व्यक्तित्व निर्माण युवा शिविर - 1

शिविर की प्रयाज प्रक्रिया (आयोजकों द्वारा)

<<   |   <   | |   >   |   >>

(क) शिविर हेतु प्रस्तावित स्थल का पूर्व अवलोकन:-


    अवलोकन करते समय ‘शिविर’ स्थल का चयन (स्थान कैसा हो) शीर्षक के सभी बिन्दुओं का विशेष ध्यान रखेंगे। प्रथम चरण में आयोजकों के अनौपचारिक बैठक कर लें। यदि स्थिति संतोषजनक हो तो आगे कदम उठाने की मानसिकता बनाए। यदि सम्बन्धित परिजन आयोजक मण्डल भलीभांति विचार विमर्शकर एकमत होकर कार्यक्रम करना निश्चत कर लिए हों तो पम्पलेट छपवा सकते हैं, अन्यथा आगामी बैठक के बाद छपवाए।


(ख) पहली बैठक:-


    शिविर लगने के दो माह पूर्व पहली बैठक सम्पन्न हो जाए। बैठक में आयोजन मण्डल के सभी सदस्य सम्बन्धित क्षेत्रों के युवा, आर्थिक सहयोग देने वाले परिजन, प्रभावशाली व्यक्ति, शिविर को सम्पन्न करने में आदि से अन्त तक समयदान करने वाले बाहरी कार्यकर्ता भी आमन्त्रित कर लिए जाए। क्षेत्र में व्यक्तिगत सम्पर्क द्वारा शिविरार्थीयों को पंजीकृत करने के कार्य में सहयोग करने वाले जमीनी स्तर के कार्यकर्ता, जिनका क्षेत्र में सघन जनसम्पर्क हो। प्रज्ञा मण्डल व महिला मण्डल (सम्बन्धित स्थानों के)सदस्य।


(स) बैठक में सम्मिलित किए जाने वाले चर्चा के बिन्दु:-


(1) शिविर उद्देश्य एवं लाभ (उदाहरण सहित) समझाए।

(2) शिविरार्थीयों हेतु आवश्यक नियम (शिविरार्थी कौन होंगे, शिविर में भाग लेने के नियम क्या होंगे आदि)।

(3) शिविरार्थीयों को तैयार करने की पद्धति:-

शिविरार्थीयों व उनके पालकों से हमारे कार्यकर्ता व्यक्तिगत सम्पर्क करें एवं सर्वप्रथम पम्पलेट में उल्लेखित विषयों यथा- योग कक्षा, ब्रह्मचर्य साधना, व्यक्तित्व निर्माण के सूत्र ( Personality development art of Living ) व्यसन मुक्ति रैली, खेलकूद मनोरंजन आदि का जिक्र करते हुए बताए कि-

    ‘‘ऐसे शिविरों में सैकड़ों रूपये फीस देकर लोग जाते हैं। परन्तु आपको लगभग मुफ्त में ही ऐसे आध्यात्मिक पिकनिक में भागी करने तथा योग जैसे विषय में मास्टर बन जाने का अवसर मिल रहा है। शिविर में जो जीवन विद्या सिखाई जाएगी, उसे किसी भी विद्यालय, महाविद्यालय के कोचिंग इंस्टीट्यूट में मोटी फीस देकर भी नहीं सीखी जा सकती। केवल पढ़ लेखकर डिग्री ले लेना या सीख लेना ही पर्याप्त नहीं है। जीवन को सही तरीके से जीने और अपनी समस्याओं के समाधान के लिए स्वयं समर्थ बनने के प्रशिक्षण भी जरूरी है। खासकर युवाओं में इस विषय की समझ विकसित होने से उनके जीवन में चमत्कारिक मोड़ आ जाते हैं। उनका कार्यकल्प हो जाता है। इस बात की गारंटी है कि आपको शिविर में न तो बोरियत होगी न ही समय की बर्बाद लगेगी। बल्कि शिविर समापन के दिन आपको लगेगा कि इसकी अवधि कुछ दिन और बढ़ा दी जाती तो अच्छा होता। आप इस बात को स्वयं महसूस करेंगे। अत:इस आध्यात्मिक पिकनिक जैसे-अद्धत कार्यक्रम में जरूर भागीदारी बनें।’’


