शिष्टाचार और सहयोग

सच्ची और खरी बात कहिए, पर नम्रता के साथ

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षट्रिपु आध्यात्मिक संपत्तियों को दबाते चले जाते हैं, असुरत्व बढ़ रहा है और सात्विकता न्यून होती जा रही है । आत्मा क्लेश पा रही है और शैतानियत का शासन प्रबल, होता आता है । क्या आप इस आध्यात्मिक अन्याय को सहन ही करते रहेंगे । यदि करते रहेंगे तो निःस्संदेह पतन के गहरे गर्त में जा गिरेंगे । ईश्वर ने सद्गुणों की, सात्विक वृत्तियों की, सद्भावनाओं की अमानत आपको दी है और आदेश दिया है कि यह पूँजी सुरक्षित रूप से आपके पास रहनी चाहिए । यदि उस अमानत की रक्षा न की जा सकी और चोरों ने, पापों ने उस पर कब्जा कर लिया तो ईश्वर के सम्मुख जबावदेह होना पड़ेगा अपराधी बनना पड़ेगा ।

ठीक इसी तरह बाह्य जगत में मानवीय अधिकारों की अमानत ईश्वर ने आपके सुपुर्द की है । इसको अनीतिपूर्वक किसी को मत छीनने दीजिए । गौ का दान कसाई को नहीं वरन ब्राह्मण को होना चाहिए । अपने जन्म सिद्ध अधिकारों को यदि बलात छिनने देते हैं तो यह गौ का कसाई को दान करना हुआ । यदि स्वेच्छापूर्वक सत्कार्यो में अपने अधिकारों का प्रयोग करते हैं तो वह अपरिग्रह है त्याग है तप है आत्मा-विश्वात्मा का एक अंग है । एक अंश में जो नीति या अनीति की वृद्धि होती है वह संपूर्ण विश्वात्मा में पाप- पुण्य को बढ़ाती है । यदि आप संसार में पुण्य की सदाशयता की, समानता की वृद्धि चाहते हैं तो इसका आरंभ अपने ऊपर से ही कीजिए । अपने अधिकारों की रक्षा के लिए जी तोड़ कोशिश कीजिए । इसके मार्ग में जो झूँठा संकोच बाधा उपस्थित करता है उसे साहसपूर्वक हटा दीजिए ।

दबंग रीति से, निर्भयतापूर्वक खुले मस्तिष्क से बोलने का अभ्यास करिए । सच्ची और खरी बात कहने की आदत डालिए । जहाँ बोलने की जरूरत है वहाँ अनावश्यक चुप्पी मत साधिए । ईश्वर ने वाणी का पुनीत दान मनुष्य को इसलिए दिया है कि अपने मनोभावों को भली प्रकार प्रकट करें, भूले हुओं को समझावें, भ्रम का निवारण करें और अधिकारों की रक्षा करें । आप झेंपा मत कीजिए अपने को हीन समझने या मुँह खोलते हुए डरने की कोई बात नहीं है । धीरे-धीरे गंभीरतापूर्वक मुस्कराते हुए स्पष्ट स्वर में, सद्भावना के साथ बातें किया कीजिए और खूब किया कीजिए इससे आपकी योग्यता बढ़ेगी, दूसरों को प्रभावित करने में सफलता मिलेगी, मन हलका रहेगा और सफलता का मार्ग प्रशस्त होता जाएगा ।

ज्यादा बक-बक करने की कोशिश मत कीजिए । अनावश्यक अप्रासंगिक अरुचिकर बातें करना अपनी के आगे किसी की सुनना ही नहीं हर घडी़ चबर-चबर जीभ चलाते रहना बेमौके बेसुरा राग अलापना अपनी योग्यता से बाहर की बातें करना शेखी बघारना वाणी के दुर्गुण हैं । ऐसे लोगों को मूर्ख, मुंहफट्ट और असाध्य समझा जाता है । ऐसा न हो कि अधिक वाचालता के कारणा इसी श्रेणी में पहुँच जाएँ । तीक्ष्ण दृष्टि से परीक्षण करते रहा कीजिए कि आपकी बात को अधिक दिलचस्पी के साथ सुना जाता है या नहीं सुनने में लोग ऊबते तो नहीं, उपेक्षा तो नहीं करते । यदि ऐसा हो तो वार्तालाप की त्रुटियों को ढूँढ़िए और उन्हें सुधारने का उद्योग कीजिए अन्यथा बक्की-झक्की समझकर लोग आपसे दूर भागने लगेंगे ।

अपने लिए या दूसरों के लिए जिसमें कुछ हित साधन होता हो ऐसी बातें करिए । किसी उद्देश्य को लेकर प्रयोजनयुक्त भाषण कीजिए अन्यथा चुप रहिए । कडुवी, हानिकारक दुष्ट भावों को भडकाने वाली भ्रमपूर्ण बातें मत कहिए । मधुर, नम्र, विनययुक्त, उचित और सद्भावना युक्त बातें करिए । जिससे दूसरों पर अच्छा प्रभाव पड़े, उन्हें प्रोत्साहन मिले, ज्ञान वृद्धि हो शांति मिले तथा सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा हो । ऐसा वार्तालाप एक प्रकार का वाणी का तप है ।
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