मानव जीवन की गरिमा

मनुष्य जीवन की श्रेष्ठता- मनुष्य जीवन इस सृष्टि की सबसे श्रेष्ठ रचना है । लगता है भगवान ने अपनी सारी कारीगरी को समेटकर इसे बनाया है । जिन गुणों और विशेषताओं के साथ इसे भेजा गया है, वे अन्य किसी प्राणी को प्राप्त नहीं हैं । इस कथन में भगवान पर पक्षपाती होने का आरोप लग सकता है, किंतु बात ऐसी है नहीं । भगवान तो सबका पालनहार पिता है, उसे अपनी सभी संतानें एक समान प्रिय हैं और वह न्यायप्रिय है । सभी प्राणियों को उसने जीने लायक आवश्यक सुविधाओं को देकर भेजा है । स्वयं निराकार होने के कारण उसने मनुष्य को अपना मुख्य प्रतिनिधि बनाकर सृष्टि (विश्व-व्यवस्था) की देख-रेख के लिए भेजा है । उसे उसकी आवश्यकता से अधिक सुविधाएँ और शक्तियाँ इसलिए दी गई हैं, ताकि वह उसके विश्व-उद्यान को सुंदर, सभ्य और खुशहाल बनाने में अपनी जिम्मेदारी को ठीक ढंग से निभा सके ।

शारीरिक दृष्टि से मनुष्य की स्थिति अन्य प्राणियों से बेहतर नहीं है । पक्षियों की तरह हवा में उड़ना, मछलियों की भाँति जल में तैरना उसे नहीं आता । बंदर के समान पेड़ पर उछल-कूद वह नहीं कर सकता, शेर की तरह अपना पराक्रम-बल भी नहीं दिखा सकता । हाथी के सामने

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