शक्ति का सदुपयोग

शक्ति को नष्ट करने के दुष्परिणाम

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>
शक्ति के नाश के अनेक कारणों में विषय-लोलुपता कदाचित सबसे बडा कारण है । प्राय: देखा जाता है कि शक्तिसंपन्न व्यक्तियों में काम वासना का विकार विशेष रूप से उत्पन्न हो जाता है, जिसके फलस्वरूप वे अपनी शक्ति को नष्ट कर डालते हैं और दूसरों को भी हानि पहुँचाते हैं ।

सौंदर्य, शक्ति, यौवन और धन संसार की चार दिव्य विभूतियाँ हैं । ईश्वर ने इन शक्तियों की सृष्टि इस मंतव्य से की है कि इनकी सहायता एवं विवेकशील प्रयोग के द्वारा मानव धरि-धीरे उत्थान एवं समृद्धि के शिखर पर पहुँच जाय । वास्तव में इन दैवी विभूतियों के सदुपयोग द्वारा मनुष्य शारीरिक, बौद्धिक एवं मानसिक शक्तियों का चरम विकास कर सकता है । मानव व्यक्तित्व के विकास में ये पृथक-पृथक अपना महत्त्व रखती हैं ।

भगवान के गुण, स्वरूप की कल्पना में हम सौंदर्य शक्ति एवं चिर यौवन को महत्ता प्रदान करते हैं । हमारी कल्पना में परमेश्वर सौंदर्य के पुंज है, शक्ति के अगाध सागर हैं, चिर युवा है, अक्षय हैं । लक्ष्मी उनकी चेरी है । ये ही गुण मानव जगत में हमारी सर्वतोमुखी उन्नति में सहायक है । जिन-जिन महापुरुषों को इन शक्तिकेंद्रों का ज्ञान हुआ और जैसे-जैसे उन्होंने इनका विवेकपूर्ण उपयोग किया, वैसे-वैसे उनकी उन्नति होती गई, किंतु जहाँ इनका दुरुपयोग हुआ, वहीं पतन प्रारंभ हुआ । वह पतन भी इतना भयंकर हुआ कि अंतिम सीमा तक पहुँच गया और उनका सर्वनाश इतना पूरा हुआ कि बचाव संभव न हो सका ।

शक्ति का दुरुपयोग मनुष्य को राक्षस बना सकता है । रावण जाति का ब्राह्मण, बुद्धिमान और तपस्वी राजा था, किंतु शक्ति का मिथ्या दंभ उस पर सवार हो गया । पंडित रावण राक्षस रावण बन गया । उसकी वासना उत्तेजित हो गई । जितना उसने वासनाओं की पूर्ति करने का प्रयत्न किया, उससे दुगने वेग से वह उद्दीप्त हुईं । शक्ति उसके पास थी । वासना की पूर्ति के लिए रावण ने शक्ति का दुरुपयोग किया । अंत में अपनी समस्त शक्ति के बावजूद रावण का क्षय हुआ । शक्ति के दुरुपयोग से न्याय का गला घुट जाता है, विवेक दब जाता है, मनुष्य को निज कर्त्तव्य का ज्ञान नहीं रहता, वह मदहोश हो जाता है और उसे सत-असत का अंतर प्रतीत नहीं होता ।

गायत्री माता स्वयं शक्ति-स्वरूपिणी है और उसकी उपासना से हम सब प्रकार की शक्तियों को प्राप्त कर सकते हैं । पर शर्त यही है कि जो शक्ति प्राप्त की जाय उसका सदुपयोग ही किया जाय । दुरुपयोग करने से तो उसका परिणाम महा भयानक होता है और उससे हमारा सांसारिक पतन ही नहीं होता वरन हम आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत निम्न स्तर पर पहुँच जाते हैं ।
 

<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118