आसन और प्राणायाम
जब मैं पाँच वर्ष का था तभी से मुझे बीमारियों ने घेर लिया था । आरंभ में मेरी बाँई जाँघ में अस्थि-शोध हुआ, अस्पताल में चीर-फाड़ हुई जिसमें बेकाम हड्डी कै तीन टुकड़े निकाले गए। इसके बाद मैं बहुत ही दुर्बल, पीला और रक्तहीन हो गया, डॉक्टरों ने मेरी कम चौड़ी और सिकुड़ी हुई छाती को देखकर संदेह प्रकट किया कि कहीं तपेदिक का शिकार न हो जाऊँ। वैसे मैं इतना दुर्बल और रुग्ण आकृति का हो गया था कि हर कोई मुझे तपेदिक का रोगी समझता था।
अनेक उपचारों के बाद भी जब किसी प्रकार मेरे स्वास्थ्य में कोई उन्नति न हुई, तो निराश होकर मैं अपनी मृत्यु की घडियाँ गिनने लगा। इन्हीं दिनों मैंने एक व्याख्यान में सुना कि प्राणायाम द्वारा अधिक आक्सीजन प्राप्त करके फेफडो़ को मजबूत और स्वास्थ्य को उन्नत बनाया जा सकता है। उसी दिन से मैंने प्राणायाम करना आंरभ कर दिया। सोते-जागते सदा मुझे प्राणायाम की ही धुन लगी रहती ।
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