साधना स्वर्ण-जयन्ती वर्ष की पूर्णाहुति

January 1977

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प्रस्तुत बसन्त पर्व पर हमारी श्रद्धा का स्तर अधिक उभरे

साधना स्वर्ण-जयन्ती वर्ष गतवर्ष बसन्त पर्व से आरम्भ हुआ और अब उसकी पूर्णाहुति आगामी बसन्त पर्व ता॰ 24 जनवरी 77 सोमवार की होगी। घोषित सामूहिक साधना में प्रायः एक लाख नर-नारियाँ ने अतीव निष्ठापूर्वक भाग लिया। सूर्योदय के 42 मिनट पूर्व निष्ठा के साथ चलती रही है। साधना का विधान उसका उद्देश्य, स्वरूप एवं विवेचन समझाने के लिए गतवर्ष जनवरी के अंक में सब कुछ विस्तारपूर्वक समझा दिया गया था। दोनों नव-नवरात्रियों में इन सभी साधकों को 24 सहस्र गायत्री जप के विशेष अनुष्ठानों के लिए निर्देश था सो थोड़े-से अत्यन्त व्यस्त एवं रुग्ण व्यक्तियों को छोड़ कर सभी ने वह साधना भी सम्पन्न की। प्राप्त सूचनाओं से विदित होता रहा है कि इन एक लाख साधकों में से अधिकांश को चमत्कारी अनुभूतियाँ हुई और अनुभव किया कि वे स्वल्प श्रम में अधिक लाभ देने वाली महत्त्वपूर्ण साधना का सत्परिणाम प्राप्त करने में सफल रहें है।

प्रस्तुत साधना में संलग्न सभी साधकों को इस विशिष्ट साधना की पूर्णाहुति कर लेनी चाहिए। वसन्त पर्व अपने परिवार का सबसे बड़ा त्यौहार है। अपनी समस्त महत्त्वपूर्ण गतिविधियाँ उसी शुभ मुहूर्त से आरम्भ हुई हैं। इस मिशन का जन्म दिन इसी दिन पड़ता है। उसके सूत्र संचालक का जन्म दिन भी वही है। अस्तु पूरा परिवार किसी न किसी रूप से उस दिन अपनी श्रद्धा अभिव्यक्ति का प्रकटीकरण छोटे-बड़े हर्षोत्सव के रूप में सम्पन्न करता है। परिवार के छोटे-बड़े सभी घटक व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से यह पर्व पूरा होने से इसी अवसर पर इसकी भी पूर्णाहुति होनी है। अतएव स्वभावतः उसका स्वरूप अधिक उत्साहवर्धक बन जाएगा

जिन साधकों ने 45 मिनट की एक वर्षीय साधना में भाग लिया है, उन सभी को सामूहिक गायत्री यज्ञ के रूप में सभा-सम्मेलन की व्यवस्था भी की जानी चाहिए। अधिक लोगों को इसमें सम्मिलित रहने के लिए अभी से आमन्त्रित करना आरम्भ किया जाय, ताकि उस दिन अवकाश निकाल कर आयोजन में योगदान देने के लिए वे पहले से ही तैयार रह सके। प्रभात-फेरी सामूहिक जप, गायत्री यज्ञ यह कार्यक्रम प्रातःकाल के हैं। जिनमें स्वर्ण-जयन्ती वर्ष की साधना में भाग लिया है, वे अनिवार्यतः और शेष साधन प्रिय लोग सामान्यतः इस प्रातः काल के जप, हवन, कार्यक्रम में सम्मिलित रहें। परिवार के प्रत्येक सदस्य के यहाँ ज्ञान-घट स्थापित हो। इसके लिए इस दिन को विशेष दिन माना जाय। एक घण्टा समय और दस पैसा नित्य देने की शर्त का पालन सभी परिजन अनिवार्य रूप से पालक करें, नये सदस्य बढ़ाये। सदस्यता के संकल्प प्रातः काल यज्ञ की पूर्णाहुति के समय ही कराये जाएँ। पुरानों में नव-चेतना और नये में नया संकल्प इस अवसर पर जितने उत्साह के साथ संपन्न होगा, उतनी ही आप जनों की सफलता मानी जाएगी इस अंशदान को शाखा संगठनों का प्राण माना जाना चाहिए। जहाँ इस सन्दर्भ में तत्परता दिखाई देगी वहीं मिशन की गतिविधियों का जीवन्त बना रहना सम्भव हो सकेगा।

सायंकाल को जुलूस-सभा का आयोजन किया जाय। साधन को उत्सव की जानकारी और उसमें सम्मिलित रहने का निमन्त्रण देने के लिए टोली बनाकर घर-घर जाया जाना चाहिए। संगीत गायन मिशन की विचारधारा के अनुरूप हों। प्रवचनकर्ता सुलझे हुए एवं मिशन की गतिविधियों से पूर्ण परिचित हों। भाषण का उद्देश्य मिशन के प्रति आवश्यक उत्साह उत्पन्न करना होना चाहिए। व्यर्थ की बकवास में सम्मेलन का एक मिनट भी नष्ट न हो, इसकी पूरी सतर्कता रखी जाय।

अगले वर्ष के नये उत्सव निश्चय इसी पुण्य पर्व पर करने की उमंग प्रत्येक परिजन में उत्पन्न की जाय। दिसम्बर की अखण्ड-ज्योति में आह्वान-आमन्त्रण एवं वसन्त पर्व के उपलक्ष में अभीष्ट कर्तव्यों की जानकारी देने वाले लेख छपे हैं। उनके आधार पर हम में से प्रत्येक को विचारे करना चाहिए ओर देखना चाहिए कि इनमें से किस प्रकार’-’ कौन क्या कर सकता है? बसन्त पर्व ऐसी ही प्रेरणा लेखक युग-निर्माण परिवार के सदस्यों के सम्मुख आता है कि उन्हें आदर्शवादी चिन्तन तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, वरन् उस दिशा में अपनी श्रद्धा की गहराई एवं जीवन्त कर्मनिष्ठा का परिचय भी देना चाहिए। यह बसन्त पर्व इतने उत्साह के साथ मनाया जाना चाहिए कि उसे स्वर्ण-जयन्ती साधना वर्ष की उत्साहवर्धक पूर्णाहुति के स्तर का माना जा सके।


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