अमर वाणी - १

हमें स्वयं भी विभूतिवान सिद्ध होना होगा

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  अभी इन दिनों युग-परिवर्तन के प्रचण्ड अभियान का शुभारम्भ हुआ है। ज्ञान यज्ञ की हुताशन वेदी पर बौद्धिक, नैतिक एवं सामाजिक क्रान्ति की ज्वाला प्रज्जवलित करने वाली आज्याहुतियाँ दी जा रही हैं। जन्मेजय के नाग यज्ञ की तरह फुफकारते हुए विषधर तक्षकों को ब्रह्म तेजस्, स्वाहाकार द्वारा घसीटा ही जायगा तो उस रोमांचकारी दृश्य को देखकर दर्शकों के होश उड़ने लगेंगे। वह दिन दूर नहीं जब आज की अरणि मन्थन से उत्पन्न स्फुल्लिंग शृंखला कुछ ही समय उपरान्त दावानल बनकर कोटि-कोटि जिह्वाएँ लपलपाती हुई वीभत्स जंजालों से भरे अरण्य को भस्मसात करती हुई दिखाई देंगी।

    अभी भारत में-हिन्दू धर्म में-धर्ममन्च से,युग निर्माण परिवार में यह मानव जाति का भाग्य निर्माण करने वाला अभियान  केन्द्रित दिखाई पड़ता हैं। पर अगले दिनों उसकी वर्तमान सीमाएँ अत्यन्त विस्तृत होकर असीम हो जायेंगी। तब किसी संस्था-संगठन का नियन्त्रण निर्देश नहीं चलेगा वरन् कोटि-कोटि घटकों से विभिन्न स्तर के ऐसे ज्योति-पुंज फूटते दिखाई पड़ेंगे,जिनकी अकूत शक्ति द्वारा सम्पन्न होने वाले कार्य अनुपम और अदभुत ही कहे जायेंगे। महाकाल ही इस महान परिवर्तन का सूत्रधार हैं और वही समय अनुसार अपनी आज की मंगलाचरण थिरकन को क्रमशःतीव्र से तीव्रतर,तीव्रतम करता चला जायगा। ताण्डव नृत्य से उत्पन्न गगनचुम्बी ज्वाज्वल्यमान आग्नेय लपटों द्वारा पुरातन को नूतन में परिवर्तित करने की भूमिका किस प्रकार,किस रूप में अगले दिनों सम्पन्न होने जा रही हैं,आज उन सबको सोच सकना,कल्पना परिधि में ला सकना सामान्य बुद्घि के लिए प्रायः असंभव ही हैं। फिर भी जो भवतव्यता हैं वह होकर रहेगी। युग को बदलना ही हैं, आज की निविड़ निशा के कल का प्रभात कालीन अरूणोदय में परिवर्तर्न हो कर रहेगा।

-वाङ्मय ६६-३-३९,४०

    हम इन दिनों विभूतियों को प्रेरणा देने के कार्य में लगे हैं और यह प्रयास आरंभ भले ही छोटे क्षेत्र से हुआ हो पर अब अधिकाधिक व्यापक विस्तृत होता चला जा रहा है। युग परिवर्तन की भूमिका लगभग महाभारत जैसी होगी। उसे लंकाकाण्ड स्तर का भी कहा जा सकता है। स्थूल बुद्धि इतिहासकार इन्हें भारतवर्ष के अमुक क्षेत्र में घटने वाला घटनाक्रम भले ही कहते रहें पर तत्वदर्शी जानते हैं कि अपने-अपने समय में इन प्रकरणों का युगान्तरकारी प्रभाव हुआ था। अब परिस्थितियाँ भिन्न हैं। अब विश्व का स्वरूप दूसरा है। समस्याओं का स्तर भी दूसरा ही होगा, भावी युग परिवर्तन प्रक्रिया का स्वरूप और माध्यम भूतकालीन घटनाक्रम से मेल नहीं खा सकेगा किन्तु उसका मूलभूत आधार वही रहेगा जो कल्प-कल्पान्तरों से युग-परिवर्तनकारी उपक्रमों के अवसर पर कार्यान्वित होता रहा है।

    युग निर्माताओं की इस सृजन सेना के अधिनायकों के उत्तरादयित्व का भार वहन कर सकने में समर्थ आत्माओं को साधना-सत्रों में अभीष्ट अनुदान के लिए बुलाया जाता रहता है। यहीं प्रक्रिया विकसित होकर विश्वव्यापी बनने जा रही है। परिवर्तन न तो भारत तक सीमित रहेगा और न उसकी परिधि हिन्दू धर्म तक अवरुद्ध रहेगी। परिवर्तन विश्व का होना है। निर्माण समस्त जाति का होगा। धरती पर स्वर्ग का अवतरण और मनुष्य में देवत्व का उदय किसी देश, जाति, धर्म, वर्ग तक सीमित नही रह सकता उसे असीम ही बनना पड़ेगा। इन परिस्थितियों में युगनिर्माण प्रक्रिया का विश्वव्यापी होना एक वास्तविक तथ्य है।
-वाङ्मय ६६-३-४०,४१
                                                                             
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