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मेरा क्या परिचय पूछ रहे, रचयिता, रक्षक, पोषक हूँ।मैं शून्य किंतु फिर भी विराट, मैं आदि ऋचा उद्घोषक हूँ॥1॥
मैं एक किंतु संकल्प किया, तो एकोऽहम् बहुस्याम हुआ।मैंने विस्तार किया-अपना, ब्रह्मांड उसी का नाम हुआ॥
ये चाँद और सूरज, मेरी आँखों में उगने वाले हैं॥है एक आँख में स्नेह, और दूजी में प्रखर उजाले हैं।
मनचाही सृष्टि, रचाने की क्षमता वाला, मैं कौशिक हूँ।मेरा क्या परिचय पूछ रहे, रचयिता, रक्षक, पोषक हूँ॥2॥
जिसमें मणि मुक्ता छिपे हुए, वह सागर की गहराई हूँ।जिसकी करुणा सुरसरि बनती, उस हिमनद की ऊँचाई हूँ॥
मेरा संगीत छिड़ा करता, कल-कल करते इन झरनों में।मैं सौरभ बिखराता रहता, इन इन रंग बिरंगे सुमनों में॥
यह प्रकृति छटा मेरी ही है, इतना सुँदर मनमोहक हूँ।मेरा क्या परिचय पूछ रहे, रचयिता, रक्षक, पोषक हूँ॥3॥
मेरे चिंतन की धारा से, ऋषियों का प्रादुर्भाव हुआ।मैंने जब ऋचा उचारी तो, सुर संस्कृति का फैलाव हुआ॥
मैं याज्ञवल्क्य, मैं ही वशिष्ठ, मैं परशुराम भागीरथ हूँ।जो कभी अधूरा रहा नहीं मैं ऐसा प्रबल मनोरथ हूँ॥
प्रण पूरा करने महाकाल हूँ, कालचक्र अवरोधक हूँ।मेरा क्या परिचय पूछ रहे, रचयिता, रक्षक, पोषक हूँ॥4॥
जनहित में विष पीने वाली, विषपाई मेरी क्षमता है।जनपीड़ा से विगलित होती, ऐसी करुणा है, ममता है॥
मैंने साधारण वानर को, बजरंग बनाकर खड़ा किया।मेरी गीता ने अर्जुन को, अन्याय मिटाने अड़ा दिया॥
विकृतियों से लोहा लेने, सुर संस्कृति का संयोजक हूँ।मेरा क्या परिचय पूछ रहे, रचयिता, रक्षक, पोषक हूँ॥5॥
मैंने संकल्प किया है फिर, भू पर ही स्वर्ग बसाऊँ।इस ही धरती के मानव को शोधूँगा, देव बनाऊँगा।
इस ही मैं उज्ज्वल भविष्य, इसका साक्षी यह दिनकर है।मेरे संग सविता के साधक, गायत्री वाला परिकर है॥
मैं युगद्रष्टा हूँ, युग परिवर्तन उद्घोषक हूँ।मेरा क्या परिचय पूछ रहे, रचयिता, रक्षक, पोषक हूँ॥6॥