शक्ति का सदुपयोग

शक्ति की आवश्यकता

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जीवन एक प्रकार का संग्राम है । इसमें घड़ी-घड़ी में विपरीत परिस्थितियों से, कठिनाइयों से लड़ना पड़ता है । मनुष्य को अपरिमित विरोधी तत्त्वों को पार करते हुए अपनी यात्रा जारी रखनी होती है । दृष्टि उठाकर जिधर भी देखिए उधर ही शत्रुओं से जीवन घिरा हुआ प्रतीत होगा । "दुर्बल, सबलों का आहार है ।" यह एक ऐसा कडुआ सत्य है जिसे लाचार होकर स्वीकार करना ही पड़ता है । छोटी मछली को बड़ी मछली खाती है, बड़े वृक्ष अपना पेट भरने के लिए आस-पास अनेक छोटे पौधों की खुराक झपट लेते हैं और वे बेचारे छोटे पौधे मृत्यु के मुख में चले जाते हैं । छोटे कीड़ों को चिड़ियाँ खा जाती हैं और उन चिड़ियों को बाज आदि बडी चिड़ियाँ मार खाती हैं । गरीब लोग अमीरों द्वारा, दुर्बल, बलवानों द्वारा सताये जाते हैं । इन सब बातों पर विचार करते हुए हमें इस निर्णय पर पहुँचना होता है कि यदि सबलों का शिकार होने से पहले, उनके द्वारा नष्ट किए जाने से अपने को बचाना है तो अपनी दुर्बलता को हटाकर इतनी शक्ति तो कम से कम अवश्य ही संचय करनी चाहिए कि चाहे कोई यों ही चट न कर जावे ।

रोगों के कीटाणु जो इतने छोटे होते हैं कि आँखों से दिखाई ही नहीं पड़ते, हमारे स्वास्थ्य को नष्ट कर डालने और मार डालने के लिए चुपके- चुपके प्रयत्न करते रहते हैं । हमारे शरीर में उन्हें थोड़ी भी जगह मिल जाय तो बड़ी तीव्र गति से वे हमें बीमारी और मृत्यु की ओर खींच ले जाते हैं । जरा सा मच्छर मलेरिया का उपहार लिए हुए पीछे फिरा करता है, मक्खियाँ हैजा की भेंट लिए तैयार खड़ी हैं । बिल्ली घर में से खाने-पीने की चीजें चट करने के लिए, चूहा कपड़े काट डालने के लिए, बंदर बरतन उठा ले जाने के लिए तैयार बैठा है । बाजार में निकलिए दुकानदार खराब माल देने, कम तौलने, दूने पैसे वसूल करने की घात लगाए बैठा है । गठकटे, ठग, चोर, उचक्के अपना-अपना दाव देख रहे हैं, ढोंगी, मुफ्तखोर अपना जाल अलग ही बिछा रहे हैं । चोर, गुंडे, दुष्ट अकारण ही जलते, दुश्मनी बांधते और नुकसान पहुँचाने का प्रयत्न करते हैं । हितू-संबंधी भी अपने-अपने स्वार्थ साधन की प्रधानता से ही आपसे हित या अनहित घटाते-बढ़ाते रहते हैं ।

चारों ओर मोर्चाबदियाँ बंधी हुई है । यदि आप सावधान न रहें, जागरूकता से काम न लें, अपने को बलवान साबित न करें तो निस्संदेह इतने प्रहार चारों ओर से होने लगेंगे कि उनकी चोटों से अपने को बचाना कठिन हो जायगा । ऐसी दशा में उन्नति करना, आनंद प्राप्त करना तो दूर, शोषण, अपहरण, चोट और मृत्यु से बचना मुश्किल होगा । अतएव सांसारिक जीवन में प्रवेश करते हुए इस बात को भली प्रकार समझ लेना और समझकर गांठ बांध लेना चाहिए कि केवल जागरूक और बलवान व्यक्ति ही इस दुनियाँ में आनंदमय जीवन के अधिकारी है । जो निर्बल, अकर्मण्य और लापरवाह स्वभाव के हैं, वे किसी न किसी प्रकार दूसरों के द्वारा चूसे जाएँगे और आनंद से वंचित कर दिए जाएँगे । जिन्हें अपने स्वाभाविक अधिकारों की रक्षा करते हुए प्रतिष्ठा के साथ जीने की इच्छा है, उन्हें अपने दुश्मनों से सजग रहना होगा, उनसे बचने के लिए बल एकत्रित करना होगा ।

जब तक आप अपनी योग्यता नहीं प्रकट करते, तब तक लोग अकारण ही आपके रास्ते में रोड़े अटकाएँगे, किंतु जब उन्हें यह मालूम हो जायगा कि आप शक्ति संपन्न हैं तो वे जैसे अकारण दुश्मनी ठानते थे, वैसे ही अकारण मित्रता करेंगे । बीमार के लिए पौष्टिक भोजन विषतुल्य होता जाता है किंतु स्वस्थ मनुष्य को बल प्रदान करता है । जो सिंह रास्ता चलते सीधे-साधे आदमियों को मारकर खा जाता है वही सिंह सरकस मास्टर के आगे दुम हिलाता है और उसकी आज्ञा का पालन करता हुआ, बहुत बड़ी आमदनी कराने का साधन बन जाता है ।

अच्छे स्वास्थ्य वाले को बलवान कहते हैं, परंतु आज के युग में वह परिभाषा अधूरी है । इस समय शरीर का बल, पैसे का बल, बुद्धि का बल, प्रतिष्ठा का बल, साथियों का बल, साहस का बल यह सब मिलकर एक पूर्ण बल बनता है । आज के युग में बलवान वह है जिसके पास उपरोक्त छह बलों में से कई बल हों; आप अपने शरीर को बलवान बनाइए, परंतु साथ-साथ अन्य पाँच बलों को भी एकत्रित कीजिए । किसी के साथ बेइंसाफी करने में इन बलों का उपयोग करें, ऐसा हमारा कथन नहीं है । परंतु जब आपको अकारण सताया जा रहा हो तो आत्मरक्षा के लिए यथोचित रीति से इनका प्रयोग भी कीजिए जिससे शत्रुओं को दुस्साहस न करने की शिक्षा मिले । बलवान बनना पुण्य है क्योंकि इससे दुष्ट लोगों की कुवृत्तियों पर अंकुश लगता है और दूसरे कई दुर्बलों की रक्षा हो जाती है ।
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