अन्तःकरण की आवाज सुनो और उसका अनुकरण करो

April 1965

Read Scan Version
<<   |   <  | |   >   |   >>

जब मनुष्य अकेला होता है, उसके पास और आस-पास भी जब कोई नहीं होता है, तब कोई पाप करने से उसे जो भय लगता है, एक शंका रहती है, वह किसके कारण होती है ? उसे बार-बार ऐसा क्यों लगता है कि कोई उसके पाप को देख रहा है ? क्यों उसका शरीर पूरे उत्साह से उस पाप कर्म में उत्साहित नहीं रहता ? और क्यों बाद में भी वह एक अपराधी की तरह मलीन रहता है? क्या कभी कोई इस पर विचार करता है कि जब उसके पाप को देखने वाला कोई मौजूद नहीं तब उसे भय किसका है वह किससे डर रहा है ? कौन उसे ऐसा करने को निःशब्द रोकता और टोकता रहता है ? कौन उसके मन, प्राण और शरीर में कंपन उत्पन्न कर देता है ?

निःसंदेह यह उसका अपना अन्तःकरण है, जो उसे उस पाप से हटाने के प्रयत्न में विविध प्रकार की शंकाओं, संदेहों व कम्पनादि भयद्योतक अनुभवों से उसे वैसा न करने के लिए संकेत करता जाता है और जो मनुष्य उसकी अवहेलना करके वैसा करता है, उसका अन्तःकरण एक न एक दिन उसकी गवाही देकर उसे दण्ड का भागी बनाता है। यह हो सकता है कि किसी का पाप कर्म दुनिया से छिपा रहे, किंतु उसके अपने अन्तःकरण से कदापि नहीं छिप सकता। वह उसकी एक-एक क्रिया और विचार का सबसे प्रबल और सच्चा साक्षी होता है। जब किसी कारणवश मनुष्य को अपने पाप का दण्ड किसी और से नहीं मिल पाता तो समय आने पर उसका अन्तःकरण उसे स्वयं दण्डित करता है। हमारे लिए उचित यही है कि अन्तःकरण में विद्यमान परमात्मा की आवाज को सुनें और उसका अनुसरण करें।

- महर्षि रमण


<<   |   <  | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118