बड़े आदमी नही महामानव बनें

न जाने किस कारण लोगों के मन में यह भ्रम पैदा हो गया है कि ईमानदारी और नीतिनिष्ठा अपनाकर घाटा और नुकसान ही हाथ लगता है । सभवत: इसका कारण यह है कि लोग छलबल से धूर्तता और चालाकी द्वारा जल्दी-जल्दी धन बटोरते देखे जाते हैं । तेजी से बढ़ती सम्पन्नता देखकर देखने वालों के मन में भी वैसा ही वैभव अर्जित करने की आकांक्षा उत्पन्न होती है । वे देखते हैं कि वैभव संपन्न लोगों का रौब और दबदबा रहता है । किन्तु ऐसा सोचते समय वे यह भूल जाते हे कि बेईमानी और चालाकी से अर्जित लिए गए वैभव का रौब और दबदबा बालू की- दीवार ही होता है, जो थोड़ी-सी हवा बहने पर ढह जाता है तथा यह भी कि वह प्रतिष्ठा दिखावा, छलावा मात्र होती है क्योंकि स्वार्थ सिद्ध करने के उद्देश्य से कतिपय लोग उनके मुँह पर उनकी प्रशंसा अवश्य कर देते हैं, परन्तु हृदय में उनके भी आदर भाब नहीं होता। इसके विपरीत ईमानदारी और मेहनत से काम करने वाले नैतिक मूल्यों को अपनाकर नीतिनिष्ठ जीवन व्यतीत करने वाले भले ही धीमी गति से प्रगति करते हों परंतु उनकी प्रगति ठोस होती है तथा उनका सुयश देश काल की सीमाओं को लांघकर विश्वव्यापी और अमर

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