मानसिक संतुलन

उत्तेजना के दुष्परिणाम

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कहते है आदिम जाति में एक बहुत बड़ी मानसिक कमजोरी रहती हैं जिसे उत्तेजना कहा जाता है । आदिम जातियों में नृशंस हत्याओं और मारपीटों का विशेष कारण यही उत्तेजना होता है । लड़का यदि अपने पिता से क्रुद्ध और उत्तेजित हो उठा तो एक ही आवेश में वह पिता की हत्या कर बैठता है । यही स्थिति पिता अथवा अन्य कुटुम्बियों की है ।

क्रोध पर ये काबू कर नहीं पाते और क्षणिक आवेश में हत्या मार पीट सुन खराबी हो जाती है । छोटी-छोटी बातों पर लड़ाई झगड़े चलते रहते हैं । पारस्परिक कटुता की अभिवृद्धि होती रहती है। एक दूसरे के प्रति बैर, ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, घृणा इत्यादि विषैले मनोविकार पनपते रहते हैं । उत्तेजना क्या है ? इसका विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि यह उद्वेग का आधिक्य है । साधारणतः व्यक्ति दो प्रकार केर होते हैं । एक तो दे जिन्हें 'मोटी चमड़ी' का कह सकते है । इन व्यक्तियों में भावनायें कम होतीं हैं । इन्हें कुछ कह दीजिए इनके मन में कोई प्रभाव न पड़ेगा । गाली गलौज या मान हानि से भी वे उत्तेजित न होगे । ये भावना के आक्रोश में नहीं रहते। क्रोध, घृणा ईर्ष्या क्षणिक आवेश का इन पर कोई शीघ्रव्यापी प्रभाव नहीं होता ।

दूसरे व्यक्ति भावुक और अति उद्विग्न होते हैं मक्खन की तरह कोमल छुई मुई के पौधे के समान संवेदनशील, भावना की अधिकता इनकी दुर्बलता है । भावना अर्थात् क्रोध, प्रेम, वात्सल्य, दया, ईर्ष्या इत्यादि मनोविकारों को अत्यधिक गहराई से अनुभव करना और उन्हीं के वश में इतना हो जाना कि स्वयं अपनी विवेक बुद्धि को भी खो डालना । लाभ हानि या अन्तिम परिणाम का ख्याल न रखना इनकी कमजोरी है । जो गुण एक कवि में सौभाग्य का विषय -है वही मनोविकारों के ऊपर नियन्त्रण न कर सकने वाले व्यक्ति के लिए एक अभिशाप है । ये अपनी उत्तेजनाओं के ऊपर विवेक बुद्धि का नियन्त्रण नहीं कर पाते और स्वयं उनके हो जाते हैं ।

उत्तेजना एक क्षणिक है । यह भावना का ताण्डव नृत्य है, उद्वेग एक आंधी है, ईर्ष्या, कोप, प्रतिशोध का एक भयंकर तूफान है जिसे निर्बल इच्छा शक्ति कला व्यक्ति संभाल नहीं पाता अपने आपे को खो देता है ।

उत्तेजना की आंधी में बुद्धि विवेक शून्य तथा निश्चेष्ट हो जाती है यह उत्तरोत्तर बढ़ कर शरीर पर पूरा अधिकार कर लेती है । भावना के उद्वेग में नीर-क्षीर विवेक का ज्ञान लुप्त हो जाता है । उत्तेजक स्वभाव वाला व्यक्ति दूरदर्शिता को खो बैठता है । कभी-कभी उसे अपनी शक्तियों का ज्ञान तक नहीं रहता । कमजोर व्यक्ति भी उत्तेजना का शिकार हो कर मजबूत व्यक्ति से लड़ बैठते है । बातों-बातों में उग्र हो जाते हैं । हाथा-पाई की नौबत आ जाती है । जिससे व्यर्थ की हानि उठानी पड़ती है ।

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