विश्व के मूर्धन्य विचारक, मनीषी, ज्योतिर्विद् एवं अतीन्द्रिय द्रष्टा अब
इस सम्बन्ध में एक मत हैं कि युग परिवर्तन का समय आ पहुँचा। सन् १९८९ से
सन् २००० तक का समय इन सभी के अनुसार युगसन्धि की बेला है।
इन
सभी भविष्यवाणियों के चार आधार माने जा सकते हैं- १. दिव्य दृष्टि सम्पन्न
व्यक्तियों के अंतःस्फुरणा पर आधारित वचन, २. ज्योतिर्विज्ञान और फलित
ज्योतिष की गणनाओं पर आधारित भविष्यवाणियाँ, ३. पुराण, कुरान, बाइबिल,
गीता, रामायण, श्रीमद्भागवत जैसे धर्मग्रंथों में वर्णित भविष्य कथन, ४.
वर्तमान परिस्थितियों के आधार पर विभिन्न भविष्य विज्ञानियों द्वारा
वैज्ञानिक उपकरणों- आँकड़ों के विश्लेषण द्वारा किया गया आकलन। इनमें से
प्रथम वर्ग के अतीन्द्रिय क्षमता सम्पन्न व्यक्तियों के भविष्य कथनों का
विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि इनमें से अधिकाँशतः भविष्यवाणियाँ
समयानुसार सही निकली हैं। वस्तुतः दिव्य दृष्टि में वह सामर्थ्य है, जिसके
सहारे रहस्यमय अदृश्य जगत में भी झाँका जा सकता है और उस पर पड़े पर्दे को
उघाड़ा जा सकता है। अदृश्यदर्शी यह कहते भी हैं। यद्यपि उन सभी को योगी ऋषि
तो नहीं कहा जा सकता, पर अपने दिव्य दर्शन की विशिष्टता के कारण वे मनीषी
तो हैं ही।
ऐसे मनीषियों में जिनकी गणना मूर्धन्यों में की जाती
है, वे हैं— फ्रांस के प्रख्यात चिकित्सक नोस्ट्राडेमस और काउंट लुईसन,
जो, कीरो के नाम से भी विख्यात हैं। सुप्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक शोपन हावर,
इंग्लैण्ड की मदर वत्सपटन अमेरिका की परामनोविज्ञानी श्रीमती जीन डिक्सन
एवं श्री एडगर के. सी. इजराइल के प्रोफेसर हरार आदि की गणना महान
दिव्यदर्शियों में होती है। वर्ल्ड वाइड चर्च आफ गॉड के अध्यक्ष और प्लेन
टूथ पत्रिका के सम्पादक हार्बर्ट डब्ल्यू आम आर्मस्ट्राँग भी इसी श्रेणी
में गिने जाते हैं। भारत की महान विभूतियों एवं दिव्यदर्शियों में महर्षि
अरविन्द और स्वामी विवेकानन्द के नाम अग्रणी हैं। इस्लाम धर्म के ख्याति
प्राप्त विद्वान सैयद कुत्ब की गणना भी इसी वर्ग में की जाती है। यह सभी
नाम उन कुछ मनीषियों- विभूतियों के हैं, जिन्होंने अपने दिव्य चक्षु के
आधार पर जो देखा और कहा, वह प्राय: यथासम्भव शतप्रतिशत सच साबित होता चला
गया।
नोस्ट्राडेमस :: दिव्य द्रष्टा भविष्यवक्ताओं में सबसे प्रमुख
और प्राचीन नाम फ्रांस के विख्यात चिकित्सक नोस्ट्राडेमस का आता है। उनका
जन्म सन् १५०३ में और मृत्यु १५५९ में हुई थी। उनकी ४०० भविष्यवाणियों का
संकलन सेंचुरीज नामक पुस्तक में कई खण्डों में प्रकाशित हुआ है। उसमें १५
वीं शताब्दी से लेकर सन् २०३७ की अवधि तक की भविष्यवाणियों में से सभी
समयानुसार सही उतरी हैं। उनमें से प्रमुख हैं- फ्रांस की राज्य क्रान्ति,
नैपोलियन और हिटलर के जन्म से पूर्व ही उनने उसके सम्बन्ध में लिखा था कि
इटली और फ्रांस की सीमापर स्थित एक सामान्य परिवार में जन्मा बालक एक दिन
