स्नान की लाभदायक विधि

April 1958

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(योगी रामचारक)

हमारे देश में स्नान का प्रचार अन्य कई देशों से अधिक है। हिन्दू समाज में तो स्नान को धर्म का एक आवश्यकीय अंग ही बना दिया गया है और हर एक पूजा, पाठ, जप, अनुष्ठान तथा अन्य तमाम धार्मिक और सामाजिक क्रियाओं के पहले स्नान कर लेने का विधान है। फिर हमारा देश गर्म मौसम वाला है इसलिए हमको स्वाभाविक रूप से भी स्नान की आवश्यकता होती है।

पर खेद है कि स्नान का इतना प्रचार होते हुए भी अधिकाँश लोग स्नान ऐसे ढंग से करते हैं कि उससे कोई वास्तविक लाभ नहीं होता। जो लोग धर्म के ख्याल से स्नान करते हैं वे जल में एक या दो बार डुबकी लगा लेने या सर पर दो चार लोटा जल डाल लेने से स्नान की पूर्ति समझ लेते हैं। स्त्रियाँ तो आमतौर पर लज्जा के कारण पूरे वस्त्र पहिन कर स्नान करती हैं और अनेक बार पानी उनके वस्त्रों को ही भिगो पाता है, देह तक बहुत कम पहुँचता है। इस प्रकार हम यद्यपि स्नान का दिखावा कर लेते हैं, पर लाभ की दृष्टि से वह निरर्थक ही होता है। इससे अच्छा स्नान तो उन योरोपियन, अमरीकन आदि लोगों का होता है जो चाहे सप्ताह में एक दफे नहाएं, पर उस समय बदन की इतनी सफाई करते हैं कि मैल का चिन्ह भी शेष नहीं रह सकता। इसी प्रकार मुसलमान भी जब शुक्र के दिन हमाम में स्नान करते हैं शरीर के मैल को भली प्रकार छुड़ाते हैं। हमारे स्नान और इन स्नानों का अन्तर एक इसी बात से जाना जा सकता है कि जहाँ हमारे घर की स्त्रियाँ या भोजन बनाने वाले महाराज दो तीन मिनट से भी कम में स्नान कर लेते हैं इन दूसरे प्रकार के स्नानों में आध घण्टा या एक घण्टा से कम समय नहीं लगता।

हमको स्नान की आवश्यकता क्यों है? इसका एक लाभ शरीर के ऊपर पड़े हुए मैल का दूर करना तो प्रत्यक्ष ही दिखलाई पड़ता है। हमारे शरीर से सदैव बहुत सा मैल पसीने आदि के रूप में रोम कूपों से निकला करता है। ये छिद्र बहुत छोटे होते हैं, यहाँ तक कि एक वर्ग इंच स्थान में उसकी संख्या 3000 हजार होती हैं। जो लोग अपने शरीर को खूब साफ नहीं रखते उनके रोम कूप शरीर के भीतरी मैल को भली प्रकार नहीं निकाल सकते जिससे यह काम शरीर के अन्य अंगों, गुर्दे आदि के द्वारा होता है और शरीर में अव्यवस्था उत्पन्न हो जाती है। हमारा चमड़ा भी बराबर बदला करता है। देह का बाहरी चर्म जिन अणुओं से बना होता है वे ज्यादा टिकाऊ नहीं होते। वे केंचुल की भाँति मृत होकर बराबर देह से छूटा करते हैं। अगर हम विधिवत् स्नान द्वारा उनको शरीर से पृथक न कर दें तो शरीर पर उनकी एक तह मैल की तरह जम जाती है। यद्यपि उनका कुछ भाग पहनने के कपड़ों की रगड़ खाकर गिर जाता है तो भी बहुत सा शेष रह जाता है, जिसे स्नान के समय हम खूब रगड़ कर अलग कर सकते हैं।

हमको दिन भर में कम से कम एक बार अवश्य भली प्रकार स्नान करना चाहिए। इसके लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल सोकर उठने के बाद होता है। भोजन के ठीक पहले या पीछे स्नान करना हानिकारक माना जाता है। शाम को स्नान करना भी अच्छी बात है। स्नान करते समय मोटे और खुरदरे कपड़े से शरीर को खूब रगड़ो जिससे मुर्दा चमड़ी छूट जायगी और रुधिर संचार में भी तेजी आयेगी। जब शरीर ठण्डा हो उस समय ठण्डे पानी से हर्गिज स्नान न करो। ठण्डे पानी से स्नान करने से पहले कुछ कसरत करके अपने शरीर को गरम कर लो तब स्नान करो।

ठण्डे पानी से स्नान करने के पश्चात् शरीर को कपड़े के बजाय हाथों से खूब मलें और तब कुछ भीगे ही शरीर से सूखे कपड़े पहिन लें। कुछ लोग समझते हैं कि इस प्रकार शरीर को न पोंछने से जाड़ा लगेगा, पर वास्तव में ऐसा करने से गरमाहट मालूम होती है और यदि उस समय थोड़ी सी हलकी कसरत कर ली जाय तो गरमाहट और भी बढ़ जाती है।

