जीवन विद्या का आलोक केन्द्र

June 2002

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हिमालय की छाँव और गंगा के जलकणों से अभिसिंचित भूमि में ‘देव संस्कृति विश्वविद्यालय’ की स्थापना हो गयी। बड़े ही गर्व और गौरव के साथ उत्तराँचल शासन ने इसे अपनी स्वीकृति दे दी। युगऋषि परम पूज्य गुरुदेव की दिव्य चेतना के संरक्षण में यहाँ विद्या की साधना और अविद्या से मुक्ति के द्वार खुल रहे हैं। देव संस्कृति की अनगिन सम्भावनाएँ अब यहाँ जन्म एवं जीवन पाने की तैयारी में जुटी हैं। प्रखर साधक अपनी साधना की निर्मल दृष्टि से यहाँ बहुत कुछ अद्भुत होता हुआ देख रहे हैं।

देव संस्कृति विश्वविद्यालय किसी व्यक्ति की कल्पना जन्य निर्मित नहीं, परम पूज्य गुरुदेव के संकल्प की सृष्टि है। इसमें हिमालयवासी ऋषियों एवं देवसत्ताओं के तप और पुण्य का नियोजन है। यह अदृश्य की दिव्य शक्तियों का ऊर्जा-अनुदान केन्द्र है। जो उन्होंने देव संस्कृति के नव्योत्थान के लिए स्थापित किया है। इस सत्य का साक्षी भविष्य स्वयं होगा। सभी इस सच्चाई को अपनी खुली आँखों से निहारेंगे कि अदृश्य चेतना किस तरह अपने प्रचण्ड तप से ऋषित्व को गढ़ती है, देवत्व को निखारती है।

देव संस्कृति विश्वविद्यालय नर रत्नों की, देव मानवों की, देव संस्कृति के देवदूतों की टकसाल है। आध्यात्मिक साधना के गुह्य एवं गहन प्रयोगों से यहाँ प्रज्ञा एवं मेधा के असंख्य दीप जलाये जाएँगे। पुस्तकों के बोझ को लगातार बढ़ाते रहने के बजाय यहाँ विद्यार्थियों के जीवन को तराशा, निखारा एवं गढ़ा जाएगा। इस विश्वविद्यालय की कोख से अनेकों कपिल, कणाद, भारद्वाज और बृहस्पति जन्म लेंगे। अनेकों गार्गी, घोषा, अपाला यहाँ अपने व्यक्तित्व को प्रकाशित करेंगी।

राष्ट्र और विश्व में साधन सम्पन्न विश्वविद्यालय अनेकों होंगे। पर अपने ढंग का साधना सम्पन्न विश्वविद्यालय यह एक ही होगा। जिनके पास अनेक जन्मों के पुण्यों की संचित निधि है, ऐसे पुण्यवान यहाँ आएँगे और विद्यावान् बनेंगे। गंगा की गोद और हिमालय की छाया में अनुशासन की कठोर तप-साधना से यहाँ उन्हें विचारों के साथ उत्तम संस्कार भी मिलेंगे। इसे पाकर वर्तमान संवरेगा, भविष्य निखरेगा। विद्यार्थियों के साथ उनके कुटुम्ब एवं पीढ़ियाँ, राष्ट्र और विश्व इस विश्वविद्यालय के अनुदानों से अनुगृहीत हुए बिना न रहेंगे।


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