स्वर योग से दिव्य ज्ञान

स्वर- योग भारत की अति प्राचीन और शिरोमणि विद्या है ।। इसका आश्चर्यजनक फल और साधन की सरलता देखते हुए किसी समय में इस विद्या का जनता के हृदय पर साम्राज्य था किंतु समय के प्रभाव से इसके कितने ही आवश्यक अंग लुप्त हो गए ।। कहीं- कहीं क्षेपक मिल गए ।। आलस्य और अज्ञान के कारण साधन घट गए, जिन लोगों को ज्ञान था उन्होंने छिपाया ।। तदनुसार आज यह विद्या बड़े अपूर्ण और विकृत रूप में दृष्टिगोचर होती है ।। फिर भी इसके खंडहरों पर दृष्टिपात किया जाए तो आश्चर्य होता है कि योग के इस विशुद्ध वैज्ञानिक और चमत्कारिक अंग की परिपूर्ण शोध क्यों नहीं हो रही है ? ज्योतिष के फलित शास्त्र और भविष्य कथन में कुछ अधिक मिलावट हुई है और वर्तमान ज्योतिषी उसकी तह तक नहीं पहुँच पाते, तदनुसार उसके वचन अधिकांश में सत्य नहीं होते ।।

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