बालकों का भावनात्मक निर्माण

बालक समाज तथा राष्ट्र की एक अमूल्य धरोहर होते हैं । इन्हीं मिट्टी के कच्चे लोंदों से राणाप्रताप, शिवाजी तथा महात्मागांधी जैसे महापुरुषो का निर्माण किया जा सकता है । यह पावन धरोहर यदि सही ढंग से सँभाली, सुरक्षित रखी तथा विकसित की जाए तो मानवता का भविष्य प्रकाशमय बनाया जा सकता है । हमारे सामने आज कितनी समस्याएं मुँह बाये खड़ी है । राष्ट्रीय, सामाजिक तथा नैतिक पुनरुत्थान का बहुत बड़ा दायित्व आज हमारे कंधों पर आ पड़ा है । इसी दायित्व कल हम आने वाली पीढ़ी के कंधों पर रखेंगे । यदि उनके कंधे कमजोर हुए तो वे लड़खड़ा जाएँगे । उन्हें आज से ही ऐसे सुदृढ़ बनाने में जुटना पड़ेगा, तभी कल वे इस भार को वहन कर सकेंगे । ईश्वर की र्पावत्र धरोहर- बालक कभी-कभी माता-पिता के लिए एक समस्या बन जाते हैं । इसका दोष बालकों को दिया जाना गलत होगा । बालक जो कुछ भी सीखता है, समाज से ही सीखता है । अपने आस-पास जो कुछ वह व्यवहार होते देखता है उसी का अनुकरण करता है । सबसे पहले वह माता-पिता का ही अनुकरण करता है । बालक माता-पिता तथा समाज का प्रतिबिंब अपने क्रिया-कलापों में प्रस्तुत करता है । नई पीढ़ी के निर्माण की कला से अनभिज्ञ-अपने उत्तरदायित्व से अनजान रहकर संतान का पालन-पोषण तो किया जा सकता है, पर निर्माण नहीं । इस पुस्तक में माता-पिता तथा समाज के उस दायित्व का मान तथा बाल मनोविज्ञान की ऐसी जानकारियाँ जुटाई गई है । जिसे पढ़कर पाठक नए सिरे से सोचने को विवश होता हैं तथा भावी पीढ़ी के निर्ग्गण करने गे एक कलाकार जैसा कौशल दिखाने का उत्साह मन में जाग्रत् होता है ।

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