड़ी है। कितने बड़े की वातावरण १०० कुण्डीय यज्ञ से हमने सोचा था कि शायद जैसे भगवान् राम ने दशाश्वमेध किये थे और भगवान् श्रीकृष्ण ने राजसूय यज्ञ किया था ऐसे एक- एक यज्ञ से ही काम चल जायेगा परिस्थितियाँ ऐसी आपको तो नहीं मालूम पड़ती हैं पर हमको जो परिस्थितियाँ मालूम पड़ती है वह ऐसी भयंकर हैं ऐसी भयंकर हैं कि उसको देखकर के हमको एक लाख कुण्डों का संकल्प करना पड़ा। बड़ी ताकतों का मुकाबला करने के लिए बड़ी ताकत चाहिये आपने देखा न कि कितनी फौजें इकट्ठी हो गई हैं कितनी सेना इकट्ठी हो गई है और कितने एटम बम इकट्ठे हो गये हैं और उनके कितने स्टार वार वाले हथियार पैदा हो गये हैं। और दुनिया में क्या से क्या हो गया है इसके लिए सामान्य वस्तुओं से सामान्य वस्तुओं बड़ा काम चलने वाला नहीं है एक लाख कुण्ड की योजना तो आपने पढ़ ली होगी पढ़ी कि नहीं पढ़ी पढ़ ली होगी। अच्छा दूसरी योजना पढ़ी आपने नहीं पढ़ी। किसी अंक में निकल गयी है या निकलने वाली है भगवान् बुद्ध के जमाने में दो विश्वविद्यालय स्थापित हुये थे। एक नालंदा का हुआ था एक तक्षशिला का हुआ था दो यूनिवर्सिटी थी अब तो यूनीवर्सिटी नाम रख लेते हैं और उसमें जो विद्यार्थी होते हैं लोकल विद्यार्थी होते हैं एकाध जिले के विद्यार्थी होते हैं। सारे भारत के होते है सारे भारत में तो ऐसी न जाने कितनी यूनीवर्सिटी हैं। सारे विश्व में अरे बाबा सारे विश्व में एक एक देश में अमेरिका में ६००० यूनिवर्सिटी हैं और कहाँ कहाँ कितनी कितनी यूनीवर्सिटी है विश्व में। विश्वविद्यालय काय बात का। लेकिन विश्वविद्यालय में ३०००० धर्मप्रचार पढ़ायें जा रहे थे हमने एक विश्वविद्यालय चलाने का संकल्प किया है उसमें एक लाख प्रचारक चाहिये।

एक लाख प्रचारक एक लाख हाँ भगवान् बुद्ध के पास थे नई थे तो सही बहरहाल उस समय थे जब भगवन् बुद्ध का स्वर्गवास हो गया था उसके बाद जिन लोगों ने दीक्षा ली थी उस समय तो थे। गाँधी जी के आन्दोलन में एक लाख आदमी थे सत्याग्रही नहीं वह पहले एक बार चले गये दुबारा गये तिबारा गये चौबारा इस तरह से जेल जाने वालों की संख्या तो एक लाख हो गयी होगी लेकिन व्यक्ति एक लाख नहीं थे एक लाख व्यक्तियों को हमने प्रशिक्षित करने का संकल्प लिया है। खुली हुई यूनीवर्सिटियाँ हिन्दुस्तान में कई जगह स्थापित होने वाली हैं अभी। उनमें कितने विद्यार्थी होंगे। किसी में हजार होंगे किसी में ५०० होंगे किसी में २००० होंगे लेकिन एक लाख विद्यार्थियों का प्रशिक्षण करने का विद्यार्थियों को नहीं धर्मप्रचारकों को विद्यार्थियों का नहीं युग का सृजन करने वालों का ऐसे एक लाख व्यक्ति हमको तैयार करने हैं ऐसा एक विश्वविद्यालय चलाना है जिसमें से ऐसे विद्यार्थी निकले, ऐसे विद्यार्थी निकले जो जहाँ कहीं भी जायें तहलका मचाते हुये चले जायें। कुमार जीव तक्षशिला विद्यालय से पढ़कर के गये थे और चायना में जब गये तो उन्होंने सारी चायना को बुद्ध बना दिया, जापान को बना दिया, कोरिया को बना दिया मंगोलिया को बना दिया मंचूरिया को बना दिया। यह सारे के सारे उस इलाके के जितने भी देश थे बड़े बड़े वह सारे एक आदमी ने बना दिये। कुमारजीव उसका नाम था बिहार के पास पटना के एक गाँव के रहने वाले ब्राह्मण थे यहाँ पढ़े थे तक्षशिला में फिर वह वहाँ चले गये थे। विद्यार्थी थे अरे विद्यार्थी बड़े जबरदस्त होते हैं आपने विद्यार्थियों को क्या समझा है। विद्यार्थी आपने प्रेम विद्यालय वृन्दावन का सुना है नाम। प्रेम महाविद्यालय के लिए जब राजा महेन्द्र प्रताप ने जब अध्यापक बुलाये थे तो बाबू सम्पूर्णानंद जी को बुलाया था और आचार्य जुगल किशोर को बुलाया था प्रोफेसर कृष्णचन्द्र को बुलाया था ऐसे- ऐसे हिन्दुस्तान के गिने चुने तो अध्यापक बुलाये थे और विद्यार्थी ऐसे ढूँढ़े थे कि जब स्वराज्य आन्दोलन छिड़ा तो सारे विद्यार्थियों ने सारी यू०पी० को उठाकर के खड़ा कर दिया था उस जमाने में कहते हैं कि यू०पी० सबसे आगे था अब तो आगे है सब बातों में मुझे मालूम नहीं है।

