पीछे तो इसका विस्तार अपरिमित क्षेत्र में होना है। अगणित व्यक्ति, संगठन, देश और समूह इस योजना को अपने-अपने ढ़ग से कार्यान्वित करेंगे। जिस प्रकार अध्यात्मवाद, साम्यवाद, भौतिकतावाद आदि अनेक ‘वाद’ कोई संस्था नहीं, वरन् विचारधारा एवं प्रेरणा होती है, व्यक्ति या संगठन इन्हें अपने-अपने ढ़ग से कार्यान्वित करते है, इसी प्रकार युग-निर्माण कार्यक्रम एक प्रकाश-प्रवाह एवं प्रोत्साहन उत्पन्न करने वाला एक मार्गदर्शक बनकर विकसित होगा। आज ‘गायत्री परिवार’ उसकी प्रथम भूमिका सम्पादित करने का प्रयत्न मात्र ही कर सकेगा। इतना कार्य कर सकने की क्षमता उसमें मौजूद है यह भली प्रकार सोच-समझकर, नाप तौलकर ही कार्य आरम्भ किया गया है। ‘लोकहँसाई’ का हमें भी ध्यान है।
-वाङ्मय ६६-2-७२