    यदि युवा-युवतियाँ उपरोक्त बातों से सहमत होते हैं, तो उनका पंजीयन (निर्धारित प्रपन्न में) कर लें। इस कार्य के लिए युवा युवतियों से एक से अधिक बार सम्पर्क करना होगा। शिविरार्थी कवल अपने परिचितों की प्रेरणा से ही शिविर में आते हैं, केवन सम्पलेट के प्रचार या मध्यस्थता के आधार पर नहीं आते, यह बात विशेष रूप से ध्यान रखने योग्य है।

    युवतियों को तैयार करने हेतु उनके पालकों को समझाएँ कि शिविर स्थल पर लडक़े व लड़कियों की आवास व्यवस्था पृथक-पृथक व पूर्ण सूरक्षित रहेगी। लड़कियों के लिए श्रेष्ठ व आदर्श कन्या तथा वधू बनने की पृथक से कक्षा भी होगी।

(4) प्रयाज टोली- शिविरार्थी तैयार करने हेतु प्रयाज टोली गठित कर दी जाए जिनका कार्य निम्रानुसार होगा-

कार्य :-

(१) शिविर स्थल के आस-पास पूर्व में एक दिवसीय युवा जागरण शिविर के प्रथम एवं द्वितीय चरण सम्पन्न हो चुका हो। शहरी क्षेत्रा में विभिन्न वार्डों में एक दिवसीय युवा शिविर करना चाहिए।

(२) ऐसे दस शिविर सम्पन्न होने के पश्चात् यह छ: दिवसीय आवासीय शिविर का आयोजन होता है।

(३) इस शिविर में भागीदारी हेतू उन्हीं शिविराॢथयों को आमंत्रित किया जाता है जो पूर्व में एक दिवसीय शिविर के दोनों चरणों में सम्मिलित हुए हो  तथा कुछ न कुछ रचनात्मक गतिविधियों में संलग्र हो।

(४) उपरोक्त युवाओं से सम्पर्क करने हेतू कार्य कर्ताओं की टोली को भ्रमन करना होगा।

(५) शिविर स्थल के चयन संबंधी जानकारी....।

(६) समय सारिणी बनाते समय ध्यान देने योग्य बातें-


१. गम्भीर बौद्धिक (सैद्धांतिक) विषया की कक्षाएँ प्रात:काल योग के पश्चात ही हो  क्योंकि मस्तिष्क में गंभीर विषयों को ग्रहण करने की क्षमता प्रात:काल अधिक होता है।

२. प्रायोगिक कक्षाएँ जैसे-व्यसन मुक्ति, नारी जागरण, स्वावलम्बन, जैविक कृषि, बाल संस्कार शाला प्रशिक्षण, प्रर्यावरण आदि प्रयोगिक विषय यथासम्भव भोजनोपरान्त अपरान्ह में हो। जिससे आसपास के क्षेत्र के परिजनों को भी शामिल होने का अवसर मिल सके।

३. संस्कार शाला आचार्य प्रशिक्षण अन्तिम के पहिले दिन रखा जाए। तीन चार दिन बीत जाने पर शिविरार्थीयों में सेवा का मानस बन चुका होता।

४. गायत्री महाविज्ञान, संस्कार या युग निर्माण योजना जैसे विषय आरम्भ में न हो। शुरुआत में स्वास्थ्या, व्यक्तित्व निर्माण के सूत्र, सफलता के सूत्र जैसे विषय रखे जाएँ।

५. ब्रह्मचर्य साधना एवं नारी स्वास्थ्य सुसंतति उत्पादन की कक्षा की व्यवस्था युवक एवं युवतियों के लिए एक समय में पृथक-पृथक हो। बहिनों की कक्षा महिला कार्यकर्ता एवं भाईयों की कक्षा पुरुष कार्यकर्ता द्वारा लेना मर्यादा की दृष्टि से उचित होता है।

६. व्यसन मुक्ति की कक्षा एवं व्यसन मुक्ति रैली (दोनों एक ही दिन क्रमश:) शिविर के तीसरे दिन होने से शिविरार्थीयों का स्वस्थ मनोरंजन होता है, साथ ही वे एकरसता से बच जाते हैं।

<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118