लेकिन पहले जमाने में कांग्रेस के जमाने में यू०पी० सबसे आगे था प्रधानमंत्री भी उसी में से हुए और उसी में से हो रहे हैं और अभी भी यू०पी० आगे है। यह यू०पी० को आगे बढ़ाने में प्रेम महाविद्यालय के विद्यार्थियों का योगदान हाँ बड़ा योगदान है। गुरुकुल काँगड़ी का योगदान गुरुकुल काँगड़ी का योग दान हाँ बड़ा योगदान है। काशी विद्यापीठ का योगदान हाँ बड़ा योगदान है। ऐसे ऐसे विद्यालय जहाँ कि छात्र बड़े जबरदस्त होते थे जो कि दुनिया को हिलाकर रख दें ठीक उसी प्रकार का स्थापित करने की बात सोची है तो अभी आपने पढ़ा है कि नहीं पढ़ा है अरे विचार किया आपने अरे नहीं हम विचार थोड़े करते हैं हम संकल्प करते हैं विचार करते हैं योजना बनाते हैं नहीं न हम कोई विचार करते हैं और न कोई योजना बनाते हैं। हम सीधा संकल्प करते हैं इसका विकल्प यह पूरा होगा कि नहीं होगा यह मत कहिये। जो पूरा नहीं होगा वह हमारे दिमाग में ही नहीं आयेगा। जो पूरा नहीं होगा उस पर हम विचार ही नहीं करेंगे। जो पूरा नहीं होगा उसके लिए हमारी हिम्मत ही नहीं पड़ेगी। क्यों ?? जहाँ से हमको संदेश आते हैं जहाँ से सिंगल हमारे लिये डाउन किये जाते हैं वहाँ से बता दिया जाता है कि लाइन क्लीयर है।

बिकल लाइन साफ है आप अपने इंजन को उनके डिब्बों को बराबर धड़धड़ाते हुये और बराबर लेते हुये चले जाइये कोई किसी तरह का जोखिम नहीं है और यहाँ पर किसी तरह की कोई खराब संभावना नहीं है। और क्या संकल्प किया आपने। आपको हँसी आयेगी आप कहेंगे लाखों लाखों में ही बात करते हैं आप। दो संकल्प तो ऐसे है जो शायद आपको मालूम होगा कि २४० करोड़ जप तो रोज हो जाते हैं। गायत्री के और आपने कितने किये थे हमने २४ लाख के किये थे। अब २४० करोड़ हो जाते हैं और अब २४० लाख चालीसा का संकल्प किया था आप तो लाखों करोड़ों की बात कहते हैं भाई साहब हम लाखों की बात कहते हैं और करोड़ों की बात कहते हैं। और अगर आगे जरूरत पड़ेगी तो हम अरबों खरबों की बात करेंगे। ५०० करोड़ व्यक्तियों की बात कहते हैं करोड़ से कम की गिनती नहीं आती।

