आप बिना पैसे के भी अमीर बन सकते हैं।

January 1950

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आप आश्चर्य करेंगे कि क्या बिना पैसे के भी कोई धनवान हो सकता है? लेकिन सत्य समझिए इस संसार में ऐसे अनेक मनुष्य हैं जिनकी जेब में एक पैसा नहीं है या जिनकी जेब ही नहीं है, फिर भी वे धनवान हैं और इतने बड़े धनवान कि उनकी समता दूसरा कोई नहीं कर सकता। जिसका शरीर स्वस्थ है, हृदय उदार है और मन पवित्र है, यथार्थ में बड़ा धनवान है। स्वस्थ शरीर चाँदी से कीमती है, उदार हृदय सोने से मूल्यवान है और पवित्र मन की कीमत रत्नों से अधिक है। लार्ड कालिंगवुड कहते थे-‘दूसरों को धन के ऊपर मरने दो मैं तो बिना पैसे का अमीर हूँ। क्योंकि मैं जो कमाता हूँ नेकी से कमाता हूँ।’ सिसरो ने कहा है-मेरे पास थोड़े से ईमानदारी के साथ कमाये हुए पैसे हैं, परन्तु वे मुझे करोड़पतियों से अधिक आनन्द देते हैं।

दधीचि, वशिष्ठ, व्यास, बाल्मीकि, तुलसीदास, सूरदास, रामदास, कबीर आदि बिना पैसे के अमीर थे, वे जानते थे कि मनुष्य के लिए आवश्यक भोजन मुख द्वारा ही अन्दर नहीं होता और न जीवन को आनन्दमय बनाने वाली सब वस्तुएं पैसे से खरीदी जा सकती हैं? ईश्वर ने जीवन रूपी पुस्तक के प्रत्येक पृष्ठ पर अमूल्य रहस्यों को अंकित कर रखा है, यदि हम चाहें, तो उनको पहचान कर जीवन को प्रकाश पूर्ण बना सकते हैं। एक विशाल हृदय और उच्च आत्मा वाला मनुष्य झोंपड़ी में भी रत्नों की गरमाहट पैदा करेगा। जो सदाचारी है और परोपकार में प्रवृत्त है, वह इस लोक में भी धनी और परलोक में भी। भले ही उसके पास व्यय का अभाव हो। यदि आप विनयशील, प्रेमी, स्वार्थ और पवित्र हैं, तो विश्वास कीजिए कि आप अनन्त धन के स्वामी हैं।

जिसके पास पैसा नहीं, वह गरीब कहा जायगा, परन्तु जिसके पास केवल पैसा है, वह उससे भी अधिक कंगाल है। क्या आप सद्बुद्धि और सद्गुण को धन नहीं मानते? अष्टावक्र आठ जगह से टेड़े थे और गरीब थे, पर जब जनक की सभा में जाकर अपने गुणों का परिचय दिया तो राजा उनका शिष्य हो गया। द्रोणाचार्य जब धृतराष्ट्र के राज दरबार में पहुँचे, तो उनके शरीर पर कपड़े भी न थे, पर उनके गुणों ने उन्हें राजकुमारों के गुरु का सम्मान पूर्ण पद दिलाया। महात्मा डायोजेनिस के पास जाकर दिग्विजयी सिकन्दर ने निवेदन किया-‘महात्मन् वाषिंक आपके लिए क्या वस्तु उपस्थित करूं? उन्होंने उत्तर दिया-“मेरी धूप मत रोक, और एक तरफ खड़ा हो जा। वह चीज मुझसे मत छीन, जो तुम मुझे नहीं दे सकते। इस पर सिकन्दर ने कहा-‘यदि मैं सिकन्दर न होता तो डायोजनिज ही होना पसन्द करता।’

गुरु गोविन्द सिंह, वीर हकीकतराय, छत्रपति शिवाजी, राणा प्रताप आदि ने धन के लिए अपना जीवन उत्सर्ग नहीं किया था। माननीय गोखले से एक बार एक सम्पन्न व्यक्ति ने पूछा कि आप इतना बड़ा राजनीतिज्ञ होते हुए भी गरीब, निर्बल जीवन क्यों व्यतीत करते हैं? उन्होंने उत्तर दिया - “मेरे लिए यही बहुत है। पैसा जोड़कर जीवन जैसी महत्वपूर्ण वस्तु का आधा भाग नष्ट करने में मुझे कुछ भी बुद्धिमत्ता प्रतीत नहीं होती।”

फ्रेंकलिन से एक बार उनका एक धनी मित्र यह पूछने गया कि - मैं अपना धन कहाँ रखूँ? उन्होंने उत्तर दिया कि-तुम अपनी थैलियों को अपने सिर के अन्दर उलट लो, अर्थात् उनके बदले ज्ञानवृद्धि कर लो तो कोई भी उस धन को चुरा न सकेगा।

(देश देशान्तरों से प्रचारित, उच्च कोटि की आध्यात्मिक मासिक पत्रिका)

वार्षिक मूल्य 2॥) एक अंक का।)

सम्पादक - श्रीराम शर्मा आचार्य


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