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शान्ति-कुँज गायत्री तीर्थ हरिद्वार में इन दिनों नव सृजन की गतिविधियों के कितने ही नये वर्गों को प्रतिष्ठापना हुई है। युग पुरोहित के निर्माण की बहुमुखी योजनाओं को कार्यान्वित करने के प्रायः उसी स्तर के प्रयास चल पड़े हैं, जैसे नालन्दा आर तक्षशिला विश्वविद्यालयों में किसी समय चलते थे।
कार्य विस्तार को देखते हुए वर्तमान इमारत कम पड़ रही है नई बनने का सुयोग तो बन नहीं रहा है, पर अवाँछनीय भीड़-भाड़ में कटौती करना तो पूर्णतया अपने हाथ की बात है। स्थान की कमी अधिक न अखरे इसलिए उसे पुराने प्रतिबन्ध को नये सिरे से कड़ाई के साथ लागू किया जा रहा है, जिसमें पर्यटकों, घुमक्कड़ों, यात्रियों को यहाँ न ठहरने के लिए बार-बार मना किया जाता रहा। इससे घोर अव्यवस्था, और अराजकता स्तर की अनुशासनहीनता फैलती है, रोकथाम करने पर कटुता उत्पन्न होती है और मनोमालिन्य बढ़ता है। पर्यटन मनोरंजन का दौर मुद्रा स्फीति दिन-दूना रात-चौगुना होता, बढ़ता जा रहा है। हरिद्वार में भी हर समय भारी भीड़ रहती है उनमें से अनेकों शान्ति-कुँज के परिचित भी होते हैं। अनेक सुविधाओं की बात देखकर यहाँ ठहरने की बात सोचते हैं, पर इस दबाव में आश्रम की व्यवस्था का एक प्रकार से सर्वनाश ही हो जाता है।
पर्यटकों के लिये यही उचित है कि वे सर्वप्रथम किसी धर्मशाला, होटल में टिकें। 12 से 4 के बीच शान्ति-कुँज दर्शन परामर्श के लिये आवें। दर्शनीय सभी स्थान नगर में हैं। शान्ति-कुँज नगर से 7 किलोमीटर दूर है। आने-जाने में ढेरों पैसा और समय खर्च होता है अस्तु हर दृष्टि से धर्मशाला आदि ठहरना ही उपयुक्त पड़ता है। शान्ति-कुँज में रहने पर कठोर अनुशासन न पालने का आक्षेप व्यवस्थापकों की ओर से लगता है और आगन्तुक सुविधा ने मिलने की शिकायत करते हैं। दोनों ओर से एक दूसरे पर दोषारोपण होने से मनोमालिन्य बनता है और कटुता उभरती है। परिणामतः जो सद्भाव पहिले था, वह बढ़ने के स्थान पर घटता ही है। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थित हर दृष्टि से दोनों पक्षों के लिए कष्टकारक सिद्ध होती है।
इस सूचना द्वारा सभी प्रज्ञा परिजनों को पर्यटकों की भीड़ शान्ति-कुँज ठहरने के लिए न भेजने के लिए कड़ाई के साथ निर्देश दिया जा रहा है, जिन्हें आवश्यक काम को वे काम की बात करने जितने समय तक ही रुकें। ठहरने का प्रबन्ध धर्मशाला, होटल आदि में करें। पर्यटकों के झुण्ड यदि ठहरने के लिए शान्ति-कुँज पहुँचेंगे तो उन्हें उसी वाहन में तत्काल वापस लौटा दिया जायेगा जिससे कि वे आये थे इस निर्धारण को सभी परिजन नोट करे लें।
वर्ष-46 सम्पादक - श्रीराम शर्मा आचार्य अंक-9