इस जीवन में ही स्वर्ग का आनंद लीजिये।

July 1943

Read Scan Version
<<   |   <  | |   >   |   >>

मुद्दतों से सूखे पड़े हुए हृदय सरोवर को प्रेम के अमृत जल से भर लीजिये। इस सरोवर में लोगों को पानी पीकर प्यास बुझाने दीजिये, स्नान करके शाँति लाभ करने दीजिये, क्रीड़ा करके आनन्दित होने दीजिये। अपना प्रेम उदारतापूर्वक सबके लिए खुला रखिए। आत्मीयता की शीतल छाया में थके हुए पथिकों को विश्राम करने दीजिए। प्रेम इस भूलोक का अमृत है, आत्म भाव इस भूलोक का पारस है। इस दुर्लभ मानव शरीर को सफल बनाने के लिए आप इन दोनों महा तत्वों को उपार्जित करने का प्राण प्रण से प्रयत्न कीजिये।

अपने प्रेम रूपी अमृत को चारों ओर छिड़क दीजिए, जिससे यह श्मशान सा भयंकर दिखाई पड़ने वाला जीवन देव-देवताओं की क्रीड़ा भूमि बन जाय। अपने आत्म भाव रूपी पारस को कुरूप अव्यवस्थित लोहा लंगड़ से स्पर्श होने दीजिए, जिससे स्वर्णमयी सुरम्य इन्द्रपुरी बनकर खड़ी हो जाय। यदि आप इसी जीवन में स्वर्ग का आनन्द लूटना चाहते हैं, तो उसकी रचना अपने हाथों कीजिये। यह बिलकुल आसान है और पूर्णतः सम्भव है। यदि आप दूसरों को आत्मीयता की प्रेम पूर्ण दृष्टि से देखने लगें तो निश्चय समझिये यह भूलोक ही आपके लिए स्वर्ग सा आनन्ददायक बन जायगा।


<<   |   <  | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118