जीवन जीने की कला - २

गिरे हुओं को उठाना पिछड़े हुओं को आगे बढ़ाना ,भूले को राह बताना औट जो अशांत हो रहा है उसे शांतिदायक स्थान पर पहुँचा देना, यह वस्तुत: ईश्वर की सेवा ही है ।जब हम दु:खी और दरिद्री को देखकर व्यथित होते हैं और मलीनता को स्वच्छता में बदलने के लिए बढ़ते है, तो समझना चाहिए कि यह कृत्य ईश्वर् के लिए उसकी प्रसन्नता के लिए ही किए जा रहे हैं। पं० श्रीराम शर्मा आचार्य..

Write Your Comments Here: