ईश्वर का विराट रूप
भू:(पृथ्वी), भुव:(पाताल), स्व:(स्वर्ग) ये तीनों ही लोक
परमात्मा से परिपूर्ण हैं । इसी प्रकार भू:(शरीर), भुव:(संसार), स्व:(आत्मा)
ये तीनों ही परमात्मा के क्रीड़ास्थल हैं । इन सभी स्थलों को,
निखिल विश्व-ब्रह्मांड को, भगवान का विराट रूप समझकर, उस उच्च
आध्यात्मिक स्थिति को प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए जो गीता के
११वें अध्याय में भगवान ने अपना विराट रूप बतलाकर अर्जुन को प्राप्त
कराई थी ।
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