दुनिया का सबसे तानाशाह बन बैठेगा, किन्तु जीवन के उत्तरार्द्ध में उसे
‘‘हेलेना’’ नामक द्वीप में कैदी का जीवन व्यतीत करते हुए मृत्यु का वरण
करना होगा। इतिहास वेत्ता जानते हैं कि यह सब घटनाएँ ठीक उसी प्रकार घटित
हुईं जैसा कि नोस्ट्राडेमस ने अपने भविष्य कथन में लिखा।
सेंचुरीज में उनने हिटलर का हिस्टलर के नाम से सबसे निरंकुश तानाशाह के रूप
में उल्लेख किया है। पैदा होने के लगभग ३५० वर्ष पूर्व ही नोस्ट्राडेमस ने
उसके अभ्युदय और पराभव का सारा इतिहास लिपिबद्ध कर दिया था। जापान में हुए
बम प्रहार और उससे उत्पन्न विभीषिका एवं नर संहार का वर्णन भी उनने अपनी
अंतर्दृष्टि के आधार पर कर दिया था, जिसका साक्षी द्वितीय विश्व युद्ध है।
इसके अतिरिक्त उनकी भविष्यवाणियों में बीसवीं शताब्दी के अंतिम दो दशकों
में बुद्धिवाद का चरमोत्कर्ष पर पहुँचना, वैज्ञानिक क्षेत्र में आविष्कार,
प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करने में दैवी प्रकोपों के घटाटोप का गहराना और
अंतत: एशिया से मानव जाति के उज्ज्वल भविष्य के निर्धारण हेतु एक प्रचण्ड
शक्ति का प्रादुर्भाव होना आदि सम्मिलित हैं। नोस्ट्राडेमस ने लिखा है कि
बुद्धिवाद के पराकाष्ठा पर पहुँचने के बाद भक्तिवाद की, श्रद्धा संवर्धन
की, एक बड़ी शान्ति की लहर आएगी और युग परिवर्तन होकर ही रहेगा।
नोस्ट्राडेमस की पुस्तक- सैंचुरीज का विश्व भर के ५० से अधिक विद्वानों ने
गहराई से अध्ययन किया है। इनमें से एक आक्सफोर्ड की १८ वर्षीया छात्रा
ऐरिका ने उनकी हस्तलिखित पुस्तक को पुस्तकालय से ढूँढ़ निकाला। इन अध्ययन
कर्ताओं का कहना है कि उसमें जो कुछ भी लिखा है, वह सब या तो घटित हो चुका
है अथवा आने वाले निकट भविष्य में घटित होने वाला है। उनके मतानुसार
नोस्ट्राडेमस ने सतयुग के आगमन से पूर्व एक तीसरी विध्वंसक महाशक्ति
एंटीक्राइस्ट का उल्लेख किया है, जिसे कलियुग की असुरता का चरमोत्कर्ष कहा
जा सकता है। इन दिनों विश्व इसी अवधि से गुजर रहा है। यह सन्धिकाल सन् १९९९
तक चलेगा। इस अवधि में एक नई आध्यात्मिक चेतना का उदय अनुशासनों,
मान्यताओं एवं वैज्ञानिक निर्धारणों को समन्वित कर, संहार की संभावनाओं को
निरस्त करेगा और नये युग का श्रीगणेश होगा, जिसे उन्होंने ‘एज आफ टुथ’ का
नाम दिया।
नोस्ट्राडेमस ने संस्कृति दृष्टि से सम्पन्न भारतवर्ष
के एक महाशक्ति के रूप में उभरने की बात अपनी भविष्यवाणियों में लिखी है
और कहा है कि तीन ओर से सागर से घिरे, धर्म प्रधान, सबसे पुरातन संस्कृति
वाले एक महाद्वीप से वह विचारधारा निस्सृत होगी, जो विश्व को विनाश के
मार्ग से हटाकर विकास के पथ पर ले जाएगी। सभी मनीषी इन भविष्यवाणियों में
भारतवर्ष के एक विश्वनेता के रूप में उभरने की झलक देखते हैं और कहते हैं
कि भावी समय की विचारक्रान्ति ही नवयुग की आधारशिला रखेगी।
महर्षि अरविन्द :: सभी प्रॉफेटस, भविष्यवेत्ताओं, दिव्य दृष्टि सम्पन्न
