मनोभावों का प्रभाव

May 1953

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(श्री हरिश्चन्द्र जी जोशी, इलाहाबाद)

किसी भी मनुष्य के जीवन की उन्नति व अवनति मनुष्य के मनोभावों पर अवलंबित है। अगर कोई मनुष्य अपने विचारों के प्रति हमेशा द्वंद्वात्मक रूप में रहता है तो वह जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो सकता। जो मनुष्य जीवन के हर क्षेत्र में उन्नति करना चाहते हैं उन्हें अपने विचार स्थिर और उच्च कोटि के रखने चाहिए।

जो मनुष्य जीवन को समुचित बनाना चाहता है उसके लिए उच्च एवं परिमार्जित विचार रखना बहुत ही आवश्यक है। क्योंकि संसार में मनुष्य के जिस प्रकार विचार होते हैं उसी प्रकार का उसे वातावरण भी प्राप्त होता है और मनुष्य का जैसी वातावरण होता है वैसी ही वह उन्नति करता है। अतएव उत्तम वातावरण प्राप्त करने के लिए मनोभावों का उच्च होना अत्यन्त आवश्यक है।

प्रत्येक मनुष्य के आन्तरिक व बाह्य दोनों प्रकार के विचार इयर द्वारा वायु में प्रवाहित रहते हैं अतएव एक पुरुष के जिस प्रकार के मनोभाव होते हैं उसी प्रकार के कई विचार, मस्तिष्क एवं वायु में से अपने अन्दर ग्रहण कर लेता है। एक वासना प्रेमी व्यक्ति के पास रात दिन वासनामय विचार घूमा करते हैं इसलिए वह हमेशा वासना के कठोर पथ में ही अपना जीवन व्यतीत कर देता है। और एक धार्मिक व्यक्ति के पास धार्मिक विचार घूमा करते हैं जिससे वह जीवन के परम लक्ष्य तक पहुँच जाता है। चाहे वह सिनेमा हाल हो या मन्दिर। अगर एक वासना प्रेमी का मन्दिर में भी स्त्री सौंदर्य की ओर लक्ष्य रहेगा और धार्मिक व्यक्ति सिनेमा में जाकर भी स्त्री को देवी स्वरूप मानकर सम्मान प्रदान करेगा। अतएव मनुष्य के विचार ही उसके जीवन निर्माण में सहायक होते हैं।

मनुष्य के जिस प्रकार विचार होंगे उसी प्रकार उसकी खाने, पीने की व अन्य रुचि भी रहती हैं। जैसे कोई व्यक्ति जरा-जरा सी बात पर क्रोध करने वाला, हिंसक प्रयोग करने वाला, घमण्डी, दूसरों को धोखा देने वाला, मनुष्य तामसिक विचार का होता है। इससे उसका स्वभाव भी तामसिक बन जाता है वह बात-बात पर क्रोध करता है, इससे उसके कई शत्रु हो जाएंगे, और कोई भी मनुष्य उससे बात करना पसंद न करेगा, उसके मित्र भी तामसिक विचार वाले होंगे, इससे उसके मित्र भी उससे ईर्ष्या करेंगे, उसे जीवन में कभी भी ऊपर नहीं उठने देंगे, अप्रसन्नता से उसकी सारी सुन्दरता भी नष्ट हो जायगी। क्रोध करने से खून जलता है। अतएव उनका जीवन-समय भी कम हो जाता है। यह कहा जाता है कि जब मनुष्य क्रोध करता है तो उसके शरीर में कार्बनडाइ ऑक्साइड का अधिक समावेश होता है इससे उसकी उत्साह शक्ति व प्राण शक्ति दोनों नष्ट हो जाती हैं। और जब मनुष्य प्रसन्न रहता है उस समय उसके शरीर में ऑक्सीजन अधिक आती है इससे रक्त साफ होता है, उत्साह बढ़ता है, प्राण शक्ति भी बढ़ती है, इससे मनुष्य की उम्र बढ़ती है व मुखाकृति दिन प्रति दिन सुन्दर होती है। इसलिए मनुष्य को तामसिक विचार त्यागकर सात्विक विचार अपनाना चाहिए।

अब एक सात्विक विचार वाले व्यक्ति को ली जिएगा। यह मनुष्य सात्विक आहार विहार पसन्द करेगा जैसे दूध, घी, मक्खन, फल इत्यादि। इससे उसका स्वभाव भी सात्विक होगा अर्थात् दूसरों का भला चाहने वाला, क्षमाशील, हर समय मुस्कुराने वाला होगा, इससे लोग उसे बहुत चाहेंगे, उसके शत्रु नहीं रहेंगे, उसके मित्र सात्विक विचार के होने के कारण वे भी उसे ऊपर उठाने का ही प्रयत्न करेंगे। इस प्रकार की विचार-धारा के कारण मनुष्य के अन्दर ऑक्सीजन का अधिकार समावेश होता है इससे मनुष्य में उत्साह शक्ति बढ़ती है, और मुखाकृति सुन्दर प्रतीत होती है। सात्विक विचार ही मनुष्य जीवन की सफलता का धरातल है और तामसिक विचार मनुष्य जीवन के पतन का पथ है।

अगर एक व्यक्ति हमेशा करुण-रस के संगीत गाता या सुनता है तो उसका जीवन करुणा-पूर्ण हो जाता है। क्योंकि संगीत की स्वर लहरी में अपनी क्षमता के विचारों को मस्तिष्क में खींचने की बहुत शक्ति रहती है। हर्ष-रस का संगीत सुनने व गाने से जीवन आनन्दमय हो जाता है क्योंकि हर्ष-रस के संगीत में ऑक्सीजन मिली रहती है अतः इसके श्रवण व गान दोनों से मनुष्य के शरीर में ऑक्सीजन की प्रधानता हो जाती है इसके फलस्वरूप मनुष्य के जीवन में अथाह उत्साह बढ़ जाता है, प्राणशक्ति भी बढ़ जाती है, इससे मनुष्य सुन्दर व लम्बी उम्र वाला (दीर्घजीवी) होता है। एक प्रगतिशील व्यक्ति के लिये हर्ष रस के विचार व संगीत का उतना ही महत्व है जितना कि मनुष्य के लिए भोजन। विचारों की महानता महान जीवन का प्रत्यक्ष लक्षण है। हमें चाहिये कि अपने भीतर काम करने वाले विचारों का निरीक्षण करते रहें तथा बुरे विचारों को, दोष दुर्गुणों को त्यागने एवं सद्विचार, सद्गुण, सद्भावों को अधिकाधिक मात्रा में अपनाने के लिए निरन्तर प्रयत्न करते रहें।


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