इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग १

पिछले दिनों बढ़े विज्ञान और बुद्धिवाद ने मनुष्य के लिये अनेक असाधारण सुविधाएँ प्रदान की हैं, किन्तु सुविधाएँ बढ़ाने के उत्साह में हुए इनके अमर्यादित उपयोगों की प्रतिक्रियाओं ने ऐसे संकट खड़े कर दिए हैं, जिनका समाधान न निकला, तो सर्वविनाश प्रत्यक्ष जैसा दिखाई पड़ता है।

इस सृष्टि का कोई नियंता भी है। उसने अपनी समग्र कलाकारिता बटोर कर इस धरती को और उसकी व्यवस्था के लिए मनुष्य को बनाया है। वह इसका विनाश होते देख नहीं सकता। नियंता ने सामयिक निर्णय लिया है कि विनाश को निरस्त करके संतुलन की पुन: स्थापना की जाए।

सन् १९८९ से २००० तक युग सन्धिकाल माना गया है। सभी भविष्यवक्ता, दिव्यदर्शी इसे स्वीकार करते हैं। इस अवधि में हर विचारशील, भावनाशील, प्रतिभावान को ऐसी भूमिका निभाने के लिये तैयार- तत्पर होना है, जिससे वे असाधारण श्रेय सौभाग्य के अधिकारी बन सकें।

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