वैज्ञानिक अध्यात्म के ऐतिहासिक परिदृश्य की जिज्ञासा ने उन्हें
रोमांचित कर दिया। उनकी नीली आँखों की चमक थोड़ा और गहरी हुई।
उनके गुलाबी होंठ मुस्करा उठे। उन्होंने आहिस्ते से पलकें झपकाईं, हल्के से अंगड़ाई ली और उठ खड़ी हुई। धीमे कदमों से उस हालनुमा कमरे का एक चक्कर लगाया और एक बड़ी अलमारी के पास खड़ी हो गयी। उस कक्ष में यह और इस जैसी कई अल्मारियाँ
थी, जो सबकी सब धर्म, अध्यात्म, दर्शन व विज्ञान विषयक पुस्तकों
से भरी हुई थी। इन पुस्तकों का संकलन उनके दृष्टिकोण, अभिरूचि
एवं जिज्ञासु भाव को दर्शाता था। अभी वह अलमारी से कोई पुस्तक
निकाल पाती इतने में दरवाजे पर आहट हुई, वह लगभग चौंकते हुए
पीछे मुड़ी। द्वार पर उनके पति फिलिप नील खड़े थे। दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा और मुस्करा पड़े। ये पति- पत्नी अपनी भिन्न रूचियों, प्रायः विरोधाभासी दृष्टिकोण के बावजूद एक- दूसरे को बहुत प्यार करते थे। उनमें प्रगाढ़ आत्मीय सम्बन्ध था।
फिलिप
ने उनके हाथ में हिमालय के रहस्यों पर एक किताब देखी और हँस
पड़े। फिर कहने लगे केवल पढ़ने तक ही बात सीमित है या फिर से
हिमालय जाने की ठान ली है। वह भी हँस कर बोली- सोचा तो कुछ ऐसा
ही है। फिलिप अपनी पत्नी से मतभिन्नता के बावजूद उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति, गहरे आध्यात्मिक भाव एवं प्रखर वैज्ञानिक अभिवृत्ति के प्रशंसक थे। फ्रांस के इस खूबसूरत शहर में रहते हुए वह अठारह वर्ष की आयु में ही अकेली इंग्लैण्ड, स्विजरलैण्ड व स्पेन घूम चुकी थी। उनका जीवन काल सन् १८६८ से १९६९ तक पूरे १०१
वर्ष का रहा। पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने लंका और भारत की
यात्राएँ भी की थी। श्रीमती नील दुर्गम हिमालय की यात्रा करने
वाली पहली यूरोपियन महिला थी। हिमालय के लिए उनके मन में गहरी
आस्था और आकर्षण था। उन्होंने वैदिक साहित्य व बौद्ध साहित्य का
पर्याप्त अध्ययन किया था। इन दिनों वह उपनिषदों का अध्ययन कर रही
थी। यदा- कदा अपने पति से वह इसकी चर्चा करते हुए कहती थी-
अध्यात्म कोरा रहस्यवाद नहीं है, इसमें भी वैज्ञानिक प्रयोग व
परीक्षणों की गुंजाइश है। मैं तो कहती हूँ, अध्यात्म के वैज्ञानिक
होने का प्रमाण वेदों- उपनिषदों में भी विद्यमान है। स्वयं बुद्ध
ने भी एक वैज्ञानिक की निष्ठा से अपनी आध्यात्मिक साधनाओं को
सम्पन्न किया था।
सो तो ठीक है अलेक्जेन्ड्रा, पर तुम चाहती क्या हो? फिलिप को उनकी बातें अधिक नहीं समझ में आती थी। अभी तो मैं बस भारत पहुँचकर हिमालय जाना चाहती हूँ। उनके इस कथन पर फिलिप गौर से उन्हें देखते रहे, लम्बे, छरहरे
