गीताजी का ज्ञान हर युग, हर काल में हर व्यक्ति के लिए मार्गदर्शन देता रहा है। गीतामृत का जो भी पान करता है, वह कालजयी बन जाता है। जीवन की किसी भी समस्या का समाधान गीता के श्लोकों में कूट- कूट कर भरा पड़ा है। आवश्यकता उसका मर्म समझने एवं जीवन में उतारने की है। धर्मग्रन्थों में हमारे आर्ष वाङ्मय में सर्वाधिक लोकप्रिय गीताजी हुई है। गीताप्रेस गोरखपुर ने इसके अगणित संस्करण निकाल डाले हैं। घर- घर में गीता पहुँची हैं, पर क्या इसका लाभ जन साधारण ले पाता है। सामान्य धारणा यही है कि यह बड़ी कठिन है। इसका ज्ञान तो किसी को संन्यासी बना सकता है इसलिये सामान्य व्यक्ति को इसे नहीं पढ़ना चाहिए। साक्षात पारस सामने होते हुए भी मना कर देना कि इसे स्पर्श करने से खतरा है, इससे बड़ी नादानी और क्या हो सकती है। गीता एक अवतारी सत्ता द्वारा सद्गुरु रूप में योग में स्थित होकर युद्ध क्षेत्र में कही गयी है। फिर यह बार बार कर्त्तव्यों की याद दिलाती है तो यह किसी को अकर्मण्य कैसे बना सकती है। यह सोचा जाना चाहिए और इस ज्ञान को आत्मसात किया जाना चाहिए। गीता और युगगीता में क्या अंतर है, यह प्रश्र किसी के भी