स्वस्थ रहना मनुष्य का स्वाभाविक अधिकार है। परमात्मा
ने हर एक प्राणी को ऐसे साधन देकर भेजा है कि निरोग और
स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सके, परंतु हम देखते है कि मनुष्य
कमजोरी और बीमारी के चंगुल में बुरी तरह जकडा हुआ है।
जबकि सृष्टि के समस्त प्राणी साधारण बुद्धि रखते हुए भी निरोग
रहते हैं । तब मनुष्य को विशेष बुद्धिमान् होने का दावा करते हुए भी इस प्रकार रोग ग्रस्त रहना सचमुच आश्चर्य की बात है
मनुष्य ने चटोरा, विषयी, कृत्रिम और अप्राकृतिक बनाकर
अपने आपको रोगों कं गड्ढे में डाल दिया है । अस्वस्थता की
दु:खदायक स्थिति उसने स्वयं पैदा की है। अपने इस रवैये को
सुधार लिया जाये, तो इस दु:खदायक स्थिति में आसानी के साथ
छुटकारा प्राप्त किया जा सकता है