गायत्री की साधना सर्व सुलभ भी है और सर्वोत्तम फलदायिनी भी। हमने स्वयं अपने इस छोटे से जीवनकाल में सवा करोड़ से अधिक जप के पुरश्चरण किये हैं। इस साधना में हमें जो अनुभव हुए हैं उनका वर्णन करना उचित न समझकर केवल इतना ही कहना चाहते हैं कि— गायत्री ही भूलोक की कामधेनु है। यह मंत्र इस भूतल का कल्प-वृक्ष है। लोहे को स्वर्ण बनाने वाली, तुच्छ को महान बनाने वाली, पारसमणि गायत्री ही है। यह वह अमृत निर्झरणी है, जिसका आचमन करने वाले को परम तृप्ति और अगाध शान्ति प्राप्त होती है। गायत्री की आध्यात्मिक ज्ञान गंगा में स्नान करके मनुष्य सब प्रकार से पाप-तापों से छुटकारा पा सकता है। हमारी सलाह और पथ-प्रदर्शन में अब तक जिन अनेक स्त्री-पुरुषों ने गायत्री की उपासना की है उनने भी अपने अनुभव संतोषजनक बताये हैं। इन सब अनुभवों के आधार पर हमारा सुनिश्चित विश्वास है कि कभी किसी की गायत्री साधना निष्फल नहीं जाती।
‘‘गायत्री महाविज्ञान’’ के दोनों खण्डों में अनेकों साधन विधियों का वर्णन है। उनमें से कुछ सर्वसुलभ एवं निरापद साधनायें संक्षिप्त रूप में इस पुस्तक में संकलित की गयी हैं। पुस्तक में वर्णित कोई बात समझ में न आवे तो जवाबी पत्र भेजकर लेख का समाधान किया जा सकता है। विशेष जानकारी के लिये ‘‘गायत्री महाविज्ञान’’ के तीनों खण्डों को पढ़ना चाहिये।
—पं0 श्रीराम शर्मा आचार्य
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