मनीषियों का मत है कि सन् २००० के आगमन से पूर्व जो प्रलयंकर हलचलें दिखाई
पड़ेंगी, इनसे किसी को निराश नहीं होना चाहिए। महर्षि अरविन्द का कहना है
कि जब भी कभी उच्छृंखलता अपनी सीमा लाँघ जाती है, तो आत्मबल सम्पन्न
व्यक्तियों में सुपरचेतन सत्ता अवतरित होती है। इस सामूहिक चेतना का नाम ही
अवतार प्रक्रिया है। अब महाकाल की युग प्रत्यावर्तन प्रक्रिया व्यक्ति के
रूप में नहीं, विचारशक्ति के रूप में अवतरित होगी एवं इसे ही निष्कलंक
प्रज्ञावतार कहा जाएगा। व्यक्ति की विचारणा में परिवर्तन के प्रवाह के रूप
में यह जन्म ले चुकी है एवं बुद्धावतार के उत्तरार्द्ध के रूप में विगत
शताब्दी से गतिशील है।
स्वामी विवेकानन्द :: स्वामी विवेकानन्द
ने सन् १८९७ में एक भाषण अपने मद्रास प्रवास की अवधि में दिया था। यह भाषण
‘‘भारत का भविष्य शीर्षक से ‘‘विवेकानन्द संचयन नामक पुस्तक में प्रकाशित
हुआ है। इसमें उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि जन- जन तक व्यावहारिक अध्यात्म
के सूत्रों को पहुँचाने के लिए मंदिरों को जनजाग्रति केन्द्रों के रूप में
विकसित होते देखा जा सकेगा। व्यापक स्तर पर संस्कार शिक्षा के केन्द्र
खुलेंगे। संस्कृति का प्रचार होगा और संस्कृति विश्व भाषा बनेगी। आने वाला
युग एकता का- समता का होगा। इस आध्यात्मिक साम्यवाद को कार्य रूप में परिणत
करने में अनेक नवयुवकों की महती भूमिका होगी। वे ही संस्कृति के उद्धारक-
रक्षक बनेंगे और नवयुग की कल्पना को साकार रूप में कर के दिखाएँगे
दिव्य दृष्टता प्रो. हरार की गणना विश्व के मूर्धन्य दिव्य द्रष्टा
भविष्यवक्ताओं में की जाती है। जन्म इजरायल के एक धर्मनिष्ठ यहूदी परिवार
में हुआ था। उनके द्वारा की गई भविष्यवाणियाँ प्राय: यथा समय सच सिद्ध होती
रही हैं। भावी परिवर्तनों के बारे में वह कहा करते थे कि ‘‘मुझे स्पष्ट
दिखाई दे रहा है कि भारतवर्ष एक विराट शक्ति के रूप में उभरेगा। वहाँ एक
संस्थान धर्मतंत्र को माध्यम बनाकर विचारक्रान्ति का विश्वव्यापी वातावरण
बनाएगा। सन् २००० तक समस्त छोटी बड़ी शक्तियाँ मिलकर एकाकार हो जाएँगी। तब न
भाषा का बंधन रहेगा और न साम्प्रदायिकता एवं क्षेत्रीय विभाजन की
संकीर्णता का। सब मिलजुलकर रहेंगे और मिल बाँटकर खाएँगे
जीन
डिक्सन :: ‘‘माई लाइफ एण्ड प्रोफेसीज’’ ‘‘ए गिफ्ट आफ प्रोफेसीज एवं ‘‘द काल
टू द ग्लोरी’’ नामक पुस्तकों की जीन लेखिका श्रीमती जीन डिक्सन चौदह वर्ष
की किशोर वय से ही अपने भविष्य कथन के लिए बहुचर्चित रही हैं। एक
‘‘क्रिस्टल बॉल’’ के माध्यम से उनके द्वारा की गई भविष्यवाणियाँ समय- समय
पर शत- प्रतिशत सही उतरती रही हैं। वे अभी भी अमेरिका में कार्यरत हैं।
उनने सन् १९४५ में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रेंकलिन रूजवेल्ट की
मृत्यु की घोषणा वर्षों पूर्व कर दी थी। इसी तरह १९५३ में स्टालिन की
मृत्यु एवं उनके उत्तराधिकारियों की भी वे घोषणा कर चुकी थी, जो आगे चलकर