अभी अभी जो हमारे नये संकल्प हैं इसके लिए हमने आपसे समयदान माँगा है उसमें दो काम पहले जिसके लिए हमने आपसे कहाँ भी नहीं था एक बार अखण्ड ज्योति में छापा था और वह दोनों की काम चालू हो गये गायत्री चालीसा के पाठ भी चालू हो गये और वह जो था २४० का पाठ वह भी चालू हो गया। अब इससे आगे का संकल्प जो हीरक जयंती मनाने का है लोगों ने कहा था कि साहब फलाने बाबाजी को सोने में तोला गया, चाँदी में तोला गया रुपयों में तोला गया फलाने को अमुक में तोला गया तमुक में तोला गया हमने कहा हम तो लोगों के मनों को ढूढ़ेंगे और भावनाओं को ढूढ़ेंगे तुम्हारे और भावनाओं में क्या है। पैसा तो आप चोरी से भी ला सकते हैं बेईमानी से भी इकट्ठा करते हैं किसी को कत्ल करके भी लाख करोड़ रुपया इकट्ठा कर सकते हैं। तो क्या हमने आपसे माँगा था क्या नहीं माँगा नहीं था जो आपके पास है वह आप दे रुपया आप माँगते हैं नहीं रुपया हमने नहीं माँगा। हीरक जयंती के समय में आप कपड़ा और सब करे बड़ा शानदार जुलूस निकालें आपका यह करे नहीं साहब हमने लोगों से मना कर दिया था अब हम जिन कामों में लगे हुये हैं वह इतने शानदार काम हैं कि न हमें जुलूस निकलवाने की फुरसत है न हमें अमुक काम की फुरसत है न हमें किसी से सम्मान पाने की फुरसत हैं न हमें अपने ऊपर चवर डुलवाने की फुरसत है न किसी से आरती उतरवाने की फुरसत है हम चौबीसों घंटे अपने काम में लगे रहते हैं और जो काम हमको करने पड़ रहे हैं वह इतने भारी और जबरदस्त हैं कि जिसके बारे में कभी आपको हमारे मरने के पीछे पता चलेगा कि जब गुरुजी एकान्त सेवन कर रहे थे सूक्ष्मीकरण करते थे तो क्या काम करते थे तो यह बात अभी बता दें नहीं यह बात अभी बता देंगे तो मालूम पड़ेगा कि अपनी शेखी मार रहे हैं।

और उसके अलावा क्या क्या संकल्प किये है और इसके अलावा हमने यह संकल्प किया है कि २४ लाख पेड़ लगायेंगे काहे के पेड़ लगायेंगे हवन सामग्री के लिये जब आपको जरूरत होगी गाँव गाँव होगे और घर घर होंगे जब यज्ञायोजन होंगे तो आप कहाँ से लायेंगे लकड़ी इसलिए अभी से हम पेड़ लगाने की बात कहते हैं बड़े- बड़े पेड़ पीपल के नहीं पीपल तो २५ साल में तैयार होता है। २४ लाख हमने पेड़ लगाने का भी संकल्प लिया है। दीवारों पर वाक्य लिखने का भी संकल्प लिया है। टूटे-फूटे हुए मंदिर पड़े हैं इसमें हमें शरम आती है टूटा हुआ फूटा हुआ गिरजा कहीं नहीं है आप पूरे संसार से एक तरफ से घूम आइये आपको कहीं टूटे फूटे गिरजे नहीं मिलेंगे। टूटी फूटी मस्जिदें नहीं मिलेंगी। कही टूटी फूटी कोई चीज नहीं मिलेगी। टूटी फूटी हिन्दुओं के मंदिर मिलेंगे इनको हमने जीर्णोद्धार करने के लिये संकल्प किया है। विचार किया है विचार नहीं बाबा संकल्प योजना बनाइये योजना नहीं बनाई संकल्प किये हैं। उस संकल्प में आप भी भागीदार बन जायें तो बड़ा अच्छा हो किसी दो एक आदमी की सेवा कर देते हैं तो आदमी को बड़ा संतोष होता है किसी दो एक भिखारी की सहायता कर देते हैं तो बड़ा संतोष होता है। किसी आदमी पर मुसीबत आ जाये एक्सीडेंट हो जाये पैर में चोट लग जाये उसके लिए सहायता कर दें तो बड़ा संतोष होता है लेकिन जहाँ ५०० करोड़ व्यक्तियों के भाग्य और भविष्य का निर्माण करने का प्रश्न है उस काम के लिये हम आपसे समय माँगते हैं तो क्या बुरा करते हैं। और आपका क्या नुकसान करते हैं इसके बदले में जो मिलेगा वह लाटरी लगाने से ज्यादा मिलेगा आपको एक रुपये की लाटरी लगाते हैं दो रुपये की लाटरी लगाते हैं और वह खुल जाये तो न खुले तो बट्टे खाते में खुल जाये तो लाखों रुपये का फायदा हो जाता है। तो क्यों साहब आप ऐसी लाटरी बता रहे हैं जिसमें नुकसान न हो। हाँ हम ऐसी ही लाटरी बता रहे हैं। हम आपको यह बता रहे हैं कि आप एक साल का समय लाटरी में लगा दीजिये उसके बदले में जो मिलेगा वह हम बतायेंगे समय आने पर अभी समय नहीं आया है इसलिये नहीं बताते हैं इसके बारे में। अभी तो आपसे एक साल के समय की याचना करते हुए और इस समय की बात समाप्त करते हैं।

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