परोपकार जीवन का सबसे बड़ा लाभ है।

October 1946

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“मैंने इतना किया पर इसके बदला मुझे क्या मिला?” ऐसे विचार करने की उतावली न कीजिये। बादलों को देखिये वे सारे संसार पर जल बरसाते फिरते हैं, किसने उनके अहसान का बदला चुका दिया? बड़े-बड़े खण्डों का सिंचन करके उनमें हरियाली उपजाने वाली नदियों के परिश्रम की कीमत कौन देता है? हम पृथ्वी की छाती पर जन्म भर लदे रहते हैं और उसे मल मूत्र से गन्दी करते रहते हैं, किसने उसका मुआवज़ा अदा किया है? वृक्षों से फल, छाया, लकड़ी पाते हैं, पर उन्हें हम क्या कीमत देते हैं?

परोपकार स्वयं ही एक बदला है? त्याग करना अजनबी आदमी को एक घाटे का सौदा प्रतीत होता है, पर जिन्हें उपकार करने का अनुभव है वे जानते हैं कि ईश्वरीय वरदान की तरह यह दिव्य गुण कितना शान्ति दायक है और हृदय को कितना बल प्रदान करता है। उपकारी मनुष्य जानता है कि मेरे कार्यों से कितना लाभ दूसरों को होता है, उससे कई गुना अधिक स्वयं मेरा होता है।

त्याग करना, किसी की कुछ सहायता करना, उधार देने की एक वैधानिक पद्धति है, जो कुछ हम दूसरों को देते हैं, वह हमारी रक्षित पूँजी की तरह परमात्मा की बैंक में जमा हो जाता है। जो अपनी रोटी दूसरों को बाँट कर खाता है, उसको किसी बात की कमी न रहेगी। जो केवल खाना और जमा करना ही जानता है, उस अभागे को क्या मालूम होगा कि त्याग में कितना मिठास छिपा हुआ है।


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