बुद्धि के धनी भी एक प्रकार के वैज्ञानिक हैं। शासन और समाज के विभिन्न
तंत्र उन्हीं के संकेतों तथा दबाव से चलते हैं यदि सामाजिकता कुरीतियों और
वैयक्तिक अनाचारों के विरुद्ध ऐसी बाड़ बनाई गई होती, जो उनके लिए अवसर ही न
छोड़ती, तो जो शक्ति बर्बादी में लगी हुई है, उसे सत्प्रयोजनों में
नियोजित देखा जाता। अपराधों का, अनाचारों का कहीं दृश्य भी देखने को न
मिलता। सर्वसाधारण को यदि औसत नागरिक स्तर का जीवनयापन करने की ही छूट रही
होती, तो बढ़ी हुई गरीबी में से एक भी दृष्टिगोचर न होती। सब समानता और
एकता का जीवन जी रहे होते। फिर न खाइयाँ खुदी दीखतीं और न टीले उठे होते।
समतल भूमि में समुचित लाभ उठा सकने का अवसर हर किसी को मिला होता। तब इन
शताब्दियों में हुई बौद्धिक और वैज्ञानिक प्रगति को हर कोई सराहता और उसके
सदुपयोग से धरती का कण- कण धन्य हो गया होता।
नशेबाजी-
दुर्व्यसनों के लिए छूट मिली होने के कारण ही लोग इन्हें अपनाते हैं। उनका
प्रतिपादन ही निषिद्ध रहा होता, पीने वालों को प्रताड़ित किया जाता, तो आज
धीमी आत्म हत्या करने के लिए किसी को भी उत्साहित न देखा जाता। इस लानत से
बच जाने पर लोग शारीरिक और मानसिक दृष्टि से सन्तुलित रहे होते और हर
प्रकार की बरबादी- बदनामी से बच जाते। अन्यान्य दुर्व्यसनों से सम्बन्धित
इसी प्रकार के और भी अनेक ऐसे प्रचलन हैं, जो सामान्य जीवन में घुल मिल गये
हैं। कामुकता भड़काने वाली दुष्प्रवृत्तियाँ फैशन का अंग बन गई हैं। बनाव,
शृंगार, सज- धज के अनेक स्वरूप शान बनाने जैसे लगते हैं। आभूषणों में
ढेरों धन बरबाद हो जाता है। बढ़ा हुआ बुद्धिवाद यदि इन अपव्ययों का विरोध
करता, उनकी हानियाँ गले उतारता, तो खर्चीली शादियाँ, जो हमें दरिद्र और
बेईमान बनाने का प्रमुख कारण बनी हुई हैं, इस प्रकार अड़ी और खड़ी न रहतीं।
ऊपर चढ़ना धीमी गति से ही सम्भव हो पाता है, पर यदि पतन के गर्त में गिरना
हो तो क्षणों में बहुत नीचे पहुँचा जा सकता है। पिछले दिनों हुआ भी यही
है। चतुरता के नाम पर मूर्खता अपनाई गई है। इसका प्रमाण यह है कि ठाट- बाट
की चकाचौंध सब ओर दीखते हुए भी मनुष्य बेतरह खोखला हो गया है। चिन्ता,
उद्विग्नता, आशंका, अशांति का माहौल भीतर और बाहर सब ओर बना हुआ है। किसी
को चैन नहीं। कोई सन्तुष्ट नहीं दीखता। मानसिक दरिद्रता के रहते विस्तृत
वैभव, बेचैनी बढ़ने का निमित्त कारण बना हुआ है।