शरीर वाली, अतिशय सुन्दर कहा जा सके ऐसे नयन- नक्श वाली इस
युवती का मन औरों से कितना अलग है। खूबसूरत शरीर, प्रखर विचारशील,
जिज्ञासु किन्तु दृढ़ संकल्पित मन और निश्छल, निर्दोष, सरल भाव का
संयोग विरल ही होता है। अलेक्जेन्ड्रा
में यह सब कुछ एक साथ था। वह काफी देर तक उन्हें देखते रहे,
फिर बोले ठीक है, मैं तुम्हारी सारी व्यवस्था जुटा देता हूँ। इतना
कहकर उन्होंने भारत के कलकत्ता शहर में निवास कर रहे अपने एक
मित्र विलियम जोन्स को एक टेलीग्राम भेज दिया।
विलियम जोन्स की रुचियाँ प्रायः अलेक्जेन्ड्रा की ही तरह थी। उनके आने की खबर ने उन्हें प्रसन्न किया। कुछ दिनों बाद अलेक्जेन्ड्रा डेविड नील कलकत्ता में थी। विलियम जोन्स उन्हें लेकर हिमालय की ओर चल पड़े। रास्ते में जोन्स
ने श्रीमती नील से कहा- जिज्ञासा, उसके समाधान के लिए नियन्त्रित
परिस्थितियों में किया जाने वाला प्रयोग, इसका नियमित आग्रह रहित
परीक्षण, और फिर इसके निष्कर्षों का ऑकलन,
यही तो विज्ञान है। वैदिक ऋषियों ने इसी ढंग से तो अपने
आध्यात्मिक प्रयोगों को सम्पन्न किया था। यही परम्परा उपनिषदों में
आयी, जिसे बाद में यूनान में सुकरात ने स्वीकारा। जो बाद में
अन्य पश्चिमी दार्शनिकों में दिखाई दी। वेदों से विवेकानन्द, सुकरात
से स्पेन्टर तक आध्यात्मिक जिज्ञासा को वैज्ञानिक अभिवृत्ति
में ढलते देखा जा सकता है। वैज्ञानिक आध्यात्म के इस ऐतिहासिक
परिदृश्य के पूर्वी एवं पश्चिमी आयाम में फर्क है तो सिर्फ एक-
पूर्व में विशेषतया भारत में जहाँ अध्यात्म पर गम्भीर साधनात्मक
वैज्ञानिक प्रयोग किए गए हैं, वहीं पश्चिम में प्रायः आध्यात्मिक
जिज्ञासाएँ दार्शनिक विचारशीलता तक सीमित रही हैं।
इसीलिए तो हमें हिमालय आकर्षित
करता है। कई दिनों के पड़ाव के बाद उनकी हिमालय यात्रा सम्पन्न
हो चुकी थी। उनके सामने हिमालय के श्वेत शिखर थे। आसमान पर
हल्का- हल्का कुहांसा
छाया हुआ था। हल्की- हल्की बर्फ की बारिश भी पड़ रही थी। वातावरण
में कहीं भी, किधर भी सूर्य रश्मियों की झलक नहीं थी। मौसम कुछ
अजीब सा हो रहा था। वे सोच रहे थे कि जिस उद्देश्य से
उन्होंने इतनी खतरनाक यात्रा की है, वह पूरा होगा भी कि नहीं।
तभी मौसम और भी बिगड़ने लगा। बर्फ की हल्की बारिश बर्फीले तूफान
में बदल गयी। इस झंझावाती तूफान की लपेट में श्रीमती अलेक्जेन्ड्रा डेविड नील एवं विलियम जोन्स
बेहोश हो गये। उन्हें अपनी स्थिति का भान न रहा। जब होश आया
तो उन्होंने स्वयं को हिमालय की एक सुन्दर सी गुफा में पाया।
गुफा से बाहर निकले हिमालय के श्वेत शिखर सूर्य किरणों के संयोग