सही निकलीं, संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव डेग हेमशील्ड के सन् १९६१ में
एक हवाई दुर्घटना में मारे जाने की घोषणा महीनों पूर्व कर चुकी थीं। वही
हुआ भी।
जीन डिक्सन तब विश्व विख्यात हो चुकी थीं, जब सन् १९६०
में अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी के चुनाव जीतते ही उनने पूर्व कथन
कर दिया था कि नवम्बर १९६३ के द्वितीय सप्ताह में टेक्सास प्रान्त में
उनकी हत्या कर दी जाएगी। हत्या के पूर्व राष्ट्रपति भवन तक वह तीन बार
चेतावनियाँ भी प्रेषित कर चुकीं थीं, परन्तु भवियतव्यता नहीं टली। जवाहरलाल
नेहरू के असामयिक निधन एवं रूसी नेता ख्रुश्चेव के पतन की भी वे पूर्व
घोषणा कर चुकी थीं।
बीसवीं शताब्दी के अंतिम बारह वर्षों के
बारे में उनकी भविष्यवाणी रही है कि अमेरिका गृह युद्ध के साथ मध्यपूर्व के
युद्ध में उलझ जाएगा। यूरोपीय सभ्यता भोगवाद एवं युद्ध की नीति छोड़कर
अन्ततः: भारतीय संस्कृति के जीवन मूल्यों को अपनाने के लिए बाध्य होगी।
संसार भर के उच्चकोटि के प्रतिभाशाली वैज्ञानिक एक मंच पर एकत्र होकर विश्व
मानवता के लिए नये- नये आविष्कार करेंगे। ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत- प्रचुर
मात्रा में खोज लिए जाएँगे। शिक्षा के क्षेत्र में आमूल- चूल परिवर्तन हो
जाएगा और बच्चों को प्राचीन गुरुकुलों की तरह संस्कार शालाओं में
सुसंस्कारिता की शिक्षा मिलने लगेगी। वे कहती हैं कि तब मानव का मस्तिष्कीय
विकास एवं अतीन्द्रिय क्षमताओं का विकास इस सीमा तक हो जाएगा कि वे विचार
सम्प्रेषण से ही एक दूसरे से सम्पर्क किया करेंगे और विश्व एक सूत्र में
आबद्ध हो जाएगा।
इक्कीसवीं सदी को जीन डिक्सन ने उज्ज्वल
संभावनाओं से भरापूरा बताया है। वे बताती हैं कि सन् २००० तक ‘‘नीति और
अनीति का संघर्ष तो चलता रहेगा, पर अंततः: नीति की, सत्प्रवृत्तियों की ही
विजय होगी। सन् २०२० तक धरती पर स्वर्ग की कल्पना साकार होने लगेगी। तब न
प्रदूषण की समस्या रहेगी और न बीमारी- भुखमरी से किसी को त्रस्त होना
पड़ेगा। चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में अद्भुत उन्नति होगी। अन्तरिक्षीय
यात्राएँ प्रकाशगति से भी तीव्र गति से चलने वाले यानों द्वारा सम्पन्न हुआ
करेंगी। सन् २०२० तक सारी मानव जाति को क्रिया- व्यापार एक ही विश्व सत्ता
के अधीन संचालित होता हुआ दृष्टिगोचर होगा।’’
अपनी प्रसिद्ध
कृति ‘‘माई लाइफ एंड प्रोफेसीज’’ के आठवें अध्याय में जीन डिक्सन लिखतीं
हैं कि ‘‘इक्कीसवीं सदी नारी प्रधान होगी। विभिन्न क्षेत्रों का नेतृत्व
महिलाएँ संभालेंगे विश्व शान्ति स्थापना की दिशा में भारत की भूमिका का
उन्होंने विशेष उल्लेख किया है और कहा है कि अपने आध्यात्मिक मूल्यों एवं
वैचारिक क्रान्ति के माध्यम से वह समस्त विश्व में समतावादी शासन का
सूत्रपात करेगा।’’ उनके भविष्य कथन के अनुसार राष्ट्रसंघ का कार्यालय अगले
दिनों भारत में बनेगा।