तीन असाधारण सौभाग्य

July 1980

Read Scan Version
<<   |   <  | |   >   |   >>

मनुष्य जीवन उस दुर्गम घाटी के समान है, जिसमें पग-पग पर फिसलन, हर अगले क्षण या तो उतार या फिर चढाव । कँटाीली झाँडियाँ भी हैं और ऐसे गहरे गड्ढे जहाँ गिरकर फिर ऊपर तक पहुँच पाना सम्भव ही न हो। जो लोग यह मानते हैं कि वे अपनी अकेले की शक्ति से आगे बढ सकते हैं, उनकी समझ को ऐसी दुर्गम घाटी में बिना प्रकाश और पाथेय घूमने वाले पथिक की तरह मूर्खता पूर्ण ही कहा जायेगा । जीवन पग-पग पर प्रकाश चाहता है, पथ-प्रशस्ति चाहता है, उसका मिल जाना मनुष्य जीवन मिलने जैसा परम सौभाग्य समझा जाता है ।

यह सौभाग्य कैसे मिले ? जीवन का पथ कौन आलौकित करे- विवादों के घेरे में उलझे इस प्रश्न को मैंने बहुत कठिनाई से सुलझा तो लियसा । महापुरुष ह ीवह सुयौग हैं- यह बात समझ तो ली - हृदय की गहराई में उतार तो ली किन्तु महापुरुष कहाँ मिलें यह प्रश्न फिर सामने आ खडा हुआ । मैं समझता हूँ उसे सुलझा लेना मनुष्य जीवन का दूसरा असाधारण सौभाग्य है ।

मुझसे कोई कहे कि मैं ऐसा कुतुबनुमा जानता हूँ जिसकी सुई सदैव उस ओर रहती है जिधर महापुरुष रहते हों तो उसे मैं अपना सब कुछ बेचकर खरीद लूँगा और उसे जीवन का असारधारण सौभाग्य मानूँगा।


<<   |   <  | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118