से सुन्दर स्वर्णिम हो रहे थे। गुफा के बाहर एक दिव्यदेहधारी महापुरूष विद्यमान थे। जिन्होंने उनका मधुर शब्दों में स्वागत करते हुए कहा- तुम अब सुरक्षित हो।
हम इस समय कहाँ हैं? अलेक्जेन्ड्रा
डेविड नील ने उनसे टूटी- फूटी हिन्दी में पूछा। पर उन्होंने
हँसते हुए अंग्रेजी भाषा में उत्तर दिया, तुम इस समय वहाँ हो,
जहाँ वैज्ञानिक अध्यात्म के इतिहास ने जन्म लिया है। यह हिमालय
का रहस्यमय प्रदेश है। यहीं पहली बार वेद की ऋचाएँ अवतरित हुई
थी, यहीं उपनिषद् की श्रुतियों के स्वर सुने गए थे। परमेश्वर
स्वयं सबसे महान् वैज्ञानिक हैं, फिर उनका बोध भला अवैज्ञानिक
कैसे हो सकता है। ऐसा कहते हुए वह इन्हें साथ लेकर एक गुफा के
द्वार पर पहुंचे, जो एक बड़े भारी पत्थर से ढका हुआ था। उन्होंने सहज ही उस पत्थर को एक ओर हटा दिया। अलेक्जेन्ड्रा एवं जोन्स
को यह देखकर भारी आश्चर्य हुआ इन महापुरुष ने अकेले ही इतने
विशालकाय पत्थर को कैसे हटा दिया। उस सुरंग जैसी गुफा में प्रवेश
करके आगे बढ़ते हुए वे एक सुन्दर मैदान में आए।
यहाँ उन्होनें विभिन्न गुफाओं में दीर्घकाय महापुरुषों को समाधि लगाए हुए देखा। यहाँ चारों ओर फल एवं पुष्पों से लदी लताएँ
एवं वृक्ष भी थे। कहीं- कहीं झरनों से मोतियों के समान स्वच्छ
जल झर रहा था। बहुत समय तक इन दृश्यों को देखने के बाद
इन्होंने उन महापुरुष से पूछा- भगवन्! यह कौन सा स्थान है? उत्तर में हंसते
हुए वह महापुरुष बोले, यह वही दिव्य स्थल है, जहाँ सबसे पहले
अध्यात्म विज्ञान ने जन्म लिया था। जहाँ अभी भी अध्यात्म के
उच्चस्तरीय वैज्ञानिक प्रयोग सम्पन्न किए जाते हैं। जहाँ से धरती
और सृष्टि के विविध घटनाक्रमों पर नियंत्रण किया जाता है। यहाँ
से सम्प्रेषित ज्ञान- विज्ञान की रश्मियाँ ही धरती के पूर्वी एवं
पश्चिमी भूभागों में विविध रूपों में अपना आलोक बिखेरती हैं। विलक्षण! अद्भुत!! आश्चर्यजनक!!!
उन दोनों को सन्तोष हुआ कि आज उन्हें अपना मनचाहा मिला। वे
वैज्ञानिक अध्यात्म के इतिहास बीजों के साक्षी बनें। ऐसा सोचते
हुए न जाने कैसे उन्हें नींद आने लगी। उन्होंने सोचा शायद यह
थकान का असर है। लेकिन जब उनकी आँख खुली तो वह लाचेन मठ में थे। जहाँ महान् लामा गोमचेन
उन्हें देखकर मुस्करा रहे थे। इनके हतप्रभ होने पर उन्होंने
कहा, तुमने जो भी देखा वह सब सही था। अध्यात्म विद्या सम्पूर्णतया
वैज्ञानिक है। समय आने पर हिमालय के उस दिव्य क्षेत्र के महान्
ऋषि इसका वैज्ञानिक अध्यात्म के रूप में प्रतिपादन करेंगे। और
तब वैज्ञानिक अध्यात्म के ऐतिहासिक परिदृश्य की सभी बिखरी कड़ियाँ
जुड़ सकेंगी, जो वैज्ञानिक अध्यात्म के मूल तत्त्वों को अभिव्यक्त
करेंगी।