ईश्वर विश्वास पर ही मानव प्रगति का इतिहास टिका हुआ है। जब यह डगमगा टिका
हुआ है। जब यह डगमगा जाता है तो व्यक्ति इधर-उधर हाथ-पाँव फेंकता विक्षुब्ध
मन:स्थिति को प्राप्त होता दिखाई देता है। ईश्वर चेतना की वह शक्ति है जो
ब्राह्मण के भीतर और बाहर जो कुछ है, उस सब में संव्याप्त है। उसके अगणित
क्रिया-कलाप हैं जिनमें एक कार्य प्रकृति का- विश्व व्यवस्था संचालन भी है।
संचालक होते हुए भी वह दिखाई नहीं देता क्योंकि वह सर्वव्यापी सर्वनियन्ता
है। इसी गुत्थी के कारण की वह दिखाई क्यों नहीं देता, एक प्रश्न साधारण
मानव के मन में उठता है- ईश्वर कौन है, कहाँ है, कैसा है ?