ज्ञान की महत्ता कर्म के साथ ही

August 1982

Read Scan Version
<<   |   <  | |   >   |   >>

ज्ञान का अपना महत्व है, पर उसे हजम करने के लिये कर्म चाहिए। अन्यथा वह अपच ही उत्पन्न करेगा। “सबसे भले मूढ मति जिनहिं न व्यापहिं जगद् गति” की उक्ति में इसीलिये सार्थकता है कि अनजान पशुवत् शिश्नोदर परायण रहकर अपना निर्वाह सुख चैन पूर्वक कर लेते हैं। किन्तु ज्ञानवानों का अन्तःकरण और विवेक जागृत होने पर अपनी क्षुधा प्रकट क रता है और उसकी पूर्ति न बन पड़ने पर आत्म-प्रताड़ना के रूप में कुहराम मचाता है। इसे ही ज्ञानदण्ड कहते हैं। जैसे धन का सदुपयोग और संरक्षण न बन पड़े तो वह अनेकों संकट उत्पन्न करता है और दरिद्र से भी अधिक विपन्न स्थिति में ला पटकता है। वही बात ज्ञान सम्पदा के सम्बन्ध में भी लागू होती है। यदि उसे कर्म के रूप में परिणत होने का अवसर न मिले तो संग्रहकर्ता को हैरान करके रख देता है।

मात्र ज्ञान संचय तो एक प्रकार का व्यसन है। बुद्धि विलास इसे ही कहते हैं। उसे कतई निन्दनीय तो नहीं ठहराया जा सकता, पर सार्थकता तभी मानी जाती है जब उसकी कर्म में परिणति हो। यदि वैसा न बन पड़े तो ज्ञान और कर्म की विसंगति उलटा अर्न्तद्वन्द खड़ा करती है। नीतिकार ने ठीक ही कहा है-यस्तु मूढतमं लोके यस्तु बुद्धि परंगता। उभौ तौ सुख मश्नुते मान्यैवमितरोजनाः॥” अर्थात् संसार में दो ही सुखी रहते हैं। एक या तो ‘मूढ़तम’ दूसरे “पारंगत बुद्धि वाले।” शेष तो सभी दुःखी देखे जाते हैं। मूढ तम, वे जो पेट प्रजनन से ऊपर की बात कभी नहीं सोचने। पारंगत बुद्धि वाले वे, जो कर्म में बुद्धि को परिणत करके विचार सम्पदा के आधार पर मिलने वाली ऋद्धि-सिद्धियों को उपलब्ध करके पूर्णता के लक्ष्य तक जा पहुँचने हैं ऐसे ही व्यक्ति श्रेय-सम्मान पाते हैं। समाज इन्हीं को अपना मार्ग दर्शक मानता है। हम में से सभी को इस श्रेणी में पहुँचने के लिए तत्पर हो जाना चाहिए।


<<   |   <  | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118