शिष्टाचार और सहयोग

सहयोग और शिष्टाचार का संबंध

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सहयोग के महत्त्व को तो प्राय: सभी लोग स्वीकार कर लेते हैं, क्योंकि वर्तमान समय में मनुष्य की जीवन-निर्वाह-प्रणाली और सामाजिक व्यवस्था ऐसी पेचीदा हो गई है कि एक मनुष्य बिना दूसरे मनुष्यों के सहयोग के एक दिन भी नहीं चल सकता । पर इस बात को बहुत कम लोग जानते हैं कि वास्तविक सहयोग प्राप्त करने का क्या उपाय है ? सहयोग की वृद्धि करने और उसे स्थाई बनाने का मुख्य साधन उत्तम व्यवहार है और उत्तम व्यवहार का एक बहुत बड़ा अंग शिष्टाचार है । मनुष्य शिष्टाचार के द्वारा ही दूसरे व्यक्तियों को अपनी सभ्यता और संस्कृति का परिचय देकर उनको अपना मित्र, सहायक हितैषी या अनुगामी बना सकता है ।

एक महापुरुष का कथन है- "मुझे बोलने दो, मैं विश्व को विजय कर लूँगा'' सचमुच शिष्टाचार युक्त मधुर वाणी से अधिक कारगर हथियार और कोई इस दुनियाँ में नहीं है । जिस आदमी में ठीक तरह उचित रीति से बातचीत करने की क्षमता है समझिए कि उसके पास एक बहुमूल्य खजाना है । दूसरों पर प्रभाव डालने का प्रधान साधन वाणी ही है, लेनदेन, व्यवहार आचरण विद्वत्ता, योग्यता आदि का प्रभाव डालने के लिए समय की, अवसर की, क्रियात्मक प्रयत्न की आवश्यकता होती है; पर वार्तालाप एक ऐसा उपाय है जिसके द्वारा बहुत ही स्वल्प समय में दूसरों को प्रभावित किया जा सकता है ।

बातचीत करने की कला में जो निपुण है वह असाधारण संपत्तिवान है । योग्यता का परिचय वाणी के द्वारा प्राप्त होता है । जिस व्यक्ति का विशेष परिचय मालूम नहीं है उससे कुछ देर बातचीत करने के उपरांत जाना जा सकता है कि वह कैसे आचरण का है, कैसे विचार रखता है, कितना योग्य है, कितना ज्ञान और अनुभव रखता है । जो दूसरों के ऊपर अपनी योग्यता प्रकट करता है ऐसे प्रमुख मनुष्य को बहुत ही सावधानी के साथ बरता जाना चाहिए । कई ऐसे सुयोग्य व्यक्तियों को हम जानते हैं जो परीक्षा करने पर उत्तम कोटि का मस्तिष्क उच्च हृदय और दृढ़ चरित्र वाले साबित होंगे, परंतु उनमें बातचीत करने का शऊर न होने के कारण सर्वसाधारण में मूर्ख समझे जाते हैं और उपेक्षणीय दृष्टि से देखे जाते हैं । उनकी योग्यताओं को जानते हुए भी लोग कुछ लाभ उठाने की इच्छा नहीं करते ।

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