अपनी शक्तियों को विकसित कीजिए।

January 1948

Read Scan Version
<<   |   <  | |   >   |   >>

परमेश्वर ने सबको समान शक्तियाँ प्रदान की है। ऐसा नहीं कि किसी में अधिक किसी में न्यून हो, किसी के साथ खास रिआयत की गई हो। परमेश्वर के यहाँ अन्याय नहीं। समस्त अद्भुत शक्तियाँ तुम्हारे शरीर में विद्यमान हैं। तुम उन्हें जागृत करने का कष्ट नहीं करते। कितनी ही शक्तियों से कार्य न लेकर तुम उसे कुष्ठित कर डालते हो। अन्य व्यक्ति उसी शक्ति को किसी विशेष दिशा में मोड़कर उसे अधिक परिपुष्ट एवं विकसित कर लेते हैं। अपनी शक्तियों को जागृत तथा विकसित कर लेना अथवा उन्हें शिथिल पंगु, निश्चेष्ट बना डालना स्वयं तुम्हारे ही हाथ में है। स्मरण रखिए, संसार की प्रत्येक उत्तम वस्तु पर तुम्हारा जन्म सिद्ध अधिकार है। यदि तुम अपने मन के गुप्त महान सामर्थ्यों को जागृत कर लो और लक्ष्य की ओर प्रयत्न, उद्योग और उत्साहपूर्वक अग्रसर होना सीख लो तो जैसा चाहो आत्म निर्माण कर सकते हो। मनुष्य जिस वस्तु की आकाँक्षा करता है-उसके मन में जिन महत्वाकाँक्षाओं का उदय होता है और जो 2 आशा पूर्ण तरंगें उदित होती हैं, वे अवश्य पूर्ण हो सकती हैं-यदि वह दृढ़ निश्चय द्वारा अपनी प्रतिज्ञा को जागृत कर ले।

अतएव प्रतिज्ञा कर लीजिए कि आप चाहे जो कुछ हों, जिस स्थिति, जिस वातावरण में हों, आप एक कार्य अवश्य करेंगे-वह यही कि अपनी शक्तियों को ऊंची से ऊंची बनायेंगे।

----***----


<<   |   <  | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118