नारी को रमणी न मानें जननी का सम्मान दें

नारी को न्याय मिले नारी को शक्ति रूप कहा गया है । पुरुष अपने शौर्य, पराक्रम और साहस का ढिंढोरा चारों ओर पीटता रहता है । ये विशेषताएं उसे कहां से प्राप्त हुई? गंभीरता से विचार किया जाए तो मूलत: श्रेय नारी सत्ता को ही जाता है । काया से लेकर मन मस्तिष्क का आरंभिक ढांचा तो मातृशक्ति ही अपने गर्भ में रखकर तैयार करती है । पय पान द्वारा शरीर के पोषण के साथ साथ स्नेह, प्यार, वात्सत्य के अभिसिंचन द्वारा वह मन एवं भाव संस्थान को ह्रष्ट एवं पुष्ट करती है । शरीर पोषण के अतिरिक्त यह अमूल्य अनुदान बालक को सतत् मिलता रहता है । विश्व के मूर्धन्य मन: शास्त्रियों का निष्कर्ष है कि पांच वर्ष की आयु तक बच्चे का नब्बे प्रतिशत निर्माण हो जाता है । दस प्रतिशत का तो बाद में विकास होता है । उन गुणों का विकास जिनका बीजारोपण बालक में मां कर चुकी होती है, दस प्रतिशत के ही अंतर्गत बालक का स्वयं का पुरुषार्थ तथा वातावरण का योगदान आता है । अर्थात् पुरुष जैसा भी कुछ बनता है उसमें मातृशक्ति के सहयोग का हिस्सा नब्बे प्रतिशत होता है ।

होना यह था कि नारी के अजस्र अनुदानों के प्रति पुरुष कृतज्ञता व्यक्त

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