अपनी इन्हीं मान्यताओं और क्रिया पद्धतियों को लेकर युग-निर्माण योजना एक सुनियोजित और सुव्यवस्थित गति से आगे बढ़ती चली जा रही है। दूसरे संगठन या आंदोलन दो आधार लेकर चलते हैं-(१)आर्थिक साधन, (२)तथाकथित बड़े और प्रभावशाली व्यक्तियों का सम्बंध। बड़े कहलाने वाले सगठनों की चमक-दमक हलचल दिख पड़ती हैं, उनमें बड़े आदमियों का बुद्घि-कौशल व्यक्तित्व और धन छाया रहता हैं। और उसी आधार पर वह आवरण खड़ा रहता हैं। जड़ बिल्कुल खोखली होती हैं। नीचे से ईंट निकली की सारा ढाँचा लड़खड़ाकर गिर पड़ता हैं। कल के बड़े आंदोलन और बड़े संगठन आज विस्मृति के गर्त में गिरते दिखाई पड़ते हैं। युग निर्माण योजना का मूल आधार जीवित भावना सम्पन्न और सुसंस्कारी व्यक्तियों का संग्रह हैं। इसे एक अद्भुत उपलब्धि ही कहना चाहिए कि एक-एक करके ढूँढ़ते हुए व्यक्तिगत ढूँढ़-खोज परख करते हुए व्यक्तिगत संपर्क के आधार पर ऐसे भावनाशील और आदर्शवादी व्यक्तित्व ढूँढ़ निकाले गये। उन्हें एक मात्र सूत्र में माला की तरह गुँथा गया और एक ऐसी बहुमुखी कार्य पद्घति दी गई जिसके आधार पर वह संघठन प्रचारात्मक, रचनात्मक और संघर्षात्मक विविध प्रवृत्तियों के अपने क्षेत्र में,अपने ढंग से,अपनी योग्यतानुसार चलता रह सके। कार्य करने से ही अभ्यास बढ़़ता हैं, अनुभव होता हैं और उत्साह उमड़ता हैं और साहस चलता हैं। शतसूत्री योजनाओं में संलग्न युग निर्माण परिवार अब ऐसी स्थिति में विकसित हो गया हैं कि जिन आदर्शों को लेकर यह अभियान आरंभ हुआ था,उसकी संभावना को सफलता के रूप में देखा जा सके।
कार्य भले ही कम हुआ हो,पर कार्यकर्त्ताओं ने अपने क्षेत्र में असाधारण श्रद्घा अर्जित की हैं,जन-शक्ति को साथ लेकर चलने में आश्चार्यजनक सफलता पाई है। पिछले दिनों की उपलब्धियों पर दृष्टिपात करने से दो तथ्य ऐसे हैं जिन्हें देखते हुए यह विश्वास किया जा सकता है। कि कुछ दिन पहले जिस आन्दोलन को बहस, सनक, कल्पना की उड़ान, छोटे मुँह की बात, असंभव आदि कहकर उपहास उड़ाया जाता था। वह अगले दिनों तक यथार्थता बनने जा रहा है। इसके दो कारण हैं-१. परिवार का आदर्शवादी आस्थाओं के आधार पर गठन। २. जनता की आकांक्षाओं के, युग की माँग के अनुरूप कार्य पद्धति का अपनाया जाना। गाँधी जी का आन्दोलन इन दो कारणों से ही सफल हुआ था। एक तो उन दिनों एक से एक बढ़कर भावनाशील और निर्मल चरित्र व्यक्ति इसमें सम्मिलित हुए थे, दूसरे देश की जनता का बच्चा-बच्चा जिस स्वतंत्रता की आवश्यकता अनुभव करता था। उसी की पूर्ति को लक्ष्य बनाकर काँग्रेस चल रही थी। ठीक यही इतिहास ज्यों का त्यों युग निर्माण योजना दुहरा रही है और ठीक उसी आधार पर उसे जन सहयोग मिल रहा है तथा असंभव समझा जाने वाला लक्ष्य नितांत संभव होता दीख रहा है।
-वाङ्मय ६६-३-२०
जनता की जो आकांक्षायें आज हैं, उसी के अनुरूप युगनिर्माण योजना मार्गदर्शन दे रही है, भावनाओं का परिवर्तन, सृजनात्मक कार्यों में पारस्परिक सहयोग का उत्साहपूर्वक नियोजन, अवांछनीयता से हर क्षेत्र में लड़ पड़ने का शौर्य-साहस यह तीनों ही प्रवृत्तियाँ ऐसी हैं जो एक बार अभरी सो उभरीं। असुरता में ही पनपने की शक्ति हो सो बात नहीं है, देवत्व में भी आत्मविस्तार की क्षमता है। उसे यदि अवसर मिल सके तो उसका अभिवर्द्धन और भी अधिक द्रुतगति से होता है। एक व्यक्ति दूसरों को बनाए-यही है सच्चा और ठोस आधार।
पोला आधार वह है जिसमें लाउडस्पीकर चिल्लाते और अखबार लंबे-लंबे समाचार छापते हैं। मंच-पंडाल बनते, धुँआधार भाषण होते और पर्चे-पोस्टरों के गुब्बारे उड़ते हैं। किराए पर जुलूस की भीड़ जमा करने का भी अब एक व्यवस्थित धंधा चल पड़ा है। यह फुलझड़ियाँ बिल्कुल बचकानी हैं और आंदोलनों के नाम पर यही तमाशे हर ओर खड़े दिखाई पड़ते हैं। इस विडम्बना के युग में युग-निर्माण योजना अपना अलग आधार लेकर चल रही है। व्यक्ति द्वारा व्यक्ति को बनाया जाना, दीपक द्वारा दीपक को जलाया जाना, यही है अपना सिद्धांत। चंदा माँगते फिरने से काम शुरु करना नहीं वरन् घर से खैरात शुरु करना, स्वयं समय और पैसा खर्च करके अपनी निष्ठा का परिचय देना और उसी से दूसरों में अनुकरण की आकांक्षा उत्पन्न करना यही है अपना वह क्रिया-कलाप जिसने लक्ष्य की ओर दु्रतगति से चलने में कीर्तिमान स्थापित किया है।
-वाङ्मय ६६-३-२१