प्रगति तो हो, पर उत्कृष्टता की दिशा में

April 1980

Read Scan Version
<<   |   <  | |   >   |   >>

प्रगति और अवाति का स्वरुप समझने में भूल होते रहने के कारण ही मनुष्य भ्रम में पड़ते, पछताते और दुसह दुःख सहते है। प्रतिष्ठा की परिभाषा को बलिष्ठता, शिक्षा, सम्पदा और प्राप्त करने तक सीमित समझा जाता है। इस दिशा में जो जितना प्रयत्न करता है वह उतना पुरुषार्थी कहलाता है और जो जितना सफल होता है वह उतना भाग्यशाली माना जाता है।

वस्तुओं और सामर्थ्यों का अपना महत्व है, पर यह भुला नहीं दिया जाना चाहिए कि उन उपलब्धियों का सत्प्रयोजन में प्रयोग हो सकने पर भी उनके द्वारा वास्तविक प्रगति का लाभ मिलता है। प्रगति की वास्तविकता व्यक्तित्व की गरिमा के साथ जुड़ी हुई है मनुष्य का चिन्तन, चरित्र एवं लक्ष्य हो वह आधार है, जिस पर व्यक्तित्व की गरिमा टिकी हुई है। यदि इस केन्द्र बिन्दु पर निकृष्टता आधिपत्य करले तो समस्त उपलब्धियाँ हेय प्रयोजनों के लिए ही प्रयुक्त होती रहेंगी और फलतः पाल, पतन और त्रास विनाश का संकट ही उत्पन्न होता रहेगा। वह प्रगति कैसी जिसमें जलने और जलाने का- गिरने और गिराने का ही उपक्रम चलता रहे।

प्रगति का अर्थ है-ऊर्ध्वगमन, उर्त्कष, अभ्युदय। यह विभूतियाँ अन्तःक्षेत्र की है। दृष्टिकोण और लक्ष्य ऊँचा रहने पर इच्छा और आँकाक्षा का स्तर ऊँचा उठता है। आत्म गौरव का ध्यान रहता है। अपना मूल्य गिरने न पाये यह सतर्कता जिसमें जितनी पाई जाती है वह उतना ही प्रगतिशील है।

सम्पन्नता और सफलता चमत्कृत तो कर सकती है। आकर्षक भी लगती है किन्तु यदि उसका उपयोग सदुद्देश्यों के लिए कर सकने की साहसिकता उत्पन्न न हो सकी तो समझना चाहिए गतिशीलता तो रही पर अवगति के गर्त तक ले पहुँची। प्रगति वह है जिसके सहारे आत्म सन्तोष मिल सके और अपनाई गई आदर्शवादिता के सम्मुख जन जन विवेक का मस्तक झुक सके।


<<   |   <  | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118