हम अपने पाठकों को शुरू में ही अत्यन्त ठण्डे पानी से स्नान करने में सावधान किये देते हैं। यदि तुम्हारे शरीर में जीवनी शक्ति की कमी हो तब तो हर्गिज ऐसा न करना चाहिए। पहले पानी उतना ही ठण्डा लो जितना प्रसन्नता से सहन कर सको। ज्यों-ज्यों शक्ति बढ़ती जाय त्यों-त्यों अधिक ठण्डे पानी से स्नान कर सकते हो। जितने दर्जे का ठण्डा जल तुमको अच्छा लगे उसको ध्यान देकर समझ लो और तब बराबर उसी का प्रयोग करो। सारांश यही है कि पानी ऐसा हो जिससे स्नान करने में प्रसन्नता जान पड़े। कष्ट सहन या प्रायश्चित की भाँति सी-सी करते हुए स्नान करना लाभदायक नहीं होता। जब एक बार आपको उसका मजा मालूम पड़ जायगा फिर आप स्वयं उसको न छोड़ेंगे। इससे आप दिन भर अच्छी तरह रहेंगे। पहले ठण्डा जल शरीर पर डालते हुए सर्दी मालूम होगी पर थोड़े ही अर्से में उसकी प्रतिक्रिया होती है और गर्माहट मालूम होने लगती है।

सबेरे ठण्डे पानी से स्नान का पूर्ण लाभ प्राप्त करने की अगर आपको अभिलाषा हो तो नीचे लिखी विधि से काम लीजिये।

पहले थोड़ी कसरत कर ली जाय जिससे शरीर में रुधिर संचार भली प्रकार होने लगे। इसके लिए सीधे जंगी स्थिति में खड़े हो, सिर ऊंचा, आँखें सामने, कन्धे पीछे और हाथ बगलों में हों। (2) शरीर को धीरे-धीरे पैरों की अंगुलियों पर उठाओ, साथ ही साथ धीरे-धीरे पूरी साँस खींचते जाओ। (3) साँस को भीतर ही कुछ क्षण तक रोके रखो और शरीर को उतने समय तक उसी स्थिति में आ जाओ और साथ ही साथ नाक द्वारा हवा को भी धीरे-धीरे निकालते जाओ। (5) जरा देर ठहर कर फिर वही व्यायाम करो।

तब ऊपर बतलाई विधि से स्नान करो। यदि आप कपड़े द्वारा स्नान चाहते हो तो एक बर्तन में शीतल जल ले लो (जो बहुत ठण्डा न हो परन्तु सुखकर और उतना ही शीतल हो जो कि प्रतिक्रिया उत्पन्न कर सके)। एक मोटा कपड़ा या तौलिया लो, उसे पानी में भिगोओ, और तब उसका आधा पानी निचोड़ डालो। पहले छाती और कन्धों से शुरू करके पीठ, पेट, जाँघ, निचली टाँगें और तब पैरों को खूब रगड़ो। शरीर को सब तरफ से रगड़ने में कपड़े को कई बार पानी में डुबो-डुबो कर आधा निचोड़ लिया करो, जिससे समस्त शरीर को ताजा ठण्डा पानी मिल जाया करे। बहुत जल्दी मत करो, किन्तु शान्ति से स्नान करो।

एक साथ बहुत ठंडे पानी से स्नान आरम्भ नहीं करना चाहिये। वरन् पानी की ठण्डक का अभ्यास धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए।

चाहे शरीर को कपड़े से रगड़ कर स्नान किया जाय और चाहे टब में स्नान करो, पर शरीर को कई बार हाथों से मलना चाहिए। मनुष्य के हाथों में कुछ ऐसी शक्ति है जिसका काम कपड़े से नहीं निकल सकता। एक बार परीक्षा करके देखिए स्नान कर लेने के बाद नीचे लिखी कसरत करने से बहुत लाभ हो सकता है-

(1) सीधे खड़े हो, अपनी भुजाओं को अपने सामने सीधे फैलाओ और उन्हें कन्धों की ऊंचाई पर रखो, मुट्ठियाँ बंधी और एक दूसरे को छूती हो मुट्ठियों को जोर से झोका देकर पीछे बगलों की सीध में या उससे भी तनिक पीछे ले जाओ। इससे छाती का ऊपरी भाग फैलता है। इसे कई बार करके क्षण भर विश्राम कर लो। (2) पहली स्थिति से अन्तिम दशा में आ जाओ, अर्थात् भुजाएं बगलों की ओर कन्धों से सीधी फैली रहें, अब मुट्ठियों को एक वृत (गोलाकार) में घुमाओ। (3) सीधे खड़े हो, हाथों को सिर के ऊपर सीधे ले जाओ, हाथ खुले रहें, अंगूठे एक दूसरे को छूते रहें, तब बिना घुटने को टेढ़ा किये झुककर हाथों की उंगलियों से भूमि को छूने का प्रयत्न करो, यदि न छू सको तो भी जितना सम्भव हो जमीन से उतना पास उंगलियों को ले जाओ, फिर पहली स्थिति में आ जाओ अपने शरीर को पैरों के पंजों के ऊपर उठाओ, ऐसा कई बार करो।

यह कसरत बहुत पेचीदा नहीं है, थोड़े ही प्रयत्न से भली-भाँति होने लगेगी। यह बहुत बल बढ़ाने वाली है और सारे शरीर पर प्रभाव डालती है।


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