सेवा साधना और उसके सिद्धांत

सेवा मनुष्य का आवश्यक धर्म-कर्तव्य परमात्मा ने मनुष्य को संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी बनाया है । काम करने लायक समर्थ शरीर, सोचने-समझने के लिए विचारशील बुद्धि एक-दूसरे से संपर्क करने तथा अपने भाव और विचार दूसरों तक पहुँचाने के लिए वाणी प्रदान की है । यदि एक-एक विशेषताओं को देखें तो संसार का कोई प्राणी उसकी तुलना का नहीं बैठता । बौद्धिक प्रतिभा के द्वारा मनुष्य ने उन्नत सभ्यता और संस्कृति का निर्माण किया-जबकि अन्य प्राणी भोजन और प्रजनन से आगे नहीं बढ़ सके । उसे जो वाणी मिली है-जिसके द्वारा वह अपने सूक्ष्म से सूक्ष्म भाव भी दूसरों तक संप्रेषित कर सकता है वैसी क्षमता दूसरे प्राणियों में कहाँ ऐसी ही अगणित विशेषताएँ मनुष्य को उपलब्ध हैं । वह प्रकृति की संपदा का भरपूर उपयोग कर सकता है, दूसरे प्राणियों को वैसी सुविधा नहीं है । इतनी विशेषताओं को देखकर लगता है कि परमात्मा ने मनुष्य के साथ पक्षपात किया है । मात्र अधिकारों को ही देखा जाए तो यही धारणा बनती है, लेकिन गहराई से विचार किया जाए तो समझ में आता है कि विशेष अधिकारों के साथ विशेष कर्तव्य भी जुड़े होते हैं । एक बैंक मैनेजर और एक चपरासी को बैंक से मिलने वाली सुविधाओं में जो अंतर

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